
नई दिल्ली ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की रूसी तेल आयात पर भारत के खिलाफ भारी टैरिफ बढ़ाने की धमकी का कड़ा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय (एमईए) ने बयान जारी कर कहा कि भारत को “अनुचित और अव्यवहारिक” तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। मंत्रालय ने अमेरिका और यूरोपीय संघ की रूसी तेल आयात को लेकर आलोचना को खारिज करते हुए उनकी दोहरी नीति पर सवाल उठाए।

ट्रंप ने शुक्रवार को दावा किया था कि भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया है, लेकिन भारतीय अधिकारियों ने इसका खंडन किया, यह कहते हुए कि तेल आयात नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। एमईए ने स्पष्ट किया कि यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ताओं ने यूरोप की ओर रुख किया, जिसके कारण भारत ने रियायती रूसी तेल खरीदना शुरू किया। उस समय अमेरिका ने भी भारत के इस कदम को वैश्विक ऊर्जा बाजारों को स्थिर करने के लिए प्रोत्साहित किया था।
भारत, जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है, अपनी 88% तेल जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। रूस अब भारत के तेल आयात का 36-40% हिस्सा आपूर्ति करता है, जो युद्ध से पहले 1% से भी कम था। 2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रियायती रूसी तेल का लाभ उठाया, जिससे वैश्विक तेल कीमतें नियंत्रित रहीं। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत का यह कदम 1.4 अरब आबादी के लिए सस्ती और स्थिर ईंधन कीमतें सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। मंत्रालय ने जोर देकर कहा, “भारत का आयात राष्ट्रीय हित और आर्थिक सुरक्षा से प्रेरित है। जो देश हमारी आलोचना कर रहे हैं, वे स्वयं रूस के साथ व्यापार कर रहे हैं, जो भारत के विपरीत, उनकी राष्ट्रीय मजबूरी भी नहीं है।”
मंत्रालय ने पश्चिमी देशों की दोहरी नीति को उजागर करते हुए बताया कि 2024 में यूरोपीय संघ का रूस के साथ व्यापार भारत के कुल रूसी व्यापार से कहीं अधिक था। अमेरिका भी रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए पैलेडियम, उर्वरक और रसायन आयात करता है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, “भारत और रूस का रिश्ता समय की कसौटी पर खरा और स्थिर है। हमारी ऊर्जा खरीद वैश्विक बाजार की स्थिति और उपलब्धता पर आधारित है।” उन्होंने जोड़ा कि भारत के अन्य देशों के साथ संबंधों को किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।
ट्रंप ने 1 अगस्त से भारत पर 25% टैरिफ और रूसी तेल व हथियारों की खरीद के लिए अतिरिक्त “दंड” की घोषणा की थी। उन्होंने दावा किया कि भारत रूस से “बड़े पैमाने पर” तेल खरीद रहा है और इसे “बड़े मुनाफे” के लिए बेच रहा है। भारत ने जवाब में कहा कि उसकी नीतियां राष्ट्रीय हितों और आर्थिक सुरक्षा पर आधारित हैं, और वैश्विक व्यापार की वास्तविकताओं को नजरअंदाज कर भारत को निशाना बनाना अनुचित है।
सामाजिक और आर्थिक संदर्भ
भारत की रूसी तेल खरीद ने 2022 के बाद से वैश्विक तेल कीमतों को नियंत्रित करने में मदद की है। यदि भारत ने रियायती रूसी तेल नहीं खरीदा होता, तो तेल की कीमतें मार्च 2022 के 137 डॉलर प्रति बैरल के शिखर को पार कर सकती थीं। विश्लेषकों का अनुमान है कि रूसी तेल से दूरी बनाने पर भारत का आयात बिल 9-11 अरब डॉलर बढ़ सकता है, जिससे ईंधन कीमतें और मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। भारतीय रिफाइनरियां, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, जो रूसी तेल का 50% से अधिक आयात करती हैं, ने यूरोपीय संघ के हालिया प्रतिबंधों और ट्रंप की धमकियों के कारण वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू की है, लेकिन दीर्घकालिक अनुबंधों और रूसी तेल की गुणवत्ता के कारण यह बदलाव जटिल है।