
नई दिल्ली : हमलोग फ़िल्मी कहानी को बहुत ही ध्यान से देखते हैं, और मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। फ़िल्में हमारे जीवन पर गहरी छाप भी छोड़ती हैं। कई बार कुछ फ़िल्में हमें विचलित भी कर देती हैं। पर फ़िल्में कहीं न कहीं हमारी ज़िन्दगी से जुड़ी होती हैं। बस इन फिल्मों में मिर्च मसाला लगाकर कहानी को अच्छे ढंग से परोस दिया जाता है। आज हम आपको एक ऐसी महिला की आपबीती बताने जा रहे हैं जो ‘बजरंगी भाईजान’ और ‘गदर’ फिल्म से भी ज्यादा विचलित करने वाली है। इस महिला का नाम हरभजन कौर है। अमृतसर के राजासांसी में रहने वाली हरभजन कौर को न ही किसी बजरंगी भाईजान का सहारा मिला और न ही उन्हें पाकिस्तान पहुंचाने के लिए किसी ने गदर किया।
1946 में में हुई थी हरभजन कौर की शादी
हरभजन कौर 1946 में शादी कर लाहौर में बस गईं थी। 1947 में विभाजन के दौरान हुए दंगों में उनके पति सहित परिवार के लोग दंगाइयों की भेंट चढ़ गए। हरभजन कौर की ये ‘बदनसीबी’ थी कि कराची के अफजल खान ने उन्हें बचा लिया। अफजल ने उन्हें हिदुस्तान भेजने की तमाम कोशिशें कीं, पर सफलता नहीं मिली।
अफजल को कुछ समझ नहीं आया तो इस विकट परिस्थिति में हरभजन कौर का धर्म परिवर्तन करवाकर उनसे निकाह कर लिया, और फिर हरभजन कौर शहनाज बेगम बन गईं। घडी की सूइयां चलती रही, वाट का पहिया घूमता रहा और हरभजन कौर छह बच्चों की मां बनी। अपना अतीत भूलकर ज़िन्दगी में काफी आगे निकल चुकी हरभजन कौर को फिर एक बार भारत आने का अवसर मिला।
साल 1962 में भारत-पाक की सरल वीजा नीति के कारण हरभजन अपने पैतृक गांव राजासांसी (अमृतसर) पहुंची। जहां बेटी को देखने के लिए मां-बाप की बूढ़ी आंखें तरस रही थी। सालों बाद बेटी को सामने देखकर उनकी आंखें चमक उठी, उन्होंने फिर अपनी बेटी को पाकिस्तान वापस नहीं जाने दिया।
हरभजन कौर को बेटे की मौत ने हिला दिया
हरभजन एक बार फिर खुद को ऐसे मोड़ पर खड़ा पाया जहाँ से रास्ता चुनना आसान नहीं था। एक रास्ते पर अफजल और उनके छे बच्चे तो दूसरी तरफ माँ-बाप का साथ। ऐसे मोड़ पर खड़ी होकर हरभजन न तो खुश हो सकती थीं न ही ग़म मना सकती थीं। इसी बीच खबर आई कि पाकिस्तान में छह बच्चों में से एक की मौत हो गई है। इस खबर ने हरभजन को हिला कर रख दिया।
बेटी की अवस्था को देखकर परिवार वालों ने उसका विवाह अमृतसर में गुरबचन सिंह नामक व्यक्ति से करवा दिया। परिस्थितियों के आगे हरभजन कौर ने घुटने टेक दिए। गुरबचन सिंह का एक बेटा रोमी था। रोमी बड़ा हुआ तो हरभजन कौर ने उसे अपनी सारी दास्तां सुनाई। मां की दर्द भरी कहानी सुन रोमी ने उनको पाकिस्तान में उनके बच्चों से मिलाने का प्रण किया। वर्ष 1989 में रोमी यूएसए चला गया और कुछ साल बाद वह कनाडा शिफ्ट हो गया।
86 वर्षीय हरभजन कौर फफक उठी
2007 में पति गुरबचन के निधन के बाद हरभजन भी बेटे के पास चली गई। उसके बाद मां को पाकिस्तान में बच्चों से मिलाने के लिए रोमी ने पाकिस्तान के एक उर्दू समाचार पत्र में विज्ञापन दिया। यह विज्ञापन हरभजन की बड़ी बेटी खुर्शीद ने देखा तो उसने रोमी से संपर्क साधा। इसके बाद खुर्शीद कनाडा पहुंची। खुर्शीद को देखकर 86 वर्षीय हरभजन कौर फफक उठी। कनाडा की राष्ट्रीयता होने के कारण हरभजन को पाकिस्तान का वीजा आसानी से मिल गया।
7 फरवरी 2017 को हरभजन कौर कराची पहुंची। कराची में हरभजन कौर के पांच बच्चों का एक बड़ा कुनबा उनसे मिला। 51 साल बाद 86 वर्षीय हरभजन कौर की आस पूरी हुई। हरभजन कौर के बच्चों की शादी हो चुकी है और वे दादा भी बन चुके हैं। परिवार में कुल 42 पोतों-पोतियां, दोहतों-दोहतियों व पड़पोते-पड़पोतियों को देखकर हरभजन कौर रोते हुए बच्चों से लिपट गई।
हरभजन कौर को 9 अप्रैल तक पाकिस्तान में रहने की अनुमति
हरभजन कौर के परिवार को नजदीक से जानने वाले इतिहासकार सुरिदर कोछड़ बताते हैं कि वह बटवारे में बंट गई। इस मां ने हर पल अपने पाकिस्तानी बच्चों के लिए गुजारा। 51 वर्ष बाद हरभजन को कराची में रहने वाले अपने बच्चों से मिलना नसीब हुआ। फिलहाल हरभजन के पास 9 अपै्रल तक का ही वीजा है। इसके बाद उसे पाकिस्तान से लौटना होगा।