H-1B वीजा पर $100,000 शुल्क: व्हाइट हाउस का तर्क, अमेरिकी नौकरियों की रक्षा, लेकिन भारतीय आईटी कंपनियों पर संकट

व्हाइट हाउस ने 19 सितंबर 2025 को जारी एक फैक्टशीट में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा H-1B वीजा की नई याचिकाओं पर $100,000 (लगभग ₹88 लाख) का शुल्क लगाने के फैसले को उचित ठहराया है। इस कदम का उद्देश्य अमेरिकी नौकरियों की रक्षा करना और H-1B वीजा प्रणाली के दुरुपयोग को रोकना बताया गया है।

फैक्टशीट में दावा किया गया है कि कई कंपनियों ने हजारों अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकालकर उनकी जगह H-1B वीजा धारकों को नियुक्त किया, जिससे अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान हुआ। इस नीति ने भारत की $283 बिलियन की आईटी इंडस्ट्री में हलचल मचा दी है, जो इस वीजा पर बहुत हद तक निर्भर है।

व्हाइट हाउस फैक्टशीट के प्रमुख बिंदु

व्हाइट हाउस की फैक्टशीट में निम्नलिखित तर्क दिए गए हैं:

  1. H-1B वीजा का बढ़ता हिस्सा: 2003 में आईटी क्षेत्र में H-1B वीजा धारकों का हिस्सा 32% था, जो हाल के वर्षों में बढ़कर 65% से अधिक हो गया है। यह दर्शाता है कि कंपनियां स्थानीय श्रमिकों की तुलना में विदेशी श्रमिकों पर अधिक निर्भर हो रही हैं।
  2. अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी: फैक्टशीट में कई कंपनियों के उदाहरण दिए गए हैं जो H-1B वीजा धारकों को नियुक्त करते हुए अमेरिकी कर्मचारियों को नौकरी से निकाल रही हैं:
  • एक कंपनी ने FY 2025 में 5,189 H-1B वीजा स्वीकृत कराए, लेकिन उसी वर्ष 16,000 अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल दिया।
  • एक अन्य कंपनी ने 1,698 H-1B वीजा स्वीकृत कराए और जुलाई 2025 में ओरेगन में 2,400 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी की।
  • तीसरी कंपनी ने 2022 से अब तक 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों को निकाला, जबकि उसी अवधि में 25,075 H-1B वीजा स्वीकृत कराए।
  • चौथी कंपनी ने फरवरी 2025 में 1,000 अमेरिकी कर्मचारियों को हटाया और 1,137 H-1B वीजा स्वीकृत कराए।
  1. राष्ट्रीय सुरक्षा चिंता: व्हाइट हाउस का दावा है कि H-1B प्रणाली का दुरुपयोग कंपनियों को कम वेतन पर विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करने की अनुमति देता है, जिससे अमेरिकी श्रमिकों के लिए वेतन दबाव और नौकरी असुरक्षा बढ़ती है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है।
  2. अमेरिकी स्नातकों पर प्रभाव: हाल के कंप्यूटर साइंस स्नातकों में बेरोजगारी दर 6.1% और कंप्यूटर इंजीनियरिंग स्नातकों में 7.5% है, जो बायोलॉजी या आर्ट हिस्ट्री जैसे क्षेत्रों की तुलना में दोगुनी है। यह H-1B प्रणाली के कारण अमेरिकी स्नातकों के लिए कम अवसरों को दर्शाता है।
  3. शुल्क का उद्देश्य: $100,000 का शुल्क केवल नई H-1B याचिकाओं पर लागू होगा, न कि मौजूदा वीजा धारकों या नवीनीकरण पर। यह कंपनियों को यह विचार करने के लिए मजबूर करेगा कि क्या विदेशी कर्मचारी इतने मूल्यवान हैं कि इस लागत को वहन किया जाए, या स्थानीय अमेरिकी कर्मचारियों को नियुक्त करना बेहतर है।

भारतीय आईटी कंपनियों पर प्रभाव

भारत की प्रमुख आईटी कंपनियां जैसे TCS, इन्फोसिस, विप्रो, HCLTech, और कॉग्निजेंट, जो FY25 में 13,870 H-1B वीजा (कुल 106,922 का 13%) प्राप्त करती हैं, इस शुल्क वृद्धि से सबसे अधिक प्रभावित होंगी। नासकॉम ने चेतावनी दी है कि यह नीति व्यवसाय निरंतरता को बाधित करेगी और रोजगार पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगी:

  • वित्तीय बोझ: इन कंपनियों की वीजा लागत $13.4 मिलियन से बढ़कर $1.34 बिलियन हो सकती है, जो उनकी FY25 की संयुक्त शुद्ध लाभ का 10% है। उदाहरण के लिए, TCS (5,505 वीजा) को अतिरिक्त $550.5 मिलियन और इन्फोसिस (2,004 वीजा) को $200.4 मिलियन का खर्च वहन करना होगा।
  • प्रतिस्पर्धात्मकता पर असर: JSA एडवोकेट्स के सजाई सिंह के अनुसार, H-1B पर निर्भर कंपनियां प्रतिस्पर्धात्मकता खो सकती हैं, जिससे उन्हें अपने बिजनेस मॉडल और हायरिंग रणनीतियों पर पुनर्विचार करना होगा।
  • शेयर बाजार की प्रतिक्रिया: घोषणा के बाद, इन्फोसिस के ADR में 4.5%, विप्रो में 3.4%, और कॉग्निजेंट में 4.3% की गिरावट दर्ज की गई, जो निवेशकों की चिंताओं को दर्शाता है।

