
नई दिल्ली। हम में से शायद ही कोई बिना काम के सरकारी दफ्तर जाना चाहे। वजह किसी से एक पूछो तो 50 बताएगा। अक्सर काम भी ऐसे ही होते हैं। लेकिन हर बार आपकी ‘सरकारी’ सोच के मुताबिक ही हो, सोचना शायद इस बार पाप हो।
हां, सरकारी अधिकारी थोड़े खडूस हो ही जाते हैं। काम का दबाव जो इतना रहता है। मगर, हाथ की पांचों अंगुलियां बराबर कहां होती हैं।
और हां हमें भी एक तराजू में सबको नहीं तौलना चाहिए। क्योंकि हम एक ऐसे अधिकारी के बारे में बता रहे हैं, जिसके बाद आप कुछ और करें न करें अपनी ‘सरकारी’ सोच जरूर बदल लेंगे।
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देश की राजनीतिक राजधानी यूपी के पूर्वांचल में बसे फैजाबाद के एक गांव मुमताज नगर में रमापति रहती हैं। उम्र 100 साल से ज्यादा की हो चुकी है। परिवार के नाम पर कोई नहीं। न कोई आगे न कोई पीछे। एकदम अकेली ही रह रही हैं। आमदनी नहीं है। परेशान हुईं। दरवाजा खटखटाया, किसी और का नहीं। जिले के राजा का। मतलब कलेक्टर। लेकिन वहां बुजुर्ग महिला को डीएम नहीं उनका बेटा मिल गया।
सर्दी में ठिठुरते हुए किसी तरह घिसटकर वो जिलाधिकारी कार्यालय तक तो पहुंचीं। पहचान पत्र वगैरह साथ लाई थीं। शायद किसी ने बोला हो कि बिना किसी पहचान पत्र के मदद नहीं मिलेगी। सभी जानते हैं, सरकारी मदद थोड़ी ही होती है। बाकी का सहारा खुद ही होना पड़ता है। मगर फिल्में भी तो कहीं से सीन लाती हैं। हो गया यहां भी वैसा ही।
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वो इतना सा मांगने गई थीं, लेकिन उन्हें बहुत सारा मिल गया। बिना किसी तकलीफ के अब रमापति की पूरी जिंदगी चैन और आराम के साथ गुजरेगी। ये सब मुमकिन हुआ है फैजाबाद के जिला मैजिस्ट्रेट अनिल कुमार पाठक की वजह से।
DM पाठक ने बुजुर्ग रमापति की गुजर-बसर का जिम्मा लिया है। वो जब तक जिंदा रहेंगी, तब तक। लोग बच्चा गोद लेते हैं, DM पाठक ने इस बूढ़ी महिला को मां बनाकर गोद लिया है।
सरकारी योजनाओं की मदद से तो वो रमापति की सहायता कर ही रहे हैं। इसके अलावा निजी तौर पर भी उन्होंने रमापति का खर्च उठाने का वादा किया है।
मिलने आईं थी डीएम से मिला बेटा
DM पाठक ने जब दफ्तर के बाहर इंतजार कर रहे लोगों की भीड़ में जब उन्होंने रमापति को देखा, तो मीटिंग छोड़कर बाहर आए। खुद आए और रमापति को अपने दफ्तर ले गए। भूखी रमापति को चाय-नाश्ता कराया। रमापति ने अपनी परेशानी बताई। मदद के लिए बोला जिसके लिए वो आई थीं। फिर डीएम उनकी सुनते रहे। इसलिए कि उन्हें कोई और सुना न सके।
अब रमापति के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत उनके लिए एक घर बनवाया जाएगा। वृद्धा पेंशन योजना और बीपीएल राशन कार्ड भी मुहैया कराया जाएगा। नजदीकी सरकारी अस्पताल का एक डॉक्टर नियमित तौर पर उनके घर जाकर उनकी जांच किया करेगा।
फिर देखा कि उनके लिए क्या-क्या किया जा सकता है। इसके बाद उन्होंने कुछ नकद रुपये देकर रमापति को वापस उनके घर भेजने का इंतजाम किया। इतना प्यार पाकर जब रमापति घर के लिए चलीं, तो उनकी आंखें गीली थीं।
जिलाधिकारी अनिल पाठक के अपने माता-पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। पिता की मौत करीब 10 साल पहले हुई थी। कोई सात बरस पहले मां भी चल बसीं। पिता का नाम पारस था। मां का नाम बेला था। उन दोनों की याद में अनिल पाठक ने एक किताब ‘पारस बेला’ भी लिखी है।
वो कहते हैं कि जब भी उन्हें कोई ऐसा बुजुर्ग मिलता है, जिसे उसके बच्चों ने छोड़ दिया होता है, तो वो उसकी हरसंभव मदद करने की कोशिश करते हैं।
साभार: दि लल्लनटॉप