‘हिल टॉप’ के शराब कारोबार से मचा सियासी कोहराम, देवप्रयाग में शराब के कारोबार पर आमने-सामने कांग्रेस और भाजपा

अलकनंदा और भागीरथी नदी जिस देवप्रयाग क्षेत्र से गंगा हो जाती है, वहां ‘हिल टॉप’ के शराब कारोबार से सियासी कोहराम मच गया है। अपने-अपने समय में सियासी दलों ने इस शराब का नशा ‘गटक’ तो लिया, लेकिन अब कदम लड़खड़ाने लगे हैं।
सियासी कोहराम

बात, इसने पिलाई… उसने पिलाई तक पहुंच चुकी है। कांग्रेस से लेकर भाजपा तक उलझन में है। सवालों के घेरे में है। कहानी कांग्रेस राज से शुरू होकर भाजपा तक पहुंच रही है। आरोप- प्रत्यारोप का सिलसिला तेज हो गया है। भाजपा के लिए मुश्किल ये है कि जिस हिंदुत्व के एजेंडे में उसकी जान बसी है, उसमें आखिर कैसे देवप्रयाग जैसे धार्मिक स्थल से शराब कारोबार की फलती-फूलती स्थिति निकल सकती है। कांग्रेस की जहां तक बात है, वह भाजपा सरकार की तरफ एक अंगुली उठा रही है, तो तीन अंगुलियां उसकी तरफ भी उठ रही हैं।

दरअसल, देवप्रयाग क्षेत्र में डिस्टलरी लगने की शुरुआत कांग्रेस के जमाने में ही आगे बढ़ी। सूत्रों के अनुसार, विजय बहुगुणा सरकार के जमाने में इस संबंध में बात शुरू हो गई थी। 2016 के आखिरी में चुनाव मैदान में जाने से पहले हरीश रावत सरकार ने इस पर अनुमति जारी कर दी थी।

‘फ्रूट वाइन का लाइसेंस दिया था, सरकार ने बदल दिया’

विरोध हुआ, तो चुनाव को देखकर सरकार के कदम थोड़ा ठिठके भी। मगर एक बार फिर से भाजपा सरकार के जमाने में इस डिस्टलरी से हिल टॉप ब्रांड को जोड़ते हुए खबरें सुर्खियों में आ रही हैं। इस मामले में सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सामने आकर जवाब दे रहे हैं, लेकिन पूरी सरकार इस मामले में मचे हल्ले के बाद असहज भी है।

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दूसरी तरफ, कांग्रेस की स्थिति है, जो धार्मिक क्षेत्र के साथ शराब कारोबार को जोड़ते हुए सरकार की घेराबंदी की इच्छुक तो है, लेकिन बुनियादी तौर पर खुद भी फंसा हुआ महसूस कर रही है। इसलिए इस मामले में भले ही हरीश रावत अपनी स्थिति साफ कर रहे हों, लेकिन पूरे पार्टी संगठन का एक स्टैंड अभी साफ नहीं हो पाया है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि पार्टी इस पूरे मामले का अभी अध्ययन कर रही है। इसी आधार पर अगला कदम तय किया जाएगा।

‘हिल टॉप’ मामले के उछलने के बाद जाने-अनजाने पूर्व सीएम हरीश रावत इस प्रकरण के केंद्र में आ गए हैं। उनकी सरकार ने ही देवप्रयाग क्षेत्र के ग्राम डाडवा में बाटलिंग प्लांट की स्थापना के लिए एफएलएम-2 की अनुमति प्रदान की थी। इन स्थितियों के बीच, पूर्व सीएम हरीश रावत इस मामले में खुलकर बोल रहे है। मीडिया से बातचीत में मंगलवार को रावत ने कहा कि उनकी सरकार ने फ्रूट वाइन के लिए लाइसेंस मंजूर किया था, जिसे मौजूदा सरकार ने बदल दिया है।

देवप्रयाग बना भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए अखाड़ा

उन्होंने कहा कि आबकारी नीति में बदलाव उनकी सरकार ने यह सोचकर किया था कि पहाड़ी फलों का बेहतर इस्तेमाल हो सके। इसी क्रम में देवप्रयाग क्षेत्र में लाइसेंस मंजूर किया गया था, लेकिन जब विरोध शुरू हो गया, तो हमने इसे रोक दिया था। उन्होंने कहा कि एक व्यवहारिक दृष्टिकोण अपनाते हुए बाटलिंग प्लांट को प्रदेश के किसी हिस्से में लगाए जाने पर कोई एतराज नहीं है, लेकिन गंगा किनारे किसी भी जगह पर ऐसा नहीं किया जा सकता। हमारी सरकार ने तो देवप्रयाग को कुंभ मेला क्षेत्र के अंतर्गत शामिल किया था। भाजपा सरकार इससे उलट काम कर रही है।

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हिल टाप के बहाने देवप्रयाग क्षेत्र भाजपा के लिए अखाड़ा सा बन गया है, जहां पर पक्ष और विपक्ष में तलवारें खिंची हुई हैं। क्षेत्रीय भाजपा विधायक विनोद कंडारी का कहना है कि हरीश रावत सरकार ने देवप्रयाग क्षेत्र की महत्ता का ध्यान नहीं रखा। बाटलिंग प्लांट की अनुमति कांग्रेस सरकार ने ही दी। वहां पर पूरा निर्माण कार्य हो चुका है। भाजपा सरकार का इसमें कोई लेना-देना नहीं है। कांग्रेस के नेता अब घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं।

दूसरी तरफ, पूर्व कैबिनेट मंत्री और देवप्रयाग क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले कांग्रेस नेता मंत्री प्रसाद नैथानी भाजपा सरकार पर हमलावर हो रहे हैं। नैथानी का कहना है कि देवप्रयाग क्षेत्र में बाटलिंग प्लांट की अनुमति का उनके स्तर पर 2016 में जमकर विरोध हुआ था। तत्कालीन सीएम हरीश रावत ने लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस पर रोक लगा दी थी। भाजपा सरकार आते ही इस मामले में काम आगे बढ़ गया।
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