मौलिक कर्तव्य निभाने के लिए दबाव नहीं डाला जा सकता : सर्वोच्च न्यायालय

सर्वोच्च न्यायालयनई दिल्ली| सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को मौलिक कर्तव्यों को निभाने के लिए दबाव डालने की मांग वाली एक याचिका खारिज कर दी और इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीशों की दो अलग-अलग रिपोर्ट को लागू करने से इनकार कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह खेहर व न्यायमूर्ति डी.वाई.चंद्रचूड़ की पीठ ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता तथा वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया था कि सेवानिवृत्ति के बाद मौलिक कर्तव्य निभाने को लेकर एक आयोग का नेतृत्व करने वाले दो पूर्व प्रधान न्यायाधीशों न्यायमूर्ति ए.एस.वर्मा तथा न्यायमूर्ति एम.एन.वेंकटचेलैय्या ने पाया था कि इसमें कुछ कमी है और इसके समाधान के लिए उन्होंने कई सिफारिशें की थीं।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वी. शेखर ने पीठ से कहा कि अगर मुद्दे का समाधान नहीं किया गया, तो लोगों का तंत्र पर से भरोसा उठ जाएगा।

याचिका को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति खेहर ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता एक सत्ताधारी पार्टी के प्रवक्ता हैं, एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं, जो ऐसा करने में सक्षम है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति खेहर ने याचिकाकर्ता से कहा, “आप भाजपा के प्रवक्ता हैं। आप बेहद प्रभावशाली हैं, आप कुछ भी कर सकते हैं। आप अपनी पार्टी को ऐसा करने के लिए कहिए।”

सन् 1976 के 42वें संविधान संशोधन के मुताबिक, मौलिक कर्तव्यों के तहत प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शो, संस्थाओं, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे, स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करनेवाले उच्च आदर्शो को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे, भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे, देश की रक्षा करे, भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे, हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे, प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे, सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे, व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे और माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दिलाए।

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