व्हाइट हाउस का तर्क: अमेरिकी नौकरियों की रक्षा

व्हाइट हाउस के प्रवक्ता विल शार्फ ने कहा कि H-1B प्रणाली “सबसे अधिक दुरुपयोग” वाली वीजा प्रणालियों में से एक है। इस शुल्क का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल “वास्तव में अत्यधिक कुशल” लोग ही देश में प्रवेश करें और अमेरिकी श्रमिकों को विस्थापित न करें। वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने कहा, “अब कंपनियां विदेशी श्रमिकों को प्रशिक्षित करने के बजाय अमेरिकी विश्वविद्यालयों के हाल के स्नातकों को प्रशिक्षित करेंगी।” उन्होंने दावा किया कि सभी बड़ी टेक कंपनियां इस नीति का समर्थन करती हैं।

फैक्टशीट में यह भी उल्लेख किया गया है कि कुछ कंपनियां अमेरिकी श्रमिकों को नौकरी से निकालकर उनकी जगह H-1B धारकों को नियुक्त करती हैं और उन्हें अपने प्रतिस्थापियों को प्रशिक्षित करने के लिए मजबूर करती हैं, जो गैर-प्रकटीकरण समझौतों (NDAs) के तहत होता है।

आलोचना और कानूनी चुनौतियां

  • नासकॉम की चिंता: नासकॉम ने चेतावनी दी कि यह शुल्क अमेरिका के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र और रोजगार अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा, क्योंकि भारतीय पेशेवर (H-1B धारकों का 71%) AI और अन्य अग्रणी प्रौद्योगिकियों में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
  • कानूनी सवाल: अमेरिकन इमिग्रेशन काउंसिल के नीति निदेशक आरोन रीचलिन-मेलनिक ने इस शुल्क की वैधता पर सवाल उठाए, क्योंकि कांग्रेस ने केवल आवेदन प्रक्रिया की लागत वसूलने के लिए शुल्क निर्धारित करने की अनुमति दी है। अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष जेफ जोसेफ ने कहा कि वे इस आदेश के खिलाफ कानूनी चुनौती देने की तैयारी कर रहे हैं।
  • नवाचार पर प्रभाव: चैंबर ऑफ प्रोग्रेस के संस्थापक एडम कोवासेविच ने चेतावनी दी कि यह नीति AI जैसे क्षेत्रों में अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मकता को कमजोर कर सकती है, क्योंकि वैश्विक प्रतिभाओं तक पहुंच सीमित हो जाएगी।

भारत के लिए प्रभाव और रणनीतिक बदलाव

  • रोजगार पर असर: यह शुल्क भारतीय तकनीकी कर्मचारियों के लिए H-1B अवसरों को कम कर सकता है, क्योंकि कंपनियां लागत कम करने के लिए हायरिंग में कटौती कर सकती हैं। ग्रीन कार्ड की लंबी प्रतीक्षा के साथ, कई पेशेवर भारत लौट सकते हैं या कनाडा, यूके, और यूएई जैसे देशों में अवसर तलाश सकते हैं।
  • स्थानीय भर्ती और ऑफशोरिंग: भारतीय कंपनियां पहले ही H-1B पर निर्भरता को 50% से अधिक कम कर चुकी हैं। TCS और इन्फोसिस जैसी कंपनियां अमेरिका में 50% से अधिक स्थानीय कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं और टेक्सास व नॉर्थ कैरोलिना में डिलीवरी सेंटर स्थापित कर रही हैं। AI, ऑटोमेशन, और ऑफशोर डिलीवरी में निवेश से लागत को कम करने की कोशिश की जा रही है।
  • भारत के लिए अवसर: विशेषज्ञों जैसे मोहनदास पाई और अमिताभ कांत का मानना है कि यह नीति भारत में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) को बढ़ावा दे सकती है, जिससे बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर नवाचार केंद्र बन सकते हैं। यह भारतीय पेशेवरों को देश में स्टार्टअप और तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है。

व्हाइट हाउस की फैक्टशीट H-1B वीजा शुल्क वृद्धि को अमेरिकी नौकरियों की रक्षा और प्रणाली के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी बताती है, जिसमें कंपनियों द्वारा 27,000 अमेरिकी कर्मचारियों की छंटनी के बावजूद 25,075 H-1B वीजा स्वीकृत करने जैसे उदाहरण दिए गए हैं। हालांकि, यह नीति भारतीय आईटी कंपनियों के लिए वित्तीय और रणनीतिक चुनौतियां पेश करती है, जो अमेरिकी निर्यात पर निर्भर हैं।

कानूनी चुनौतियां और कूटनीतिक बातचीत इस नीति के भविष्य को निर्धारित करेंगी। भारत सरकार और नासकॉम को इस मुद्दे पर अमेरिका के साथ सक्रिय रूप से काम करने की आवश्यकता है, ताकि भारतीय पेशेवरों और कंपनियों के हितों की रक्षा हो सके।

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