परम्परा के नाम पर एक चुटकी सिंदूर की कीमत चुका रहीं महिलाएं

सिंदूरहिंदू धर्म में लड़कियों के शादीशुदा होने की पहचान उसका सिंदूर लगाना है. सिंदूर के साथ लड़कियां मंगलसूत्र भी पहनती हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इन्हें लगाना जरूरी क्यों है. अगर नहीं सोचा तो अब जान लीजिए.

एक चुटकी सिंदूर की कीमत बाकी सभी निशानियों से ज्यादा महत्व रखती हैं. ये सभी निशानियां पति की लंबी उम्र और सुहाग की रक्षा के लिए होती हैं. बदलते समय के साथ ये सभी चीजें फैशन का हिस्सा भी बन गई हैं. लेकिन कुछ लोग इस मॉडर्न जमाने में इन सुहाग की निशानियां को ज्यादा महत्व नहीं देते. लेकिन ये निशानियां सुहाग की रक्षा के साथ महिलाओं की सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होती हैं.

अगर कोई लड़की तार्किक रूप से इसके धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को नकार भी दे तो उसके लिए वैज्ञानिक कारण भी बता दिए जाते हैं.

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रिसर्च के अनुसार, सिंदूर से एलर्जी की शिकायत हो सकती हैं. साथ ही सिंदूर लगाने से महिलाओं का आईक्यू स्तर घटने का खतरा भी होता है.

सिंदूर लगाने से आईक्यू स्तर पर खतरा

सिंदूर लगाने से महिलाओं के आईक्यू लेवल घटने का खतरा है. साथ ही इससे बच्चों के बढ़ने में देरी का खतरा कहा गया है.

अमेरिका की रूजर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भारत और अमेरिका के अलग-अलग जगहों से सिंदूर के सैम्पल इकट्ठा कर एक रिसर्च किया है. इस रिसर्च में पाया गया है अमेरिका के 83 फीसदी और भारत के 78 फीसदी नमूनों में प्रति ग्राम सिंदूर में लेड की मात्रा 1 ग्राम पाई गई, जो सामान्य स्तर से ज्यादा है.

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के फूड एवं ड्रग्स विभाग ने कॉसमेटिक्स में प्रति एक ग्राम 20 माइक्रोग्राम लेड के इस्तेमाल की इजाजत दी है. लेकिन जो सैंपल लिए गए हैं उनमें से अमेरिका से लिए गए 19 फीसदी और भारत से लिए गए 43 फीसदी सैंपल में मात्रा इससे अधिक थी.

सिंदूर औरतों के साथ बच्चों के लिए भी हानिकारक होता है.

अमेरिका से लिए गए 3 और भारत से लिए गए 2 सैंपल में तो लेड की मात्रा प्रति 1 ग्राम 10,000 माइक्रोग्राम से भी ज्यादा थी.

संस्था ने कहा है कि लेड का कोई भी सेफ लेवल नहीं है, यह किसी भी तरह से हमारे शरीर में नहीं होना चाहिए.

खासकर 6 साल की उम्र से नीचे के बच्चों के लिए ये ज्यादा हानिकारक है. अगर कोई ऐसा प्रोडक्ट है, जिसमें लेड हो तो वह सेहत के लिए खतरा हो सकता है. लेड की यह मात्रा औरतों और मां के संपर्क में आ रहे बच्चों के शारीरिक और मानसिक परेशानियों का कारण बन सकती है.

 

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