न्यायमूर्ति कर्नन के खिलाफ जमानती वारंट जारी

कर्नन के खिलाफनई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.एस.कर्नन के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया है। उनके खिलाफ यह वारंट पूर्व में न्यायालय में पेश होने का आदेश नहीं मानने के बाद जारी किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने न्यायमूर्ति कर्नन से 31 मार्च से पहले शीर्ष अदालत के समक्ष पेश होने को कहा।

पीठ ने उन्हें 10,000 रुपये का निजी बांड भरने का भी निर्देश दिया।

इससे पहले महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने शीर्ष अदालत को बताया कि न्यायमूर्ति कर्नन ने अवमानना के मामले में अदालत में पेश होने से इनकार कर दिया है और सर्वोच्च न्यायालय के नियमानुसार, यदि कोई व्यक्ति अदालत में पेश नहीं होता है तो उसके खिलाफ जमानती वारंट जारी किए जाने का प्रावधान है।

अदालत ने यह भी कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के पंजीयन को आठ मार्च को न्यायमूर्ति कर्नन से एक संदेश मिला था, जिसमें लिखा था, “सीजेआई और अन्य न्यायाधीशों से मिलना चाहता हूं, ताकि कुछ चुनिंदा प्रशासनिक मुद्दों पर चर्चा कर सकूं, जिस वजह से कुछ न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं।”

इस पत्र को अवमानना याचिका का जवाब नहीं माना जा सकता। जमानती वारंट जारी कर उन्हें अदालत के समक्ष पेश करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

न्यायमूर्ति केहर के अलावा खंडपीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति जे.चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति मदन बी.लोकुर, न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष और न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ शामिल हैं।

इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायमूर्ति कर्नन के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया था।

यह सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में पहली बार हो रहा है कि उच्च न्यायालय के किसी मौजूदा न्यायाधीश के खिलाफ अवमानना मामले की कार्यवाही के लिए जमानती वारंट जारी किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय ने पहले कहा था कि न्यायमूर्ति कर्नन इस दौरान किसी तरह की न्यायिक एवं प्रशासनिक गतिविधियों में हिस्सा नहीं लेंगे।

न्यायमूर्ति रोहतगी ने मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया, “न्यायमूर्ति कर्नन के खिलाफ अवमानना का नोटिस जारी किया गया। हमें पता चला है कि कर्नन ने सीजेआई को दो पत्र लिखकर मद्रास उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों पर आरोप लगाए थे।”

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