यूपी के इस सिंघम ने 8 जिलों से खोज निकाले गायब 90 नौनिहाल

पुलिस इंस्पेक्टरभदोही। फिल्मों से लेकर हकीकत की दुनिया में अभी तक आपने खाकी की हनक बिखेरने वाले तमाम पुलिस इंस्पेक्टर देखे और सुने होंगे, लेकिन आज की तारीख में कालीन नगरी में तैनात एक सिंघम की अनोखी सफलता के बारे में जानकर हर के लफ्जों से बरबस तारीफ ही निकलेगी।

इस सिंघम ने अब तक आठ जिलों के 33 थानों पर तैनाती के दौरान कुल 90 गुमशुदा बच्चों की बरामदगी कर न सिर्फ तमाम माता-पिताओं की दुआएं बटोरी हैं, बल्कि सही मायने में महकमे में भी अपनी अमिट पहचान बनाई है।

दुनिया में मखमली गलीचों के शहर के रूप में विख्यात भदोही जिले के गोपीगंज थाने पर इंस्पेक्टर के रूप में तैनात सुनील दत्त दूबे की तेज तर्रार कार्यशैली के अलावा बच्चों की गुमशुदगी के मामले में चंद समय में उन्हें ढूंढ निकालने में हासिल महारत ने उन्हें तमाम माता और पिता की दुआएं भी दिलाई हैं।

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अब तक 90 बच्चों की बरामदगी कर चुके सुनील का यह सफर वर्ष 1995 में मेरठ से शुरू हुआ था। ताजा मामला गोपीगंज थाना क्षेत्र के हीराचक डेहरिया की गुमशुदा दो सगी बहनों परी और खुशी सिंह की रांची में बरामदगी के रूप में सामने है।

मूलत: इटावा जिले के निवासी सुनील दत्त दूबे पूर्वाचल के जौनपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र भदोही समेत कुल आठ जिलों के 33 थानों पर तैनाती पा चुके हैं और वर्तमान में वह गोपीगंज थाने पर इन्सपेक्टर के रूप में तैनात हैं। सुनील ने गोपीगंज के हीराचक डेहरिया गांव निवासी गुमशुदा दो सगी बहने खुशी उर्फ स्वीटी सिंह (12) व परी सिंह (9) पुत्री उमाशंकर उर्फ छट्ठू सिंह को बरामद कर अब तक आठ जिलों के गुमशुदा कुल 90 बच्चों की बरामदगी करने का आंकडा पार कर लिया है।

बड़ी बात यह भी है कि बच्चों की बरामदगी का यश बटोरने वाले इस सिंघम ने क्राइम कंट्रोल और जनसामान्य की समस्याओं के समाधान में भी अपना योगदान दिया है। सोनभद्र में तैनाती के दौरान एंटी रोमियो टीम में हुलिया बदलकर फिल्मी अंदाज में कई मजनुओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया और भदोही कोतवाली थाना क्षेत्र में वर्षों से अतिक्रमण के चलते बेटी नागरिकों को जाम से भी राहत दिलाया है।

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बच्चों की गुमशुदगी के मामले के केस हैंडल करने में वह मेरठ के पूर्व एएसपी रणविजय सिंह से काफी प्रेरित रहे हैं, जिन्होंने अब तक तकरीबन चार सौ के करीब मामलों में सफलता का कीर्तिमान बनाया है।

इस सिंघम के मुताबिक, इस तरह के केस वह पूरी रुचि से हैंडल करते रहे हैं। इस दौरान बच्चों के लिए कार्य करने वाली तमाम संस्थाओं में हेल्पलाइन, टचलाइन से जुड़े लोगों का सराहनीय सहयोग मिलता रहा है।

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