प्रेग्नेंसी के दौरान कराया गया जेनेटिक टेस्ट आपके शिशु को हर तरह की बीमारी से बचा कर रखता है
कई बीमारियां ऐसी होती है जो शिशु के पैदा होने से पहले ही बच्चें को उसके माता-पिता से लग जाती हैं। इन्हीं बीमारियों को जेनेटिक डिसआर्डर के नाम से भी जाना जाता है। डायबिटीज, कैंसर, हार्ट अटैक जैसी सैकड़ों खतरनाक बीमारियां हैं, जो अगर किसी व्यक्ति को हों, तो अगली पीढ़ी में उसके होने की संभावना बढ़ जाती है। दरअसल मां के गर्भ में जब शिशु का विकास हो रहा होता है तब ही वक्त होता है जब मां बाप के जीन्स से उसके शिशु में जीन्म प्रवेश करते हैं।
क्यों होती हैं जेनेटिक बीमारियां
जब बच्चा जन्म लेता है तो उसमें दो तरह प्रकार के जीन्म पाए जाते हैं एक मां के तो दूसरे पिता के यहीं जीन्स ही होते हैं जो बच्चे का रंग, व्यवहार, नैन-नक्शा डिसाइड करता है। इन्हीं जीन्स के साथ कई बार बच्चें के अंदर मां-पिता की बीमारियां उनके अंदर प्रवेश करती हैं। ऐसी बीमारियों को ही जेनेटिक कहा जाता है। यहीं बीमारियां बड़ी होकर जेनेटिक डिसआर्डर का रूप ले लेती हैं। कई ऐसी बीमारियां होती हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती ही रहती है। जो बच्चे इन बीमारियों के साथ जन्म लेते हैं तो उन्हें अपने जीवन में कई तरह की परेशानियों को झेलना ही पड़ता है।
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खतरनाक अनुवांशिक बीमारियां
कुछ ऐसी अनुवांशिक बीमारियां भी होती हैं, जो खतरनाक होती हैं, जैसे- थैलेसीमिया, सिकल सेल, हार्ट अटैक आदि। इसके अलावा डायबिटीज, मोटापा, खून की बीमारियां, दिल की बीमारियां, आंख की बीमारियां, मिर्गी, कैंसर आदि ऐसे विकार है, जो जन्म से पहले ही शिशु में मां-बाप के जीन्स द्वारा प्रवेश कर सकते हैं। इसलिए इन बीमारियों से बचाव के लिए जेनेटिक टेस्ट करना जरूरी है।
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जेनेटिक टेस्ट
जिस परिवार में इस तरह की बीमारियां होती ही रहती है तो उस परिवार में यह जरूरी हो जाता है कि आपको जेनेटिक टेस्ट करा लें। गर्भावस्था के समय जब भी कभी जब मां के साथ कुछ बुरा घटता हो तो उसका सीधा असर मां के बच्चें को पड़ता है। इसके अलावा जेनेटिक टेस्ट उन महिलाओं के लिए भी जरूरी है, जो देर से (आमतौर पर 30-35 साल के बाद) गर्भधारण करती हैं।