उत्तर प्रदेश की सियासत में समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस के बीच बढ़ती दूरी ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के लिए नई संभावनाएं खोल दी हैं। सहारनपुर से कांग्रेस सांसद इमरान मसूद के उस बयान ने सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है, जिसमें उन्होंने सपा के बजाय बसपा के साथ गठबंधन को कांग्रेस के लिए अधिक फायदेमंद बताया।

इस बयान ने सपा-कांग्रेस गठबंधन की कमजोर कड़ियों को उजागर करने के साथ ही बसपा के नेताओं को नए सियासी समीकरण तलाशने के लिए प्रेरित किया है। जानकारों का मानना है कि सपा-कांग्रेस की दूरी बसपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती की गठबंधन विरोधी रणनीति इस संभावना को जटिल बनाती है।
इमरान मसूद का बयान और सियासी हलचल
24 मई 2025 को इमरान मसूद ने एक साक्षात्कार में कहा, “अगर कांग्रेस सपा से अलग होकर लड़ेगी तो बेहतर प्रदर्शन करेगी। मेरी कोशिश होगी कि 2027 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा का गठबंधन हो।” उन्होंने बसपा के साथ दलित-मुस्लिम गठजोड़ को फायदेमंद बताते हुए कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, लेकिन वह इसके लिए काम करेंगे। मसूद ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव को नसीहत दी कि वे अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह बड़ा दिल रखें। साथ ही, उन्होंने मायावती को चेतावनी दी कि अगर बसपा गठबंधन पर विचार नहीं करती तो उनकी विचारधारा खत्म हो सकती है।
इस बयान ने सपा-कांग्रेस गठबंधन में तनाव को उजागर किया। लोकसभा चुनाव 2024 में सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें जीती थीं, लेकिन गठबंधन के बाद भी दोनों दलों के नेताओं की बयानबाजी से रिश्तों में खटास आई। मसूद का बयान बसपा के लिए एक अवसर के रूप में देखा जा रहा है, खासकर पश्चिमी यूपी में, जहां मसूद का मुस्लिम समुदाय पर प्रभाव है।
सपा-कांग्रेस की दूरी: कारण और प्रभाव
सपा और कांग्रेस का गठबंधन 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन का हिस्सा था, लेकिन दोनों दलों के बीच तालमेल की कमी साफ दिखी। सपा नेताओं का मानना है कि कांग्रेस का वोट ट्रांसफर सपा को नहीं हुआ, जबकि कांग्रेस का दावा है कि सपा ने सीट बंटवारे में उनकी उपेक्षा की। मसूद ने कहा, “2024 में मैंने कहा था कि कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी, लेकिन मेरी बात को साथियों ने नहीं माना।”
लोकसभा चुनाव के बाद सपा-कांग्रेस नेताओं की बयानबाजी बढ़ी। सपा ने उपचुनावों में कांग्रेस को कम सीटें दीं, जिससे तनाव और बढ़ा। कांग्रेस अब यूपी में अपने संगठन को मजबूत करने की कोशिश में है और सपा पर निर्भरता कम करना चाहती है। मसूद ने 22 मई 2025 को कहा, “कांग्रेस को किसी बैसाखी की जरूरत नहीं। हम बिना बैसाखी के 2027 का चुनाव लड़ेंगे।” यह बयान सपा के साथ दूरी बढ़ाने का संकेत देता है।
बसपा के लिए अवसर
सपा-कांग्रेस की दूरी ने बसपा के लिए सियासी जमीन तैयार की है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने हाल के वर्षों में गठबंधन से दूरी बनाई है, लेकिन सपा-कांग्रेस के कमजोर गठबंधन ने उनके लिए संभावनाएं खोली हैं। जानकारों का मानना है कि बसपा का दलित वोट बैंक और मसूद जैसे नेताओं का मुस्लिम समुदाय पर प्रभाव 2027 के विधानसभा चुनाव में गेम-चेंजर हो सकता है।
