एक जेल ऐसी भी जहां कैदी जेल के बैरक में नहीं फ्लैट में रहते हैं और मिलती हैं बेहतरीन सुविधाएँ
बक्सर(बिहार)| जेल का नाम सुनते ही लोग तौबा कर उठते हैं। इसके साथ ही ताजा हो जाती हैं वो तश्वीरें जिनमें जेल का क्रूर वातावरण नजर आता है। यही सोच के मन सिहर जाता है तो सोचो जो वह जाता है उसका क्या हाल होता है। सलाखों के सींखचों के पीछे बनी एक बैरक और उस पर ढाली गई बेंच। इसी पर सोना और इसी पर बैठना।
ओढ़ने को एक अदद बदबूदार कंबल और कांटें से चुभने वाले मच्छरों के दंश। पेट की आग शांत करने के लिए मोटी रोटी और पनीली दाल। लेकिन, इन अहसासों से परे देश में एक अदद ऐसी भी जेल है, जहां सजा काटने की बजाए किसी बेहतरीन अपार्टमेंट में रहने का अहसास होता है। कैदियों के लिए वन बीएचके फ्लैट हैं।
यहां परिवार से दूर तन्हाई में सजा काटने का अहसास आसपास नहीं फटकता, यहां आप अपने परिवार के सदस्यों के साथ रह सकते हैं। इतना ही नहीं, रोजगार और खेती कर अपने परिवार का पालन करने की आजादी इस कैदखाने के कैदियों को दी जाती है।
ये कोई सपना नहीं सच्चाई है-
बक्सर में ऐसी ही एक जेल है। इस ओपेन जेल यानि मुक्त कारागार में रहने के लिए राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण करती है। वह बिहार के तमाम जेलों में सजा काट रहे कैदियों को चुनाव करता है।
पेशेवर किस्म के अपराधी और संगीन जुर्म में लिप्त रहे कैदी को प्राधिकरण इस मुक्त कारागार के लिए उपयुक्त नहीं मानता। कैदियों की सभी बिंदुओं पर जांच के बाद पुलिस अधिकारियों की सिफारिश पर प्राधिकरण कैदी को चार सदस्यों के साथ इस ओपेन जेल में बने फ्लैट्स रहने की इजाजत देता है।
सलाखों में कैद जिन्दगियों के लिए एक नई आस-
बक्सर ओपेन जेल में कैदियों के रहने के लिए वन बीएचके के 102 फ्लैट हैं। इसमें से कई अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। वहीं कई बीते दो वर्षों के दौरान ओपेन जेल में रहने के बाद सजा पूरी होने पर अपने घर लौट चुके हैं।
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अलग-अलग तरह के स्वादिष्ट व्यंजन भी मिलते है-
इस ओपेन जेल में रखे गए कैदियों को हर दिन अलग मेन्यू का भोजन मुहैया कराया जाता है। इस भोजन की क्वालिटी भी किसी मायने में कमतर नहीं होती। बुजुर्ग कैदियों को तो जेल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से आधा लीटर दूध भी उपलब्ध कराया जाता है। कैदियों को अपने साथ रह रहे परिवारीजनों के लिए खाने की व्यवस्था खुद ही करनी होती है।
यानी उन्हें परिवार के पालन की जिम्मेदारी का अहसास जगाने के लिए उन्हें जेल से बाहर जाकर काम करने की छूट भी दी जाती है। यहां रह रहे तमाम कैदी जेल परिसर से पांच किलोमीटर के दायरे में काम कर अपने परिवार का पोषण कर रहे हैं।
जेल के अन्दर ही उपलब्ध है रोजगार-
बाहर जाकर काम करने की बजाए कैदी जेल के अंदर ही रहकर रोजगार या खेती कर सकते हैं। जेल के कई कैदी परिसर में स्थित जमीन पर खेती कर सब्जी आदि की उपज से अपने परिवार का पोषण कर रहे हैं।
इस जमीन के ऐवज में जेल प्रशासन को मामूली रकम चुकाने के बाद कैदी इसमें सब्जी उगाकर बाजार में बेंचकर परिवार को पाल रहे है।
पुराने समय का गवाह रहा है यह जेल-
बक्सर की सेंट्रल जेल देश के पुराने कारागारों में शामिल है। ब्रिटिश हुकूमत के दौर में अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन का यह गवाह रहा तो आजादी के बाद लोहिया के ‘कांग्रेस हटाओ—देश बचाओ’ के नारों की गूंज भी इसने सुनी। वहीं जेपी आंदोलन का इतिहास यहां जब्त है।
बक्सर के जेल अधिकारियों का कहना है कि यहां उन्हीं कैदियों को रखा जाता है जो अपनी आधी सजा काट चुके हैं। उनका चाल—चलन अच्छा है। उनके अंदर समाज से जुड़ने की इच्छा को देखकर ही इस ओपेन जेल में लाया जाता है। इस जेल का असल मकसद कैदियों को समाज की मुख्यधारा में वापस लाने का है।