…तो इसलिए होती है हनुमान जी के भक्‍तों पर शनिदेव की विशेष कृपा

हनुमान जीएक बार हनुमान जी श्री राम के किसी कार्य में व्यस्त थे | उस जगह से शनिदेव जी गुजर रहे थे की रास्ते में उन्हें हनुमानजी दिखाई पड़े | अपने स्वभाव की वजह से शनिदेव जी को शरारत सूझी और वे उस रामकार्य में विघ्‍न डालने हनुमान जी के पास पहुच गये | हनुमानजी शनि देव को चेतावनी दी और उन्हें ऐसा करने से रोका पर शनिदेव जी नहीं माने | हनुमानजी ने तब शनिदेव जी को अपनी पूंछ से जकड लिया और फिर से राम कार्य करने लगे | कार्य के दौरान वे इधर उधर खुद के कार्य कर रहे थे | इस दौरान शनिदेवजी को बहूत सारी चोंटें आई | शनिदेव ने बहूत प्रयास किया पर बालाजी की कैद से खुद को छुड़ा नहीं पाए | उन्होंने हनुमाान से विनती की पर हनुमानजी कार्य में खोये हुए थे |

जब राम कार्य ख़त्म हुआ तब उन्हें शनिदेवजी का ख्याल आया और तब उन्होंने शनिदेव को आजाद किया | शनिदेव जी को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने हनुमानजी से माफ़ी मांगी की वे कभी भी राम और हनुमान जी के कार्यो में कोई विध्न नहीं डालेंगे | और श्री राम और हनुमान जी के भक्तो को उनका विशेष आशीष प्राप्त होगा |

शनिदेव जी ने भगवान श्री हनुमान से कुछ सरसों का तेल माँगा जिसे वो अपने घावो पर लगा सके और जल्द ही चोटो से उभर सके | हनुमानजी ने उन्हें वो तेल उपलब्ध करवाया और इस तरह शनिदेव के जख्म ठीक हुए | तब शनिदेव जी ने कहा की इस याद में जो भी भक्त शनिवार के दिन मुझपर सरसों का तेल चढायेगा उसे मेरा विशेष आशीष प्राप्त होगा।

एक कथा के अनुसार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव जो को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया | जब तक हनुमानजी लंका नहीं पहुचे तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे | जब हनुमान सीता की खोज में लंका में आये तब माँ जानकी को खोजते खोजते उन्हें भगवान् शनि देव जेल में कैद मिले | हनुमानजी ने तब शनि भगवान को आजाद करााया | आजादी के बाद उन्होंने हनुमानजी का धन्यवाद किया और उनके भक्तो पर विशेष कृपा बनाये रखने का वचन दिया |

हनुमानजी का भक्त और किसी का भक्त नहीं होता। यूं तो शनिदेव के अनेक प्रसिद्ध मंदिर हैं। उनमें से मध्यप्रदेश में ग्वालियर के निकट एंती गांव में स्थित शनिदेव का मंदिर बहुत खास माना जाता है। मंदिर के बारे में मान्यता है कि हनुमानजी ने शनिदेव को उठाकर यहां फेंक दिया था, यहां त्रेतायुग से ही शनिदेव की प्रतिमा विराजमान है। यह इलाका शनिक्षेत्र के नाम से मशहूर है। यहां शनिवार को दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और न्याय के लिए प्रार्थना करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में शनि की प्रतिमा किसी ने नहीं रखवाई बल्कि ये आसमान से टूट कर गिरे एक उल्कापिंड से निर्मित है। खगोलविद एवं ज्योतिषियों का ऐसा मानना है कि ये मंदिर निर्जन वन में स्थापित होने के कारण इसका विशेष प्रभाव है। इस उल्कापिंड के आसपास बाद में मंदिर का निर्माण कराया गया। इस शनि मंदिर का निर्माण विक्रमादित्य ने करवाया था। बाद में कई शासकों ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।

यह भी कहा जाता है कि लंका से प्रस्थान करते समय शनिदेव ने लंका को तिरछी दृष्टि से देखा था। इसी का नतीजा था कि रावण का कुल सहित नाश हो गया। जब शनिदेव यहां आए तो उल्कापात जैसा प्रभाव हुआ। आज भी उस घटना का यहां निशान बना हुआ है।

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