Birth Day Special: भारतीय राजनीति में हेमशा ‘अटल’ रहेंगे वाजपेयी

भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी का 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर के कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर में जन्म हुआ। निम्न मध्यवर्गीय शिक्षक परिवार में शुरुआती जीवन बहुत आसान नहीं था। कड़े संघर्ष और जिजीविषा से भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष बन गए। कुशल रणनीति के लिए जाने गए। ओजस्वी भाषणों की देश-दुनिया में प्रशंसा हुई। भारतीय राजनीति पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि देश की राजनीति के पितामह कहे जाने लगे। हिंदुस्तान की सियासत के कई दशकों का इतिहास इस चेहरे में सिमटा हुआ है।

अटल जी को हिंदी भाषा से काफी लगाव है। इस लगाव का असर उस वक्त भी देखा जा सकता था जब 1977 में जनता सरकार में विदेश मंत्री के तौर पर काम कर रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपना पहला भाषण हिंदी में देकर सभी के दिल में हिंदी भाषा का गहरा प्रभाव छोड़ दिया था। संयुक्त राष्ट्र में अटल बिहारी वाजपेयी का हिंदी में दिया भाषण उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ। यह पहला मौका था जब यूएन जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी।

आजादी की लड़ाई के दौरान ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी के संपर्क में आए। 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। अलग पहचान बनाई। संगठन को मजबूत बनाने की दिशा में काम किया। 1957 में दूसरी लोकसभा के लिए बलरामपुर सीट से सांसद बने। युवा थे। ओजस्वी भाषणों और विभिन्न विषयों पर पकड़ की वजह से विपक्ष की मजबूत आवाज बनकर उभरे।

वह पहली बार 1957 में संसद सदस्य चुने गए थे। साल 1950 के दशक की शुरुआत में आरएसएस की पत्रिका को चलाने के लिए वाजपेयी ने कानून की पढ़ाई बीच में छोड़ दी। बाद में उन्होंने आरएसएस में अपनी राजनीतिक जड़ें जमाईं और बीजेपी की उदारवादी आवाज बनकर उभरे। राजनीति में वाजपेयी की शुरुआत 1942-45 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में हुई थी। उन्होंने कम्युनिस्ट के रूप में शुरुआत की, लेकिन हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सदस्यता के लिए साम्यवाद को छोड़ दिया। संघ को भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथी माना जाता है।

अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से भारतीय राजनीति का हिस्सा बने। उन्होंने 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए। इसके बाद 1957 में वह सासंद बनें। अटल बिहारी वाजपेयी कुल 10 बार लोकसभा के सांसद रहे। वहीं वह दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा के सांसद भी रहें। इस दौरान अटल ने उत्तर प्रदेश, नई दिल्ली और मध्य प्रदेश से लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीते। वहीं वह गुजरात से राज्यसभा पहुंचे थे।

भाजपा के चार दशक तक विपक्ष में रहने के बाद वाजपेयी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने, लेकिन संख्याबल नहीं होने से उनकी सरकार महज 13 दिन में ही गिर गई। आंकड़ों ने एक बार फिर वाजपेयी के साथ लुका-छिपी का खेल खेला और स्थिर बहुमत नहीं होने के कारण 13 महीने बाद 1999 की शुरुआत में उनके नेतृत्व वाली दूसरी सरकार भी गिर गई। अन्नाद्रमुक प्रमुख जे जयललिता द्वारा केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने की पृष्ठभूमि में वाजपेयी सरकार धराशायी हो गई। लेकिन 1999 के चुनाव में वाजपेयी पिछली बार के मुकाबले एक अधिक स्थिर गठबंधन सरकार के मुखिया बने, जिसने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। गठबंधन राजनीति की मजबूरी के कारण भाजपा को अपने मूल मुद्दों को पीछे रखना पड़ा।

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11 और 13 मई 1998 को पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण विस्फोट कर अटल बिहारी वाजपेयी ने सभी को चौंका दिया। यह भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण था. इससे पहले 1974 में पोखरण 1 का परीक्षण किया गया था। दुनिया के कई संपन्न देशों के विरोध के बावजूद अटल सरकार ने इस परीक्षण को अंजाम दिया, जिसके बाद अमेरिका, कनाडा, जापान और यूरोपियन यूनियन समेत कई देशों ने भारत पर कई तरह की रोक भी लगा दी थी जिसके बावजूद अटल सरकार ने देश की जीडीपी में बढ़ोतरी की पोखरण का परीक्षण अटल बिहारी वाजपेयी के सबसे बड़े फैसलों में से एक है।

 

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