
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने की समय-सीमा तय करने के महत्वपूर्ण मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने 19 अगस्त को इस मामले की सुनवाई शुरू की थी और आज, 11 सितंबर को, लंबी बहस के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर भी शामिल हैं।
यह मामला केंद्र और विपक्षी शासित राज्यों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद को लेकर है, जहां राज्यपालों पर विधेयकों को अनावश्यक रूप से रोकने या देरी से मंजूरी देने के आरोप लगे हैं। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने पक्ष रखा कि राज्यपालों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत मंजूरी देने, रोकने या राष्ट्रपति को भेजने का अधिकार है, लेकिन समय-सीमा तय करना संवैधानिक व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि बिना समय-सीमा के राज्यपाल विधेयकों को अनिश्चित काल तक लंबित रख सकते हैं, जो संघीय ढांचे को कमजोर करता है।
संविधान पीठ ने विभिन्न राज्यों जैसे केरल, तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना से जुड़े मामलों का जायजा लिया, जहां राज्यपालों की देरी से विधायी प्रक्रिया प्रभावित हुई है। पीठ ने कहा कि यह फैसला विधायी प्रक्रिया को सुगम बनाने और संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण होगा। फैसला आने तक सभी पक्षों को सतर्क रहने की सलाह दी गई है।