BJP, NC या PDP: कौन कहलाएगा कश्मीर का बादशाह? इस खबर को पढ़कर समझें पूरा सियासी समीकरण
श्रीनगर। सियासत करने का कोई समय निर्धारित नहीं होता है। ये हमेशा उस समय शुरू होती है। जब सब कुछ स्थायी हो चुका हो। इसीलिए तो भैया ये सियासत है।
अब ऐसा ही कुछ माहौल जम्मू-कश्मीर में चल रहा है। जहाँ की राजनीति हर दिन नई उठापटक देखने को मिल रही है। तो आइये समझाते हैं। जम्मू-कश्मीर के सियासी माहौल के बारे में।
दरअसल, लोकसभा चुनाव 2019 से पहले बीजेपी के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में महागठबंधन बनने की कवायद शुरू हुई थी। लेकिन अमली जामा पहनाए जाने से पहले राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर इन कोशिशों की हवा निकाल दी।
बता दें कि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी के बीच गठबंधन टूटने के बाद से राज्यपाल शासन लगा था। कांग्रेस, नेशनल कान्फेंस और पीडीपी विधानसभा भंग करने की मांग लगातार उठा रही थीं, लेकिन चुनाव के लिए तैयार नहीं थी।
जबकि बीजेपी पीपुल्स कान्फ्रेंस अध्यक्ष सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व में तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने की कवायद में थी। लेकिन बहुमत का आंकड़े के लिए उन्हें 18 अन्य विधायकों की जरूरत थी। ऐसे में विपक्ष की पार्टी में टूट के बिना मुमकिन नहीं था।
भाजपा को क्या मिला
बीजेपी की तीसरे मोर्चे की सरकार बनाने की कोशिश के बीच एक-दूसरे के कट्टर विरोधी नेशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी व कांग्रेस मिलकर सरकार बनाने की कवायद में जुट गए थे। लेकिन इनकी सरकार बनती इससे पहले राज्यपाल ने विधानसभा को भंग कर दिया।
इस तरह से विपक्ष मिलकर भी सरकार नहीं बना सका। अगर ऐसा होता तो यह गठबंधन 2019 के आम चुनाव में भी बड़ी ताकत बन सकता था।
अब ये भी जान लो आखिर बीजेपी ने क्या खोया
जम्मू-कश्मीर की सियासत में बीजेपी पहली बार 2015 में 25 विधायक जीतने में सफल रही थी। पीडीपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी।
ऐसे में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनी थी। लेकिन दोनों के बीच 40 महीने ही सरकार चल सकी। दोनों पार्टियों के बीच सरकार में रहते हुए भी बेहतर तालमेल नहीं दिखे।
वहीं, बीजेपी 25 सीटें जीतने के बाद भी पांच साल राज्य की सत्ता में नहीं रह सकी। पार्टी के कई विधायक पहली बार चुनाव जीते थे। लेकिन वे बतौर विधायक 6 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।
कांग्रेस का नफा-नुकसान
जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के पास 12 विधायक थे। कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। हालांकि, विधायकों के टूटने का खतरा पार्टी पर लगातार बना हुआ था।
विधानसभा भंग होने से कांग्रेस को यह नुकसान हुआ कि 2019 के चुनाव से पहले राज्य में महागठबंधन वजूद में नहीं आ सका। हालांकि, पीडीपी की तरह कांग्रेस अपने विधायकों को टूटने से बचा ले गई।
नेशनल कान्फ्रेंस ने क्या खोया-क्या पाया
नेशनल कान्फ्रेंस के पास 15 विधायक थे। पार्टी प्रमुख उमर अब्दुल्ला लगातार विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर रहे थे, लेकिन चुनाव के लिए राजी नहीं थे।
अगर तीसरे मोर्चे की सरकार वजूद में आती तो नेशनल कान्फ्रेंस के विधायक भी टूट सकते थे। ऐसे में विधानसभा भंग होने से विधायकों की टूट से पार्टी बच गई, लेकिन पार्टी को यह नुकसान हुआ कि महागठबंधन की सरकार नहीं बन सकी।
पीडीपी को क्या नुकसान-क्या फायदा
जम्मू-कश्मीर में पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन बहुमत के आंकड़े से दूर होने के चलते उसे बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी। लेकिन 40 महीने के उठापटक के बाद गठबंधन से अलग होना पड़ा। सत्ता से बाहर होने के बाद 6 विधायक और एक सांसद ने पार्टी से बगावत की।
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किसी भी टूट से बचने और सत्ता में वापसी के लिए पीडीपी नेशनल कान्फ्रेंस और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने की कवायद कर रही थी, लेकिन राज्यपाल ने इस मंसूबे पर पानी फेर दिया। हालांकि, पीडीपी खुद को टूट से बचाने में सफल हुई।
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