गरीबी दूर करने के लिए मोदी सरकार ने तैयार की नई स्कीम, टारगेट 2019!

लोकसभा चुनावों में जीतनई दिल्ली नोटबंदी, जीएसटी और कालाधन पर लगाम लगाने के बाद अब सत्तारूढ़ भाजपा साल 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों में जीत हासिल करने की कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व करने वाले पीएम मोदी के इन तीन क्रांतिकारी क़दमों ने जहां दुनिया में उनकी ख्याति को बढ़ाया। वहीं इसकी निगेटिविटी भी लोगों में काफी देखने को मिली। शायद यही कारण रहा होगा कि चुनावों की बढ़ती नजदीकियों और पंजाब में कांग्रेस से मिली करारी हार के बाद केंद्र को गरीबों की सुध लेने का वक्त मिला।

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खबरों के मुताबिक़ सरकार ने देश की सबसे ज्यादा गरीब आबादी को 1.2 लाख करोड़ रुपये सालाना की यूनिवर्सल सिक्योरिटी कवरेज देने की महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है।

यह सरकार की उस योजना का हिस्सा है जिसके जरिए देश के सभी नागरिकों को व्यापक सुरक्षा के दायरे में लाने पर काम चल रहा है।

यूनिवर्सल सिक्योरिटी कवरेज की अनिवार्य योजना का खाका श्रम मंत्रालय ने खींचा है। वह जल्द इसके मसौदे को फाइनैंस मिनिस्ट्री के पास भेजेगा। फाइनैंस मिनिस्ट्री इसे अगले साल आम चुनाव से पहले लागू करने के लिए फंडिंग पर काम करेगी।

इस योजना के तहत गरीबों को तीन कैटिगरी में बांटा जाएगा और इसी के आधार पर प्रति व्यक्ति को मिलने वाले लाभ का निर्धारण किया जाएगा।

पहली कैटिगरी सबसे गरीब लोगों की होगी जिनका पूरा कॉन्ट्रिब्यूशन सरकार देगी। दूसरी कैटिगरी में वैसे गरीब होंगे, जिन्हें अपनी जेब से कॉन्ट्रिब्यूट करना होगा। तीसरी कैटिगरी उन लोगों की होगी, जिन्हें अपनी सैलरी का तय हिस्सा इसके लिए देना होगा।

इसके अलावा स्कीम दो टियर में बांटा गया है। पहले में अनिवार्य पेंशन, इंश्योरेंस (मृत्यु और विकलांगता) और मातृत्व कवरेज और दूसरा स्वैच्छिक चिकित्सा, बीमारी और बेरोजगारी कवरेज के लिए।

खबरों की मानें तो सरकार को उम्मीद है कि उनकी यह स्कीम शत-प्रतिशत काम करेगी और लोगों को पसंद भी आएगी।

यह भी बताया जा रहा है कि ‘यूनिवर्सल सोशल सिक्योरिटी’ स्कीम के तहत जमा की जाने वाली रकम को सब-स्कीमों में बांटा जाएगा और योगदान के हिसाब से लाभ तय करके उनको सुरक्षित बनाया जाएगा।’

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इस स्कीम में स्वैच्छिक कवरेज इस बात पर निर्भर करेगा कि अनिवार्य योजना के तहत कितना निवेश हुआ है।

सरकार को लगता है कि इस स्कीम में बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे, इसलिए इसे आर्थिक रूप से मजबूती मिलेगी और सैलरी का एक हिस्सा देने वालों के लिए भी यह स्कीम कारगर होगी।

देश में इस समय 45 करोड़ की वर्कफोर्स है, जिसमें सिर्फ 10 प्रतिशत संगठित क्षेत्र में है। इन्हें किसी-न-किसी तरह की सोशल सिक्योरिटी हासिल है।

हर साल एक करोड़ से ज्यादा लोग इस वर्कफोर्स का हिस्सा बनते हैं, लेकिन इनमें से ज्यादातर को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता और ज्यादातर के ऑर्गनाइज्ड सेक्टर में होने के चलते इनकी किसी तरह की सोशल सिक्योरिटी भी नहीं होती।

‘नवभारत टाइम्स’ के मुताबिक़ SECC 4 कैटिगरी में आने वाले सबसे गरीब लोगों (देश की कुल आबादी का लगभग 20 पर्सेंट) को सोशल सिक्योरिटी के दायरे में लाने पर हर साल 1.2 लाख करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

नई पॉलिसी उन चार कोड में से एक सोशल सिक्योरिटी कोड का हिस्सा होगी, जिन्हें फिलहाल श्रम मंत्रालय अंतिम रूप देने में जुटा है। देश में लागू सोशल सिक्योरिटी कवरेज के कानूनों के दायरे में आने वाली 17 मौजूदा स्कीमों की जगह यह पॉलिसी ले लेगी।

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ध्यान रहे इस स्कीम को बड़े ही लुभावने अंदाज में तैयार तो कर लिया गया है। लेकिन इसे अपने अंतिम चरण तक पहुंचाना सरकार के लिए आसान न होगा।

इस स्कीम के लिए फंड जुटाना सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। वजह, इस बजट का बड़ा हिस्सा सरकार पहले ही खर्च कर चुकी है।

यानी मलाई खिलाने का जो दिवास्वप्न मोदी सरकार ने देखा है। उसकी पूर्ति के लिए देश को दुहना ही सरकार का एक मात्र साधन होगा। फिर तो इसके लिए बड़ा तिकड़म भी लगाना होगा। कुल मिलाकर मोदी सरकार इस जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता को समर्पित स्कीम के तहत 2019 फतह का सपना जरूर देख रही है।

फिलहाल यदि यह स्कीम वाकई में लागू होती है तो यकीनन गरीबों का वक्त काफी हद तक बदल सकता है।

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