हाल ही में बसपा ने संगठनात्मक स्तर पर बड़े बदलाव किए हैं। मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया और 2027 के लिए छह महीने का सदस्यता अभियान शुरू किया। पूर्व बसपा सांसद गिरीश चंद्र की पार्टी में वापसी और मलूक नागर जैसे नेताओं का समर्थन बसपा की सक्रियता दर्शाता है। बसपा बिहार विधानसभा चुनाव के बाद यूपी में भी बड़े पैमाने पर काडर कैंप और सदस्यता अभियान शुरू करने की योजना बना रही है।
बसपा की गठबंधन नीति
मायावती ने गठबंधन को बार-बार नुकसानदायक बताया है। उन्होंने 20 फरवरी 2025 को X पर पोस्ट किया, “बीएसपी ने जब भी कांग्रेस जैसी जातिवादी पार्टियों के साथ गठबंधन किया, हमारा बेस वोट उन्हें ट्रांसफर हुआ, लेकिन उनका वोट हमें नहीं मिला।” मायावती ने सपा पर भी दलित-विरोधी नीतियों का आरोप लगाया और 1995 के गेस्ट हाउस कांड का जिक्र करते हुए सपा से दूरी बनाए रखने की बात कही।
लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा और कोई सीट नहीं जीती, लेकिन कई सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन के वोट काटे। मायावती ने 2019 में सपा के साथ गठबंधन किया था, लेकिन बाद में इसे तोड़ लिया। मायावती का कहना है कि बसपा का लक्ष्य “बहुजन समाज को शासक वर्ग बनाना” है, और गठबंधन इस मिशन को कमजोर करता है।
इमरान मसूद की सियासी यात्रा
इमरान मसूद पश्चिमी यूपी में कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। उन्होंने 2007 में निर्दलीय विधायक के रूप में करियर शुरू किया और 2012 में कांग्रेस से विधायक बने। 2014 में पीएम मोदी के खिलाफ विवादित “बोटी-बोटी” बयान के बाद सुर्खियों में आए। 2022 में वे कांग्रेस छोड़कर सपा में गए, लेकिन टिकट न मिलने पर बसपा में शामिल हो गए। 2023 में मायावती ने उन्हें अनुशासनहीनता के आरोप में निकाल दिया, जिसके बाद वे फिर से कांग्रेस में लौटे।
2024 में मसूद ने सहारनपुर से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। उनकी बसपा के साथ गठबंधन की वकालत उनके मुस्लिम वोट बैंक और पश्चिमी यूपी में प्रभाव को दर्शाती है। मसूद ने कहा, “मैं राहुल और प्रियंका गांधी के साथ हूं, लेकिन बसपा के साथ गठबंधन से दलित-मुस्लिम एकता बढ़ेगी।”
चुनौतियां और संभावनाएं
- बसपा की रणनीति: मायावती की गठबंधन विरोधी नीति और कांग्रेस पर हमले संभावित गठबंधन को मुश्किल बनाते हैं। बसपा का फोकस 2027 से पहले संगठन मजबूत करने पर है, न कि सपा को फायदा पहुंचाने पर।
- सपा का रुख: सपा अखिलेश के नेतृत्व में अपने गठबंधन को मजबूत रखना चाहती है। मसूद के बयान पर सपा ने अभी कोई तीखी प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन वह बसपा को गठबंधन में शामिल करने से बच रही है।
- कांग्रेस की मजबूरी: कांग्रेस को यूपी में अपने दम पर खड़ा होने के लिए मजबूत सहयोगी चाहिए। बसपा का दलित वोट और मसूस का प्रभाव उसे आकर्षक बनाता है, लेकिन मायावती की शर्तें स्वीकार करना चुनौती है।
- सामाजिक समीकरण: पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम गठजोड़ा प्रभावी हो सकता है, लेकिन पूर्वी यूपी में सपा का यादव-मुस्लिम समीकरण मजबूत है। बस को इस समीकरण में सेंध लगाना मुश्किल होगा।
पिछले रुझान
- 2019 का गठबंधन: सपा-बस ने 2019 में गठबंधन किया, जिसमें सपा को 5 और बस को 10 सीटें मिलीं। लेकिन मायावी ने इसे नुकसानदेह बताकर तोड़ दिया।
- 2024 का प्रभाव: बस ने 2024 में अकेले लड़कर सपा-कांग्रेस के वोट काटे, जिससे बीजेपी को फायदा हुआ। उदाहरण के लिए, बदायूं में बसपा के मुस्लिम खां ने सपा के आदित्य यादव के वोट बांटे।
- उपचुनाव 2024: कांग्रेस ने मिरजापुर की मझवां सीट पर बस के साथ तालमेल की कोशिश की, लेकिन बस ने अलग उम्मी दवार उतारा।