संसद का शीतकालीन सत्र शुरू, राफेल पर जेपीसी की मांग का हो सकता आसार

दिल्ली.संसद का शीतकालीन सत्र राफेल विमान सौदे की आंच में ठप पड़ा है। विपक्ष इस सौदे की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) बनवाने की मांग पर अड़ा है तो सत्तापक्ष ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। चूंकि दोनों के बीच गतिरोध टूटने के आसार नज़र नहीं आ रहे हैं, शीतसत्र पर जमी बर्फ़ पिघलती नहीं दिख रही है। राज्यसभा पूरी तरह ठप है जबकि लोकसभा में शोरशराबे के बीच कुछ काम हुआ है। हंगामे के बीच जहां मंगलवार को ट्रांसजेंडर विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, बुधवार को इसी माहौल में सरोगेसी विधेयक संक्षिप्त बहस के बाद पारित कर दिया गया।

लंच के बाद चले सवा घंटे के सत्र में इस विधेयक पर छह-सात सांसदों ने अपने विचार व्यक्त किए। लेकिन कुछ भी स्पष्ट सुनाई नहीं दे रहा था क्योंकि इस पूरे समय कांग्रेस और अन्ना डीएमके के सांसद नारेबाज़ी करते रहे। लोकसभा अध्यक्ष ज़ोर-ज़ोर से बोलकर थक गईं और अंततऱ् सवा तीन बजे उन्होंने लोकसभा स्थगित कर दी।

11 दिसंबर से पांच जनवरी तक चलने वाले सत्र की सात बैठकों में पांच प्रतिशत काम भी नहीं हो पाया है। हंगामा मुख्य रूप से चार दल  कर रहे हैं। 49-सांसदों वाली कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और राफेल पर जेपीसी की मांग के साथ रोज हंगामा कर रही है। 37-सदस्यों अन्ना डीएमके तीसरा सबसे बड़ा संसदीय दल है और गाजा तूफ़ान से हुई तबाही की भरपाई की मांग को लेकर उसके सदस्य नारेबाज़ी कर रहे हैं। पंद्रह सांसदों वाली टीडीपी विशेष राज्य के दर्ज की मांग कर रही है।

हंगामे में शामिल होने वाला चौथा दल 472-सांसदों वाली भाजपा है जिसके सदस्य सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मांफी की मांग कर रहे हैं। अन्ना डीएमके और कांग्रेस के सदस्यों की तरह भाजपा के कई सांसद लोकसभा में तख्ती लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। बस अंतर यह है कि वे लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन की अपील सुनकर वेल छोड़कर अपनी सीटों पर चले जाते हैं जबकि कांग्रेस और अन्नाडीएमके के सांसदों पर उनकी अपील का कोई असर नहीं होता है।

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विपक्ष का आरोप है कि भाजपा और अन्ना डीएमके जैसे उसके सहयोगी दल जनता से जुड़ी समस्याओं को संसद में उठाने ही नहीं देना चाहते हैं। इसीलिए वे रोज हंगामा कर रहे हैं। माकपा सांसद मो. सलीम का कहना है कि सत्ता पक्ष के सांसदों का संदन के अंदर तख्ती लेकर प्रदर्शन और नारेबाज़ी अभूतपूर्व है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।
उन्हेंने अमर उजाला से कहा – सरकार तो नौकरशाहों के जरिए अपना काम चला ही लेती है लेकिन विपक्ष के पास सिर्फ संसद ही एक मंच है जहां वह जनहित के सवाल उठाकर सरकार से जवाब मांग सकता है। लेकिन सत्तापक्ष हंगामा कर उसे इस अवसर से वंचित कर रहा है।

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