चाय बेचने को मजबूर ये एक्टर, मुमताज और गुरूदत्‍त के साथ किया है काम

लखनऊ। बॉलीवुड की दुनिया में आज का सितारा कल क्‍या और कैसा होगा इसका जवाब कोई नहीं दे सकता। फेम का एक दौर जब खत्‍म होता है तो बड़ी से बड़ी हस्‍ती भी अतीत की धूल बन जाती है। कभी राज किरण जैसा सितारा सालों बाद पागलखाने में मिलता है तो कभी कोई स्‍टार अस्‍पताल के बेड पर जिंदगी और मौत के बीच जूझता हुआ।

बॉलीवुड की दुनिया

बॉलीवुड ही नहीं ये हाल तो हर उस ग्‍लैमरस वर्ल्‍ड का है जहां लोग आपको सिर्फ तब तक पूछते हैं जब तक आपका नाम बोलता है। उसके बाद तो अपने भी मुंह चुरा लेते हैं। ऐसा ही कुछ 50 के दशक के उस एक्‍टर के साथ हुआ जिसने मुमताज और गुरुदत्‍त जैसी हस्तियों के साथ काम किया और नाम कमाया। आज वक्‍त और हालात के आगे मजबूर होकर उसे चाय बेच कर गुजारा करना पड़ा रहा है।

शाहपुर गांव के रहने वाले 68 वर्षीय चाय विक्रेता दूधनाथ कभी बॉलीवुड और मराठी फिल्मों का हिस्सा हुआ करते थे। फिल्‍म इंडस्‍ट्री में वह डीएन नाम से जाने जाते थे। एक्‍ट्रेस मुमताज ने ही उन्‍हें यह नाम दिया था। मुमताज उन्‍हें डीएन कहकर ही पुकारती थीं।

उन्‍होंने एक मराठी और दो हिंदी फिल्‍मों में काम किया था। अब भले वह इंडस्‍ट्री से दूर है लेकिन आज भी डीएन आत्‍मसंतुष्‍टि के लिए फिल्‍म की स्क्रिप्‍ट लिखते हैं।

बता दें, दूधनाथ यादव का जन्‍म साल 1952 में उत्तरप्रदेश के शाहपुर गांव में हुआ था। वह अपने पिता बलदेव यादव के बड़े पुत्र हैं। महज 7 साल की उम्र में ही दूधनाथ यादव पोलियो का शिकार हो गए थे।  घर में पैसों की तंगी की वजह से उन्‍हें 10 साल की उम्र में ही मुंबई अपने चाचा के पास जाना पड़ा।

डीएन के मुताबिक उस वक्‍त उनके चाचा ने उन्‍हें भार समझ कर घर से बाहर निकाल दिया था। इस वजह से उन्‍हें एक मारवाड़ी होटल में काम करना पड़ा। परस्थितियों से थक हार कर एक दिन वह वहां से भाग गए। वह भाग कर जिस पुल पर बैठे रो रहे थे वहां उन पर बॉलीवुड एक्‍टर जितेंद्र और एक्‍ट्रेस मुमताज की नजर पड़ी। उन्‍होंने डीएन को ‘खेह सदन’ अनाथालय में डाल दिया।

अक्‍सर मुमताज उनसे मि‍लने वहां जाया करती थीं। एक रोज शूटिंग के सिलसिले में गुरुदत्त भी उसी अनाथालय गए। वहां उन्होंने दूधनाथ को अपनी मराठी फिल्‍म में लेने का फैसला किया। डीएन के किस्‍मत के दरवाजे खुल गए औश्र उन्‍हें फिल्‍म में काम मिल गया।

गुरुदत्त की ही दूसरी फिल्म ‘मुझे सीने से लगा लो’ में भी उन्‍हें काम मिला। उसके बाद एक रोज उन्‍होंने जितेंद्र और मुमताज को कहानी लिखकर दिखाई जिसकी दोनों ने काफी तारीफ की।

मुमताज ने उन्हें 1969 में फिल्म ‘कठपुतली’ में काम दिलाया। उसी दौरान मुमताज उन्‍हें प्यार से डीएन बुलाने लगीं। मुमताज की मदद से ही उन्‍होंने डीवी फिल्म्स का बैनर भी पाया। लेकिन जब मुमताज बॉलीवुड को छोड़ विदेश चली गईं। तभी से डीएन का बुरा दौर शुरू हो गया और उन्‍हें पैसों की तंगी होने लगी।

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मुमताज का साथ क्‍या छूटा करीबियों ने भी डीएन से हाथ छुड़ाना शुरू कर दिया। फिर दूधनाथ ने गांव वापस आने का फैसला लिया। लेकिन तब भी किस्‍मत की मार ऐसी पड़ी कि उनका सारा सामान चोरी हो गया।

अब वह अपने रह-गुजर के लिए गांव में गुमटी खेलकर चाय-पान बेचने का काम करते हैं। हालांकि अभी तक उन्‍हें फिल्‍मी दुनिया से उतना ही प्‍यार है। उन्‍होंने दो एलबम ‘पिया निरमोहिया’ और ‘नाचे कांवरिया झूम के’ भी तैयार किया।

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