कांग्रेस पार्टी जुटी इनकी नाराजगी दूर और डैमेज कंट्रेल करने में, प्रदेश प्रभारी ने दिए निर्देश, जाने कौन है वह सदस्य
उत्तराखंड के पर्व सीएम हरीश रावत ने चुनाव से पहले ही कांग्रेस पार्टी में हड़कंप मचा दिया। रावत के द्वारा ऐसा धमाका करा गया जिससे सब आश्चर्यचकित है। दरअसल, रावत ने बुधवार को ट्वीट कर पार्टी से नाराजगी जताई है। ऐसी नाराजगी रावत ने तब जाहिर करी जब उत्तराखंड विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार तेज हो गया है। पूर्व सीएम हरीश रावत की नाराजगी तब सामने आई जब कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी देहरादून में थे। कांग्रेस पार्टी इनकी नाराजगी दूर और डैमेज कंट्रेल करने में लग गई है।
कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे उत्तराखंड में हरीश रावत हैं। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि जब हेलीकॉप्टर क्रैश में सीडीएस बिपिन रावत समेत अन्य लोगों की मौत हुई थी, तो कांग्रेस ने एक रैली में श्रद्धांजलि दी थी। उस रैली में हरीश रावत की जय-जयकार हो रही थी। लेकिन उत्तराखंड में हरीश रावत कुछ वक्त से अलग-थलग महसूस कर रहे थे। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह से सामना समितियों और संगठनात्मक मुद्दों को लेकर हो चुका है।
मामला तब ज्यादा खराब हो गया जब इसमें प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव आ गए। क्योंकि दोनों के बीच इस बात को लेकर मतभेद हो रहा है कि प्रदेश में पार्टी को कैसे चलाया जाए। यह स्थिति और खराब इसलिए हो गई है क्योंकि कार्यकारी अध्यक्ष दूसरे खेमे के हैं और उन्होंने रावत को साइडलाइन कर दिया है। हरीश रावत से जुड़े सूत्रों ने बताया कि “परिवर्तन यात्रा के दौरान उन्होंने 4 से 5 रैलियां की, लेकिन उन्हें संगठन की ओर से कोई समर्थन नहीं मिला। स्थानीय नेताओं को रैली की बजाय कहीं और भेज दिया गया। ऐसे में हम बीजेपी से कैसे लड़ेंगे।”
कहीं उत्तराखंड में भी पंजाब जैसा संकट न खड़ा हो जाए, इसलिए आलाकमान इस स्थिति को कंट्रोल करने में जुट गया है। सूत्रों ने आजतक को बताया कि आलाकमान को पार्टी की ओर से निर्देश दिया गया है कि बीजेपी इसे मुद्दा बनाए, उससे पहले ही स्थिति को शांत कर लिया जाए। हालांकि, बताया यह भी जा रहा है कि आलाकमान ने अभी तक रावत से कोई संपर्क नहीं किया है।
हरीश रावत को गांधी परिवार का वफादार और संकटमोचक माना जाता है। रावत राहुल गांधी के भरोसेमंद भी हैं। कई बार मना करने के बावजूद राहुल गांधी ने रावत से कहा था कि जब तक पंजाब का मसला सुलझ नहीं जाता, तब तक वही पंजाब के प्रभारी रहेंगे। रावत ने इस बात का संकेत दिया है कि वो ‘विश्राम’ ले सकते हैं। हालांकि, इसे टिकट बंटवारे में भूमिका पाने के लिए दबाव की रणनीति के तौर पर भी देखा जा रहा है। रिटायरमेंट की ओर इशारा कर रावत ने कमजोर नस दबा दी है। ऐसे में इस बात में कोई हैरानी नहीं होगी कि देवेंद्र यादव रावत को मनाने के लिए अपनी एड़ी-चोटी का जोर लगा दें।