
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए फिर दोहराया है कि पत्नी, पति की निजी संपत्ति नहीं है। पत्नी के साथ जोर-जबरदस्ती कर उसे पति के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। दरअसल, शख्स ने याचिका दायर की थी कि कोर्ट उसकी पत्नी को आदेश दे दे कि वह उसके साथ रहने लगे।

इस मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की बेंच ने कहा कि आपको क्या लगता है कि क्या महिला किसी की गुलाम है, जो ऐसे आदेश पारित कर दिये जाएं? क्या पत्नी आपकी निजी संपत्ति है जो उसे आपके साथ जाने का निर्देश दिया जा सकता है?
दरअसल साल 2013 में दोनों की शादी हुई थी। हालांकि पति, पत्नि को दहेज के लिए प्रताड़ित करता था। जिसके चलते वह मजबूर होकर अलग रहने लगी थी। 2015 में उसने गुजारा-भत्ता के लिए मामला दर्ज करवाया तो गोरखपुर की अदालत ने पति को 20,000 रुपये हर माह देने का आदेश दे दिया। लेकिन बाद में पति ने दांपत्य अधिकारों की बहाली के लिए फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया। इसके बाद पति नहीं माना और उसने फिर अदालत का दरवाजा खटखटाया और गुहार लगाई की वो पत्नी के साथ रहने को तैयार हो गया है तो गुजारा-भत्ता कैसा?
इस मामले पर इलाहाबाद कोर्ट ने पति की याचिका को ठुकरा दिया, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। महिला का आरोप है कि वह यह सब इसलिए कर रहा है जिससे उसे गुजारा भत्ता न देना पड़े। मामले में जब सुनवाई हुई तो पति के वकील ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को पत्नी को वापस पति के पास आने का आदेश देना चाहिए, इस पर दलील यह भी दी गयी कि फैमिली कोर्ट भी पति के पक्ष में फैसला दे चुकी है। वकील की ओर से यह मांग होने पर कोर्ट ने कहा कि क्या पत्नी निजी संपत्ति है? क्या पत्नी गुलाम है? इसी के बाद दांपत्य अधिकारों की यह याचिका खारिज कर दी गयी।