जीवन में हर सुख पाना चाहते हैं तो करें शिव की आराधना

जीवनशिव अनन्‍त हैं और शिव ही ब्रम्‍हाण्‍ड हैं। यह सारा विश्‍व शिवमय है और शिव ही एक मात्र हैं, इनके सिवा दूसरा कोई नहीं है। शिव के पास ही आदिशक्ति और सृजनशक्ति हैं। ब्रम्‍हा और विष्‍णु भी जिन्‍हे अपना आराध्‍य मानते हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ  पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं। उन्हीं से  ब्रम्‍हा, विष्‍णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं।

कथा के अनुसार, प्रलयकाल के पश्चात सृष्टि के आरम्भ में भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा जी अपने कारण का पता लगाने के लिये कमलनाल के सहारे नीचे उतरे। वहाँ उन्होंने शेषशायी भगवान नारायण को योगनिद्रा में लीन देखा। उन्होंने भगवान नारायण को जगाकर पूछा- ‘आप कौन हैं?’ नारायण ने कहा कि मैं लोकों का उत्पत्तिस्थल और लयस्थल पुरुषोत्तम हूँ। ब्रह्मा ने कहा- ‘किन्तु सृष्टि की रचना करने वाला तो मैं हूँ।’ ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने शरीर में व्याप्त सम्पूर्ण  ब्रम्‍हाण्‍ड का दर्शन कराया। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा- ‘इसका तात्पर्य है कि इस संसार के स्त्रष्टा मैं और आप दोनों हैं।’

भगवान विष्णु ने कहा- ‘ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सबके परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सबके आदि कारण भगवान सदाशिव आपको दिखायी देंगे। जब ब्रह्मा जी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- ‘ये कौन हैं? नारायण ने बताया ये ही देवाधिदेव भगवान  महादेव  हैं। ये ही सबको उत्पन्न करने के उपरान्त सबका भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इनका न कोई आदि है न अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।’ इस प्रकार ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया।

शिव का परिवार बहुत बड़ा और इनके परिवार में सुर-असुर सभी हैं। माता पार्वती इनकी अर्धांगिनी हैं और गणेश व कार्तिकेय जी इनके पुत्र। अनहोनी को होनी में बदलने का एकमात्र अधिकार सिर्फ भगवान शिव में है। शिव को ही ब्रम्‍हा का लिखा मिटाने का अधिकार है। शिव ही एक मात्र ऐसे हैं जिन्‍हे अपने भक्‍तों से किसी भी वस्‍तु की चाहत नहीं हैं और शिव सिर्फ देना जानते हैं।

सनातन धर्म में सोमवार को भगवान शिव का वार कहा गया है। लेकिन सभी वार शिव से ही प्रकट हुए हैं। शिव ही एक मात्र ऐसे हैं जिनकी आराधना किसी भी समय और कहीं भी की जा सकती है। यहां तक की श्‍मशान मे भी। जो शिव की शरण में आ गया उसे फिर अन्‍य कहीं जाने आवश्‍यकता नहीं । शिव अपने भक्‍तों को वह भी देते हैं जो उनके भक्‍तों के भाग्‍य में होता है और वह भी जो उनके भाग्‍य में नहीं होता है।

ऐसे करें महादेव की पूजा

  • किसी भी मास के शुक्‍ल पक्ष के सोमवार से शिव की आराधना शुरु करें ।
  • अपने घर के आस-पास स्थित किसी शिव मंदिर में सुबह स्‍नान करने के बाद तांबे के लोटे जल भर कर शिवलिंग पर अर्पित करें
  • मंदिर से लौट कर आने के बाद उसी लोटे से एक लोटा जल सूर्य को अर्पण करें
  • अपने घर के मंदिर में शिव जी का एक चित्र स्‍थापित करें । ध्‍यान रहे उस चित्र में उनके साथ पार्वती, गणेश और कार्तिकेय भी हों
  • ऊँ नम: शिवाय का 108 बार जाप करें । ऐसा नियमित करें।
  • शिवजी से अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए विनम्र प्रार्थना करें।
  • घर से निकलने से पहले कुछ मीठा खाकर निकलें
  • आप चाहे तो महामृयुंजय मंत्र का जाप भी कर सकते हैं
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