सुप्रीम कोर्ट ने BCCI से छीनी ताकत, स्‍वतंत्र ऑडिटर नियुक्त करने का दिया आदेश

 BCCIनई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने BCCI के प्रति कड़ा रवैया अपनाते हुए कहा है अब उसकी सारी फाइनैन्‍शियल ताकत छीन ली जाए और एक ऑडिटर नियुक्‍त किया जाए जो पूरी तरह से स्‍वतंत्र हो। कोर्ट ने लोढ़ा पैनल की सिफारिशों को मानते हुए BCCI को एफिडेविट पेश करने का आदेश दिया था। लेकिन BCCI पूरी तरह नाकाम रहा।

कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि बीसीसीआई द्वारा राज्य क्रिकेट बोर्डों को फंड जारी करने पर भी रोक लगाई जाती है। अब फंड तभी दिए जाएं जब राज्य के बोर्ड भी लोढा समिति की सिफारिशों को लागू करने के संबंध में एफिडेविट देंगे।

कोर्ट में यह भी साफ हो गया कि बीसीसीआई प्रमुख अनुराग ठाकुर 3 दिसंबर को कोर्ट में इस संबंध में हलफनामा देंगे। इस मामले में अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी।

कोर्ट ने इसी के साथ लोढ़ा पैनल को बड़ी जिम्मेदारी भी दी। लोढ़ा पैनल अब बीसीसीआई के लिए स्वतंत्र ऑडिटर नियुक्त करेगा। यह ऑडिटर BCCI के सारे कांट्रेक्ट की निगरानी करेगा। लोढा पैनल ही कांट्रेक्ट तय करेगा।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि BCCI चेयरमैन हलफनामा दाखिल कर बताएंगे कि 18 जुलाई के आदेश का पालन करेंगे। 3 दिसंबर तक बीसीसीआई प्रमुख हलफनामा दाखिल करेंगे और इससे पहले वह लोढा पैनल को बताएंगे कि रिफॉर्म कैसे करेंगे।

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों आदेश सुरक्षित रखा था कि BCCI में प्रशासक नियुक्त किए जाए या नहीं और BCCI को और वक्त दिया जाए या नहीं। सा थ ही कहा था कि वह लिखित में अंडरटेकिंग दे कि वह लोढा पैनल की सिफारिशों को तय वक्त में लागू करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि आप लगातार कोर्ट के आदेशों में रुकावट पैदा कर रहे हैं। लोढा पैनल का भी यही मानना है कि BCCI सिफारिशों को लागू नहीं करना चाहता, इसलिए पदाधिकारियों को हटा देना चाहिए।

17 अगस्त को सुनवाई के दौरान इस मामले में एमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने बीसीसीआई का काम देखने के लिए प्रशासकों की नियुक्ति की सिफारिश की थी। सुब्रमण्यम ने कहा था कि बीसीसीआई के अधिकारियों के रवैये से साफ है कि वो किसी भी तरह से सुधार को टालना चाहते हैं। ये सिविल औरआपराधिक अवमानना का केस है। देश में क्रिकेट को चलाने वाली संस्था, बीसीसीआई में सुधार के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लोढ़ा कमिटी का गठन किया था।

इसी साल 18 जुलाई कोर्ट ने कमेटी की सभी सिफारिशें मंज़ूर की थीं। कोर्ट ने छह महीने में इन्हें लागू करने का आदेश दिया था। अब कमेटी ने शिकायत की है कि बीसीसीआई जानबूझकर सुधार की राह में रोड़ा अटका रहा है।

बीसीसीआई की दलील है कि वो सिफारिशें लागू करने को तैयार है। कई सिफारिशें लागू भी की गईं हैं। पूरी तरह बदलाव के लिए 2 तिहाई राज्य क्रिकेट संघों के वोट ज़रूरी हैं। उन्हें मनाने की कोशिश की जा रही है। इस दलील पर नाराज़गी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट सुधार में अड़चन डाल रहे राज्य क्रिकेट संघों का फंड रोकने को कहा था।

एमिकस क्यूरी गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा था बीसीसीआई और राज्य क्रिकेट संघ एक ही हैं। सिर्फ भ्रम फैलाने के लिए कहा जा रहा है कि राज्य संघ तैयार नहीं हैं। गोपाल सुब्रमण्यम ने बीसीसीआई अध्यक्ष अनुराग ठाकुर के हलफनामे पर भी सवाल उठाए।

सुप्रीम कोर्ट ने अनुराग ठाकुर से पूछा था कि उन्होंने आईसीसी के सीईओ डेविड रिचर्डसन को लोढ़ा कमिटी की सिफारिशों का विरोध करने के लिए कहा था या नहीं। जवाब में ठाकुर ने कहा है कि उन्होंने ऐसा नहीं किया। सिर्फ मौजूदा आईसीसी अध्यक्ष शशांक मनोहर के उस बयान की याद दिलाई थी जो उन्होंने बीसीसीआई अध्यक्ष रहते दिया था। तब मनोहर ने कहा था कि बीसीसीआई में सीएजी के प्रतिनिधि की नियुक्ति कामकाज में सरकारी दखल है।

ठाकुर के मुताबिक उन्होंने सिर्फ पुराने बयान के आधार पर स्पष्टता देने को कहा था। वो ये जानना चाहते थे कि कहीं आईसीसी बीसीसीआई के खिलाफ कोई कार्रवाई तो नहीं करेगी। लेकिन आईसीसी ने कहा कि वो बयान सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले का है। अब फैसला आ चुका है। आईसीसी उसका सम्मान करती है।

सवाल उठाते हुए एमिकस क्यूरी ने कहा था कि हलफनामे से साफ़ है कि उन्होंने इस बात की कोशिश की कि आईसीसी बीसीसीआई में सुधार के मामले में दखल दे। इस तरह के लोगों से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो सुधारों को लागू होने देंगे।

सुब्रमण्यम ने लोढ़ा कमेटी को जानकारी दिए बिना राज्यों को फंड देने और क्रिकेट ब्रॉडकास्ट अधिकार बेचे जाने पर भी सवाल उठाए। उन्होंने सिफारिश की कि जब तक बीसीसीआई में सुधार पूरी तरह लागू नहीं होते तब तक उसे कांट्रेक्ट टेंडर देने या फंड जारी करने का काम लोढ़ा कमिटी से पूछ कर करने को कहा जाए।

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