दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन, उद्घाटन सत्र में केंद्रीय हिंदी संस्थान के प्रोफेसर ने लोगों को किया संबोधित

दिलीप कुमार

राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा में उच्च शिक्षा विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के सौजन्य से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से आए प्रो उमापति दीक्षित ने कहा कि इटावा साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अपार संभावनाओं की भूमि है। पौराणिक काल से लेकर आधुनिक काल तक इस उर्वर भूमि ने कई गणमान्य साहित्यिकों को जन्म दिया। देव से लेकर गोपालदास नीरज तक ने साहित्य में अनिवार्य उपस्थिति दर्ज कराई है।

इससे पूर्व राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन जिलाधिकारी इटावा के कर कमलों से हुआ। जिलाधिकारी श्रीमती श्रुति सिंह ने राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजकों को शुभकामनाएं दीं और कहा कि यह संगोष्ठी बहुत रुचिकर विषय पर आधारित है। उन्होंने आशा जताई की इस संगोष्ठी से इटावा की साहित्यिक सांस्कृतिक पहचान को उभारने में आसानी होगी। उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी के शोधपत्र इटावा को समझने की कुंजी बनेंगे।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह में प्राचार्य डॉ श्यामपाल सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय के बारे में, संगोष्ठी के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी लोकल से ग्लोबल की यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव बनेगी।

उन्होंने बताया कि स्थानीयता को पहचान करने का यह प्रयास है। उन्होंने कहा कि यह संगोष्ठी इटावा को समझने का एक उपक्रम है। संगोष्ठी में विषय प्रवर्तन करते हुए प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ कुश चतुर्वेदी ने कहा कि इटावा का नाम पौराणिक काल में ही अस्तित्व में इसलिए आया था कि यह स्थान यज्ञ की बेदी में प्रयुक्त होने वाली ईंटों के निर्माण के लिए जाना जाता था। डॉ कुश चतुर्वेदी ने इटावा की स्थानीय विशिष्टताओं को उद्घाटित करते हुए बताया कि यह जमीन स्वाधीनता संग्राम की भूमि भी रही है। इटावा का कलेक्टर ए ओ ह्यूम यद्यपि सन 1857 की क्रांति में एक क्रूर प्रशासक के रूप में उभरा था लेकिन वह विद्या और ज्ञान का सम्मान करने वाला व्यक्ति था। उसने स्थानीय पंडितों के घर जाकर संस्कृत सिखाने के लिए अनुरोध किया था।

इग्नू के वाराणसी केंद्र के क्षेत्रीय निदेशक डॉ उपेन्द्रनभ त्रिपाठी ने बताया कि इटावा उत्तर भारत का वह जनपद है जिसे भारत सरकार ने एक जनपद एक उत्पाद के प्रमुख जनपद के रूप में चुना है। उन्होंने कहा कि इटावा उच्च शिक्षा के दूरस्थ केंद्र के एक महत्त्वपूर्ण केंद्र के रूप में चिह्नित किया गया है।

उद्घाटन समारोह में संचालन करते हुए आयोजन सचिव डॉ रमाकांत राय ने कहा कि यह संगोष्ठी इटावा के विभिन्न विषयों को छूने की कोशिश करेगी। उद्घाटन समारोह में प्राचार्य डॉ श्यामपाल सिंह ने मुख्य अतिथि का स्वागत बुके देकर किया और अंगवस्त्रम और स्मृतिचिह्न देकर सम्मानित किया। उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि ने आगंतुक विशिष्ट अतिथियों के साथ मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और दीप प्रज्ज्वलित कर विधिवत शुरुआत की। कार्यक्रम में छात्राओं ने महाकवि निराला द्वारा रचित सरस्वती वंदना की नृत्यात्मक प्रस्तुति की। और स्वागत क्रम में भवानी प्रसाद मिश्र रचित गीत गाया। उद्घाटन समारोह का संचालन कार्यक्रम सचिव डॉ रमाकांत राय ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ अजय दुबे ने किया।

