प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, जानें क्या है खास वजह… क्या हाईकोर्ट ने भी

प्रमोशन में आरक्षण के मामले में प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। सरकार ने ज्ञानचंद बनाम उत्तराखंड शासन व अन्य के मामले में आए उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने के लिए पुनर्विचार याचिका (एसएलपी) दाखिल की है।

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में प्रदेश सरकार की स्थायी अधिवक्ता (स्टैंडिंग काउंसिल) वंशजा शुक्ला ने एसएलपी दाखिल करने की पुष्टि की है। ज्ञानचंद मामले में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय की डबल बैंच में दाखिल एसएलपी वापस लेने के बाद इस बात की संभावनाएं जताई जा रही थी कि प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

इसी मामले में असिस्टेंट इम्प्लायमेंट अफसर कुंवर सिंह मेवाड़ ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल कर रखी है। मेवाड़ की याचिका पर 18 नवंबर को सुनवाई होनी है। सरकार की एसएलपी को भी इस याचिका के साथ शामिल कराने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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ज्ञानचंद मामले में न्यायालय के आदेश

ज्ञानचंद बनाम उत्तराखंड शासन व अन्य के मामले में उच्च न्यायालय ने प्रमोशन में आरक्षण को बहाल करने वाले 2012 के शासनादेश को निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ प्रदेश सरकार ने कोर्ट में एसएलपी दाखिल की। साथ ही प्रदेश सरकार को विभागों, सार्वजनिक उपक्रमों, निगमों एवं संस्थानों में प्रमोशन और डीपीसी पर रोक लगा दी।

एससी एसटी इम्पलाइज फेडरेशन नाराज
उत्तराखंड एससी एसटी इम्पलाइज फेडरेशन ने प्रदेश सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर नाराजगी जाहिर की है। फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष करम राम ने कहा कि अच्छा होता इस मामले में प्रदेश सरकार तटस्थ रहती। उसके हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करने से सही संदेश नहीं जा रहा है। इससे एससी एसटी और ओबीसी कर्मचारी आहत हैं। फेडरेशन 18 नवंबर को होने वाली सुनवाई के बाद आगे की रणनीति तय करेगा।

सरकार का रुख स्वागत योग्य
उत्तराखंड जनरल ओबीसी इम्पलाइज एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक जोशी ने प्रदेश सरकार के सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल करने का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि एसोसिएशन प्रदेश सरकार से लगातार यह मांग कर रही थी। उन्होंने भरोसा जताया कि सरकार न्यायालय के समक्ष तर्कसंगत पक्ष रखकर हजारों कर्मचारियों की पदोन्नति का मार्ग प्रशस्त करेगी।

 

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