काम की मारामारी के बीच रोजाना थोड़ा सा समय भी योग और व्यायाम के लिए निकाल लें तो न केवल अनेक शारीरिक परेशानियों से बचा जा सकता है, तनावमुक्त रहकर अपने काम को और बेहतर तरीके से कर सकते हैं। योग हमें ऊर्जावान बनाए रखने के साथ ही नकारात्मक सोच से दूर रखता है। आत्मबल और आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कुछ समय निकालकर रोजाना योग किया जाना चाहिए।
लोगों में योग के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से ही आज का दिन अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाया जाना शुरू किया गया है। यहां आपको कुछ ऐसे योगासन के बारे में बता रहे हैं, जो कम समय में ही किए जा सकते हैं, लेकिन उनसे कई तरह के फायदे मिल सकते हैं। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के प्रशांत विहार स्थित आयुर्वेदिक पंचकर्म अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरपी पाराशर का कहना है कि सूर्य नमस्कार के जरिए कई तरह के फायदे सकते हैं। आंखों की रोशनी और खून का प्रवाह तेज होता है, साथ ही ब्लड प्रेशर और वजन कम होता है। सूर्य नमस्कार करने से बहुत से रोगों से छुटकारा मिलता है। सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। उन्होंने इसकी 12 मुद्राओं के बारे में कुछ इस प्रकार से समझाया।
प्रणाम मुद्रा: सूर्य नमस्कार की शुरुआत प्रणाम मुद्रा से होती है। सावधान की मुद्रा में खड़े होकर दोनों हाथों को कंधे के समानांतर उठाते हुए दोनों हथेलियों को ऊपर की ओर ले जाते हैं। हाथों के अगले भाग को एक-दूसरे से चिपका कर फिर हाथों को उसी स्थिति में सामने की ओर लाकर नीचे की ओर गोल घूमाते हुए नमस्कार की मुद्रा में खड़े हो जाते हैं।
हस्त उत्तानासन: सांस भरते हुए दोनों हाथ कानों के पास सटाते हुए ऊपर खींचते हैं और कमर से पीछे की ओर झुकते हुए भुजाओं और गर्दन को पीछे की ओर झुकाते हैं। इस आसन के दौरान गहरी और लंबी सांस भरने से फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा इसके अभ्यास से हृदय स्वस्थ रहता है। पूरा शरीर, फेफड़े, मस्तिष्क अधिक मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त करते हैं।
पादहस्तासन या पश्चिमोत्तनासन : सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकते हैं। इस आसन में दोनों हाथों से अपने पैर के अंगूठे को पकड़ते हैं। चूंकि हाथों से पैरों को पकड़कर यह आसन किया जाता है इसलिए इसे पादहस्तासन कहा जाता है। यह आसन खड़े होकर किया जाता है।
अश्व संचालन आसन : इस मुद्रा को करते समय पैर के पंजों के बल खड़े होते हैं। इस आसन को करने के लिए हाथों को जमीन पर टिकाकर सांस लेते हुए दाहिने पैर को पीछे की तरफ ले जाते हैं, उसके बाद सीने को आगे खींचते हुए गर्दन को ऊपर उठाते हैं। ध्यान रहे कमर झुकनी नहीं चाहिए। पर्वतासन : यह मुद्रा जमीन पर पद्मासन में बैठ कर करते हैं। सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए बाएं पैर को भी पीछे की तरफ ले जाते हैं। दोनों पैरों की एड़ियां आपस में मिली होती हैं। नितम्ब को ऊपर उठाया जाता है ताकि सारा शरीर केवल दोनों घुटनों के बल स्थित रहे। शरीर को पीछे की ओर खिंचाव देते हुए एड़ियों को जमीन पर मिलाकर गर्दन को झुकाते हैं।
अष्टांग नमस्कार : इस स्थिति में सांस लेते हुए शरीर को जमीन के बराबर में साष्टांग दंडवत कर घुटने, सीने और ठोड़ी को जमीन पर लगाते हैं। जांघों को थोड़ा ऊपर उठाते हुए सांस को छोड़ते हैं।
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भुजंगासन : इस स्थिति में धीरे-धीरे सांस को भरते हुए सीने को आगे की ओर खींचते हुए हाथों को सीधा करते हैं। गर्दन को पीछे की ओर ले जाते हैं। घुटने जमीन को छूते तथा पैरों के पंजे खड़े रहते हैं। इसे भुजंगासन भी कहते हैं।
अश्व संचालन आसन : इस स्थिति में चौथी स्थिति के जैसी मुद्रा बनाते हैं। सांस को भरते हुए बाएं पैर को पीछे की ओर ले जाते हैं। सीने को खींचकर आगे की ओर ताना जाता है। गर्दन को अधिक पीछे की ओर झुकाते हैं। टांगें तनी हुई सीधी, पीछे की ओर खिंचाव व पैर के पंजे खड़े करते हैं। इस स्थिति में कुछ समय रुके रहते हैं।
हस्तासन : वापस तीसरी स्थिति में सांस को धीरे-धीरे बाहर निकालते हुए आगे की ओर झुकते हैं। हाथ गर्दन और कानों से सटे हुए और नीचे पैरों के दाएं-बाएं जमीन को स्पर्श करते हैं। इस दौरान घुटने सीधे रहते हैं और माथा घुटनों को स्पर्श करता रहना चाहिए।
हस्त उत्तानासन : यह स्थिति दूसरी स्थिति के समान हैं। दूसरी मुद्रा में रहते हुए सांस भरते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाते हैं। इस स्थिति में हाथों को पीछे गर्दन तथा कमर को पीछे की ओर झुकाते हैं अर्थात अर्धचक्रासन की मुद्रा में आ जाते हैं।
प्रणाम मुद्रा : यह स्थिति पहली मु्द्रा की तरह है अर्थात नमस्कार की मुद्रा। बारह मुद्राओं के बाद पुन: विश्राम की स्थिति में खड़े हो जाते हैं। इस आसन को कई बार करते हैं। सूर्य नमस्कार शुरुआत में 4-5 बार करना चाहिए और धीरे-धीरे इसे बढ़ाकर 12-15 तक ले जा सकते हैं।