Birthday Special: अपने प्रदर्शन के बल पर रूढ़ियों और सामाजिक मान्यताओं को चुनौती देने वाली प्रसिद्ध अभिनेत्री ‘देविका रानी’

30 मार्च, 1908 को जन्मी देविका रानी हिंदी सिनेमा की वह अदाकारा थीं जो अपने दौर से कहीं आगे की सोच रखती थीं और अपने अभिनय के दम पर सामाजिक रुढ़ियों और मान्यताओं को चुनौती देकर नए मानवीय मूल्यों और सवेंदनाओं की स्थापना की। विषय की गहराई और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी उनकी फिल्मों ने अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय फिल्म जगत में नए मूल्य और मानदंड स्थापित किए। उनके अभिनय के बल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें जितनी लोकप्रियता और सराहना मिली उतनी फिल्म जगत के इतिहास में किसी और अभिनेत्री को नसीब नहीं हो सकी।

अभिनेत्री 'देविका रानी'

विशाखापटनम में जन्मी देविका रानी प्रसिद्ध कवि रवींद्रनाथ टैगोर के वंश से थीं। इंग्लैंड में कुछ वर्ष रहकर देविका रानी ने रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट में अभिनय की विधिवत पढ़ाई की। इस बीच उनकी मुलाकात सुप्रसिद्ध निर्माता हिमांशु राय से हुई। हिमांशु राय मैथ्यू अर्नाल्ड की कविता लाइट ऑफ एशिया के आधार पर इसी नाम से एक फ़िल्म बनाकर अपनी पहचान बना चुके थे। हिमांशु राय देविका रानी की सुंदरता पर मुग्ध हो गए और उन्होंने देविका रानी को अपनी फ़िल्म “कर्मा” में काम देने की पेशकश की जिसे देविका ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह वह समय था जब मूक फ़िल्मों के निर्माण का दौर समाप्त हो रहा था और रुपहले पर्दे पर कलाकार बोलते नजर आ रहे थे।

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हिमांशु राय ने जब वर्ष 1933 में फ़िल्म कर्मा का निर्माण किया तो उन्होंने नायक की भूमिका स्वयं निभायी और अभिनेत्री के रूप में देविका रानी का चुनाव किया। फ़िल्म देविका रानी ने हिमांशु राय के साथ लगभग चार मिनट तक “लिप टू लिप” दृश्य देकर उस समय के समाज को अंचभित कर दिया। इसके लिए देविका रानी की काफ़ी आलोचना भी हुई और फ़िल्म को प्रतिबंधित भी किया गया। इसके बाद हिमांशु राय ने देविका रानी से शादी कर ली और मुंबई आ गए।

मुंबई आने के बाद हिमांशु राय और देविका रानी ने मिलकर बांबे टॉकीज बैनर की स्थापना की और फ़िल्म ‘जवानी की हवा’ का निर्माण किया। वर्ष 1935 में प्रदर्शित देविका रानी अभिनीत यह फ़िल्म सफल रही। बाद में देविका रानी ने बांबे टॉकीज के बैनर तले बनी कई फ़िल्मों में अभिनय किया। इन फ़िल्मों में से एक फ़िल्म थी अछूत कन्या। वर्ष 1936 में प्रदर्शित “अछूत कन्या” में देविका रानी ने ग्रामीण बाला की मोहक छवि को रुपहले पर्दे पर साकार किया।

1933 में निर्मित कर्मा फ़िल्म देविका के कैरियर का अहम मोड़ साबित हुई। इस फ़िल्म ने अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता हासिल की और उन्हें प्रसिद्धि के शिखर पर पहुंचा दिया। यह यूरोप में रिलीज होने वाली अंग्रेज़ी भाषा में बनी पहली भारतीय फ़िल्म थी। जिसके लंदन में विशेष शो आयोजित किए गए और विंडसर पैलेस में शाही परिवार के लिए इसका विशेष प्रदर्शन भी किया गया। इस फ़िल्म की एक विशेष बात यह थी कि देविका ने उस दौर में चुंबन दृश्य देने का दुस्साहस किया था, जब इस बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। उन्होंने अपने पति हिमांशु राय के साथ चार मिनट लंबा किसिंग सीन किया था, जो भारतीय फ़िल्म इतिहास के सबसे लंबे चुंबन दृश्यों में माना जाता है।

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देविका रानी को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित दर्जनों सम्मान मिले। फ़िल्मों से अलग होने के बाद भी वह विभिन्न कलाओं से जुड़ी रहीं। वह नेशनल एकेडमी के अलावा ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय हस्तशिल्प बोर्ड तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद जैसी संस्थाओं से संबद्ध रहीं। इसके अलावा देविका रानी फ़िल्म इंडस्ट्री की प्रथम महिला बनी जिन्हें पद्मश्री से नवाजा गया। 9 मार्च 1994 को उनका निधन हो गया।

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