‘जागरुकता की कमी के कारण जानलेवा हो जाता है स्तन कैंसर’

स्तन कैंसर जानलेवानई दिल्ली| स्तन कैंसर जानलेवा नहीं है लेकिन अगर इसका इलाज समय पर नहीं किया गया तो यह निश्चित तौर पर जानलेवा है। यह कहना है नई दिल्ली के फोर्टिस ला फेम और फोर्टिस नोएडा अस्पताल की सीनियर कंसल्टेंट ब्रेस्ट कैंसर सर्जन दीपा तयाल का। तयाल के मुताबिक अगर स्तन कैंसर को लेकर जागरुकता नहीं बढ़ाया गया तो यह भारतीय महिलाओं के लिए बहुत गम्भीर खतरा बनकर उभरेगा।

स्तन कैंसर जानलेवा

डॉक्टर तयाल ने फोर्टिस ला फेम द्वारा रविवार को राजधानी में स्तन कैंसर के प्रति जागरुकता फैलाने के मकसद से आयोजित बाइक रैली के बाद यह बात कही। इस बाइक रैली की खास बात यह रही कि इसमें सिर्फ महिला चालकों ने हिस्सा लिया और इनमें से कुछ स्तन कैंसर से पीड़ित रहीं हैं और अब उसे हराकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी हैं।

तयाल ने कहा कि स्तन कैंसर अब भारतीय महिलाओं में सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर बन चुका है और देश भर की कुल महिला कैंसर रोगियों में से 25 से 30 प्रतिशत स्तन कैंसर से ग्रस्त होती हैं। भारत में हर वर्ष लगभग 80,000 महिलाओं की मौत स्तन कैंसर से होती है और यह संख्या पूरे विश्व में अधिकतम है। कैंसर समाज पर एक भारी भावनात्मक तथा आर्थिक बोझ का कारण है।

तयाल ने कहा, “स्तन कैंसर का पता यदि आरंभिक चरण में लग जाए, तो उपचार के उपरांत जीवन की संभावना अच्छी रहती है। स्तन कैंसर के आंकड़ों के मामले में भारत पश्चिमी देशों से कैसे भिन्न है। यहां यह रोग अपेक्षाकृत युवा महिलाओं (30 से 40 वर्ष के बीच) में भी पाया जाता है, जबकि पश्चिम में यह 50 वर्ष से अधिक आयु वाली महिलाओं का रोग है और भारत के मामले में जागरूकता तथा जांच के अभाव में रोग का पता लगने तक पहले ही काफी देर हो चुकी होती है।”

भारत में स्तन कैंसर के खतरे पर हाल ही में किए गए एक अध्ययन में ज्ञात हुआ कि, हर 28 में से एक महिला को अपने जीवनकाल में स्तन कैंसर होता ही है। शहरी क्षेत्रों में यह प्रतिशत थोड़ा अधिक (हर 22 में से एक) है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में जोखिम कुछ कम (हर 60 में से एक) है। यही नहीं, पहले की तरह अब 85 साल तक की महिलाओं को स्तन कैंसर हो सकता है और इससे सिर्फ सजग रहते हुए लड़ा जा सकता है।

तयाल ने कहा, “स्तन कैंसर के प्रति सजगता कार्यक्रमों को पोलियो की ही तरह, राष्ट्रीय कार्यक्रमों के रूप में लिया जाना चाहिए, जिससे रोग का पता आरंभिक चरण में ही लगाया जा सके। जब रोग का कोई भी लक्षण प्रकट रूप से सामने न आया हो, क्योंकि रोग अभी पहले चरण में ही होता है और पांच वर्ष की उपचार उपरांत आगे के जीवन की संभावना अधिक रहती है। हम स्तन कैंसर को होने से रोक तो नहीं सकते, परन्तु आरंभिक चरण में इसका पता लगा सकते हैं और रोगी कैंसर के बाद भी लम्बी जिन्दगी जी सकता है।”

डॉक्टर तयाल ने कहा कि स्तन कैंसर का पता लगाने का प्रमुख तरीका है, स्तन सजगता कार्यक्रम, जिसमें शिक्षा, परीक्षण और मैमोग्राफी तथा ब्रेस्टल अल्ट्रा साउंड जैसे जांच उपकरण शामिल हैं। इन सबके साथ-साथ जीवनशैली में सुधार भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खानपान, प्रदूषण, प्रदूषित भोजन और मानसिक तनाव भी महिलाओं में बढ़ते स्तन कैंसर का कारण हैं।

फोर्टिस ला फेम की मुख्य परिचालन अधिकारी (सीओओ) अनिका परासर ने इस सम्बंध में कहा, “भारत में हर तरह के समाज में इन दिनों स्तन कैंसर के मामले आश्चर्यजनक तौर पर बढ़े हैं। भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया भर में इसके मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। इसे शुरुआती स्तर में ही पता लगाने के बाद इसका इलाज सम्भव है। भारत इस मामले में दुनिया के सबसे गम्भीर रूप से प्रभावित देशों में से एक है। जागरुकता कमी के कारण भारत में स्तन कैंसर से पीड़ित कुल महिलाओं में से आधे की मौत हो जाती है।”

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