55 साल के व्यक्ति ने 22 सालों से लिव-इन में रहने के बाद की शादी, 5 महीने की पोती बनी गवाह
झारखंड में एक सामूहिक विवाह समारोह में शामिल होने वालों जोड़ों की अपनी-अपनी कहानी है। ऐसी ही एक कहानी है कि रामलाल मुंडा की।
55 वर्षीय रामलाल मुंडा 45 साल की सहोदरी देवी के साथ पिछले 22 वर्षों से साथ रह रहे हैं। रामलाल आदिवासी हैं और सहोदरी लोहरा समाज से ताल्लुक रखते हैं। रामलाल सहोदरी के साथ गमुला में रहते थे और दोनों की शादी नहीं हुई थी। लोगों ने इस संबंध के विरोध में अपनी आपत्ति दर्ज कराई तो दोनों घाघरा आ कर रहने लगे। इन दोनों का एक 21 साल का बेटे है जीतेश्वर। जीतेश्वर को भी दो साल पहले 19 साल की अरुणा से प्यार हो गया था। इसलिए दोनों साथ रहने लगे। इन दोनों ने भी शादी नहीं की।
जब इन्हें रांची में लिव-इन रह रहे लोगों के सामूहिक विवाह की जानकारी मिली तो रामलाल और सहोदरी अपने बेटा-बहू के साथ सोमवार को दीनदयाल नगर स्थित झारखंड सिविल सर्विसेज इंस्टीट्यूट के परिसर में आए और इस कार्यक्रम का लाभ उठाते हुए शादी के बंधन के बंध गए। दिलचस्प बात यह थी की रामलाल की 5 महीने की पोती रोमिका भी अपने दादा-दादी के शादी की गवाह बनी। सामूहिक विवाह निमित्त व प्रदान संस्था के सौजन्य से संपन्न हुआ।
आदिवासी क्यों रहते हैं लिव-इन में?
आदिवासी समाज में विवाह के बाद पूरे गांव को दावत देने की परंपरा है। इसे ठुकुआ कहते है। इस आयोजन के नहीं होने पर शादी पूरी नहीं मानी जाती। पूरे समाज को भोज देने और इस ताम-झाम के साथ शादी हो गई तो उसके बाद नए जोड़े जब शादी के बाद घर में प्रवेश करते हैं तो उसे ढुकुआ बुलाते हैं। यानी नए जोड़े घर में ढुक गए।
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लेकिन इन दो रिवाजों के बीच में आदिवासी समुदाय के कई लोग फंस जाते हैं। खास तौर पर वे लोग जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होती। यहीं से एक ऐसा बेनाम रिश्ता जन्म लेता है जिसे आज की दुनिया लिव-इन रिलेशन के नाम से जानती है। शहरों में कुछ लोगों के लिए ये शौक भर हो सकता है।
लेकिन आदिवासी समाज में यह गरीबी और मजबूरी की मार है जिससे यह चलन पैदा है, जो दशकों से चली आ रही है। महिला और पुरूष साथ रहते हैं, पति-पत्नी की तरह जिंदगी जीते हैं, उनके बच्चे होते हैं, पारिवारिक जिम्मेदारी भई साझा करते हैं। लेकिन उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं होता है।