पर्यावरण पर भारी संकट, टॉयलेट पेपर और प्लास्टिक बना महाकाल, हर दिन काटें जा रहे हैं 27000 पेड़

प्रकृति ईश्वर की खूबसूरत रचना है और प्रकृति का अहम अंग है पेड़ और पर्यावरण। सदियों से इन पेड़ो ने हमें जीने और फलने-फूलने के लिए बहुत कुछ दिया है मगर हमारी गतिविधियों ने पर्यावरण को केवल नुकसान ही पहुंचाया है। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि जीवन को बचाने के लिए पहले हमें पेड़ों को बचाना होगा तभी हमारा पर्यावरण भी संभलेगा। धीरे-धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं और उन्हें यह अहसास हो गया है कि पर्यावरण की रक्षा के लिए अब सख्त कदम लेना जरूरी है।

“Close up of toilet paper hanging from a branch in the woods, symbolizing a makeshift washroom while camping.”


आपको यह जानकर हैरानी होगी कि टॉइलट पेपर को बनाने के लिए हर रोज 27,000 पेड़ काट दिए जाते हैं। अमेरिकी कंपनियां अकेले इतना पेपर उपयोग करती हैं, जिससे पृथ्वी को तीन बार लपेटा जा सकता है। हमारे द्वारा उपयोग की गई प्लास्टिक की चीजों के कारण सालाना लाखों समुद्री जीव मौत के घाट उतर जाते हैं।


आज के वक्त में बनाई जा रही एक ग्लास की बॉटल को पूरी तरह से नष्ट होने में 4,000 साल से ज्यादा लगते हैं। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि धरती पर मौजूद केवल 1% पानी का ही इस्तेमाल किया जा सकता है। बाकी बचा 97 फीसदी पानी समुद्र का है और 2 फीसदी बर्फ की अवस्था में आर्कटिक में है। कल पानी मिल सके इसके लिए हमें आज ही से पानी का संरक्षण करना होगा।


हमारी धरती की आबादी हर साल बढ़ती जा रही है। एक साल में लगभग 7.7 करोड़ लोग धरती पर बढ़ रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार जंगलों में पाए जाने वाली जीवों की करीब 50 हजार प्रजातियां हर साल विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि हर रोज करीब 137 प्रजातियों का अस्तित्व संकट में है।


मौसम में भी इसी कारण असंतुलन बढ़ रहा है। वनों में बारिश 100 एकड़ प्रति मिनट की दर से घट गई है। प्लास्टिक प्रदूषण से निपटना भी अब एक बड़ी चुनौती बन गया है। प्लास्टिक की चीजें कूड़े में 35 फीसदी पाई जाती हैं।


ऐल्युमिनियम को लगातार रीसाइकल किया जा सकता है। 1 ऐल्युमिनियम को रीसाइकल करने से इतनी ऊर्जा बचाई जा सकती है जिससे टीवी कम से कम 3 घंटे तक आसानी से चल सकती है। The World Counts की रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया में 80 ट्रिलियन ऐल्युमिनियम कैन्स का इस्तेमाल इंसानों के द्वारा किया जाता है।


पर्यावरण के अनुकूल हो फैशन कारोबार-
हर साल 30 फीसदी की रफ्तार से भारतीय कपड़ा कारोबार बढ़ रहा है। इसका करीब 5 फीसदी योगदान GDP में है, मगर यह पूरी तरह से कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स पर निर्भर है। ऐसे में पर्यावरण में कार्बन की मात्रा प्रत्येक कपड़े के बनने पर बढ़ती चली जाती है। कुछ आंकड़े से यह साफ हो जाता है कि फैशन कारोबार को पर्यावरण के हिसाब से बदलने की आवश्यकता है।

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