संगोष्ठी के प्रथम तकनीकी सत्र में इटावा के साहित्यिक परिदृश्य पर बात हुई। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय, कुशीनगर से पधारे डॉ गौरव तिवारी ने कहा कि इटावा समानांतर सत्ता का केंद्र प्राचीन काल से ही बना रहा है। मुगल सत्ता के समानांतर युगल सत्ता की स्थापना इस शहर के पार्श्व में ही हुई थी। इसी क्रम में उन्होंने राजा लक्ष्मण सिंह के संस्कृत और हिंदी की पक्षधरता को उर्दू और हिंदी के द्वंद्व को ध्यान में रखकर की। इस सत्र में दूरदर्शन केन्द्र लखनऊ, के कार्यक्रम अधिशासी श्री श्याम नारायण चौधरी ने कहा कि इटावा की सांस्कृतिक विरासत उसे दुनिया में अनूठा जनपद बनाती है। उन्होंने कहा कि इटावा को जीकर जाना जा सकता है, इसलिए लोगों को चाहिए कि वह यहां की संस्कृति को जीकर देखें।

राजकीय महाविद्यालय, अकबरपुर, कानपुर देहात से आए डॉ आशुतोष राय ने इटावा के प्रमुख कवि गंग के साहित्यिक अवदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने गंग के साहस को जनपद के आमजन का साहस कहा। प्रथम तकनीकी सत्र में डॉ मंजू यादव और डॉ अंकिता यादव ने अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया और क्रमश: देव और नीरज के साहित्य पर प्रकाश डाला। प्रथम तकनीकी सत्र का संचालन डॉ अमित कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन डॉ चंद्रप्रभा ने किया।

कार्यक्रम के द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ कमल कुमार ने चंबल संस्कृति के विविध पहलुओं की चर्चा करते हुए कहा कि यह क्षेत्र जैव विविधता का केंद्र है। यहां मोहम्मद गोरी कालीन चुगलखोर की बाजार है जहां जूते मारकर मन्नत मांगने की प्रथा है। यहां विश्व का सबसे विकासशील गांव सैफई है जिसका अलग संस्कृतिक महत्व है।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ दिनेश पालीवाल ने कहा कि साहित्य और संस्कृति के दृष्टिकोण से इटावा अद्भुत जनपद है। यह जनपद बोलियों का जंक्शन है और इसका एक मोहल्ला कई शताब्दियों से पुरबिया बोली को सहेजे हुए है।
सत्र का संचालन भगवान महावीर पीजी कालेज फाजिल नगर के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शत्रुघ्न सिंह ने किया।

प्रथम दिन के बारे में बात करते हुए संगोष्ठी के आयोजन सचिव ने कहा कि इस संगोष्ठी में पहले ही दिन लगभग 30 शोधपत्र प्राप्त हुए हैं। संगोष्ठी में अब तक 49 शोधपत्र प्राप्त हो गए हैं जिन्हें महाविद्यालय की गृह विज्ञान की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ डौली रानी ने संपादित किया है। इस स्मारिका का विमोचन भी जिलाधिकारी, प्राचार्य और विशिष्ट अतिथियों ने किया।

संगोष्ठी के प्रथम दिन कर्मक्षेत्र महाविद्यालय, इटावा के प्राचार्य डॉ महेंद्र सिंह, चौधरी चरण सिंह महाविद्यालय, हेंवरा के डॉ शैलेंद्र शर्मा और जनता कालेज, बकेवर के प्राचार्य डॉ राजेश किशोर त्रिपाठी, राजकीय महाविद्यालय, कुरावली, मैनपुरी के प्राचार्य डॉ संतोष कुमार, विभिन्न महाविद्यालय से डॉ उदयवीर सिंह, डॉ योगेश बाबू दीक्षित, डॉ जगजीवन राम, डॉ पद्मा त्रिपाठी, डॉ अनुपम, डॉ सुभाष, डॉ आनंद मोहन चौधरी, डॉ आदित्य कुमार, श्री सुदामा लाल पाल की गरिमामयी उपस्थिति रही।
इस अवसर पर महाविद्यालय की डॉ चंद्रप्रभा, डॉ अजय दुबे, श्याम नारायण चौधरी, डॉ दुर्गेशलता, डॉ रेखा, डॉ श्यामदेव यादव, डॉ सपना वर्मा, डॉ डौली रानी, डॉ श्वेता और सभी कार्यालय सहायकों की सक्रिय उपस्थिति रही।

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