इस मंदिर के दर्शन कर लेने मात्र से हजारों तीर्थ का मिल जाता है फल
भारत हमेशा से ही धर्म प्रधान देश रहा है। यहां पर देवी,देवताओं में असंख्य मंदिर मौजूद है। यहां के लोगों की धर्म में आस्था को देखते हुए मंदिर जगह-जगह पर स्थित है। लोगों की इसी आस्था को देखते हुए कर्नाटक राज्य में एक मंदिर है जिसका नाम है मुकाम्बिका। आज हम आपको इसी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।
मुकाम्बिका कर्नाटक के उडुपी जिले के कोल्लूर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। जिसका नाम दक्षिण भारत के प्रसिद्ध मंदिरों की जाती है। यह मंदिर शक्ति को समंर्पित है। पूजा श्री मुकाम्बिका के नाम से की जाती हैं। इसी नाम से मिलता जुलता एक मंदिर और है जिसका नाम है मुकाम्बी या मूगंबिगाई मुख्य रूप से यह किला केरल और तमिलनाडु में स्थित है। यह मंदिर भी अन्य देवी-देवताओं के बीच अद्वितीय है इस मंदिर की देवी मुकाम्बिका महालक्ष्मी,महासरस्वती और महाकाली की शक्तियों का ही एक रूप है।
मुकाम्बिका
कोल्लूर मुकाम्बिका मंदिर हिंदूओं का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इस स्थान को सभी दिव्य शक्तियों का लोक माना जाता है। कि श्री मुकाम्बिका का ज्योतिर्लिंगम पुरुष और प्रकृति का एकीकरण है। ऐसा माना जाता है अगर आपने अपनी जिंदगी में एक बार यहां पर आकर प्रार्थना कर ली तो समझो आपने कई हजारों मंदिरों और तीर्थ कर लिए। सरस्वती के रूप में इस मंदिर की देवी कला और शिक्षा का रूप है।
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पौराणिक किवदंती
इस मंदिर से कई पौराणिक कवदंतियां भी जुड़ी है। माना जाता है कि प्राचीन समय में कोला नाम के महर्षि किसी राक्षस के दुराचार का शिकार हो गए थे। वह राक्षस अधिक शक्ति प्राप्त करने के लोभ में तपस्या कर रहा था। तब श्री मुकाम्बिका ने देवी सरस्वती के रूप में उस राक्षस को गूंगा बना दिया था, ताकि वो भगवान के सामने दुराचारी इच्छा न प्रकट कर सके। मूक हो जाने की वजह से उस राक्षस का नाम मुकासुर पड़ा यानी गूंगा राक्षस। गूंगा हो जाने के बाद गुस्से में उसका आतंक और बढ़ गया, वो ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगा। तब कोला महर्षि के अनुरोध पर मां पार्वती ने शक्ति का रूप धारण कर उस राक्षस का वध किया। जिसके बाद देवी नाम मुकाम्बिका पड़ा। महर्षि कोला के नाम पर गांव का नाम कोल्लूर रखा गया।
आने का सही समय
चूकिं यह एक प्रसिद्ध मंदिर है, इसलिए यहां श्रद्धालुओं का आगमन साल भर लगा रहता है, लेकिन मौसम के हिसाब से ग्रीष्मकाल के दौरान यह स्थल काफी ज्यादा गर्म रहता है। यहां आने का आदर्श समय नवंबर से लेकर मार्च के मध्य का है, इस दौरान यहां का तापमान काफी ज्यादा अनुकूल बना रहता है।
कैसे करें प्रवेश
यहां पर आप परिवहन के तीनों मार्गो से आ जा सकते हैं। यहां का निकटतम हवाईअड्डा मौंगलोर एयरपोर्ट है यहां से आप आसानी से इस मंदिर तक पहुंच सकते हैं। अगर आपको अच्छा लगें तो आप यहां पर सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं। सड़क मार्ग से आपको रास्ते के छोटे-बड़े स्थानों के बारे में भी पता चलेगा।