शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए केंद्र और राज्य सरकार लगातार कर रही है कोशिश

रिपोर्ट- आशीष कुमार

लखनऊ- उत्तर प्रदेश के मदरसों में बच्चों को शिक्षा का बेहतर माहौल मिले इसके लिए केंद्र और राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रहीं हैं, लेकिन कुछ मदरसों को छोड़कर अधिकतर मदरसों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती है! मदरसों के लिए पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि केवल धार्मिक शिक्षा देकर सरकारी धन की गुहार लगाना बेकार होगा है! अब यहां पर अंग्रेजी, गणित, विज्ञान के साथ कंप्यूटर का ज्ञान देना अनिवार्य होगा! आधुनिक शिक्षा की व्यवस्था न होने पर सरकार अपनी वित्तीय सहायता पर विचार करेगी और दी जा रही सहायता पर रोक भी लगा सकती है! ग्रामीण राज्य बजट में मदरसों को दिये जाने वाले अनुदान के साथ आधुनिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है! आपको बता दें कि प्रदेश में केवल 10 प्रतिशत मदरसों में ही आधुनिक शिक्षा का प्रबंध है! यहां गणित, विज्ञान, कंप्यूटर और अंग्रेजी पढ़ाई जाती है, शेष में केवल धार्मिक शिक्षा दी जाती है! इस्लामिक शिक्षा के साथ ही साथ आधुनिक शिक्षा देने की अनिवारित्सा भी दे रहे हों। जिसमें गणित, विज्ञान, अंग्रेजी और कंप्यूटर की कक्षाएं चलना अनिवार्य होगा। ताकि इन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने के साथ मुख्यधारा में आकर अन्य रोजगार पाने की स्थिति में भी आ जाएं। हाल के सालों में मदरसे लगातार सुर्खियों में रहे हैं! कभी इन्हें चरमपंथ की पाठशाला कहा गया तो कभी मुख्यधारा में लाने की बात की गयी! सामान्यतया कहा जाता है कि मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा देने वाले यह मदरसे शेष दुनिया से कटे रहते हैं लेकिन धीरे धीरे बदलाव की हवा वहां भी बहने लगी है!

 शिक्षा का स्तर सुधारने

पिछले तीन सालों में प्रदेश के मदरसों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या घट कर आधी रह गई हैं! इससे पता चलता है कि राज्य में मदरसों के प्रति मुसलमानों का आकर्षण कम हो रहा हैं! प्रदेश में दो तरह के मदरसे संचालित होते हैं! पहले वह हैं जो सरकारी मदरसा शिक्षा बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं! इनके छात्रों, अध्यापकों और पाठ्यक्रम पर सरकार की नजर रहती है! इसके अलावा इनकी परीक्षा भी मानक के अनुरूप होती हैं! सरकार ने इन मदरसों में एनसीआरटी का पाठ्यक्रम भी लागू करवा दिया है! दूसरे मदरसे वह हैं जो सरकार से कोई मतलब नहीं रखते! वे अपने स्तर से धार्मिक शिक्षा देते हैं, उनके पास कोई मान्यता नहीं है और वे अपने धार्मिक हिसाब से चलते हैं! हालाँकि इनकी संख्या की कोई आधिकारिक जानकारी नहीं हैं!

मान्यता प्राप्त मदरसों में आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाते हैं! लेकिन पिछले बीते कुछ सालों के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि मदरसों की परीक्षा में बैठने वाले छात्रों कि संख्या में भारी कमी आई है! 2016 में 4,95,636 छात्रों ने आवेदन किया, जिसमें 3,17,050 छात्र परीक्षा में बैठे! वर्ष 2017 में आवेदन करने वाले छात्रों की संख्या घट गई और कुल 3,70,752 छात्रों ने फॉर्म भरे जबकि 2,8,9014 छात्र परीक्षा में शामिल हुए!  इसी तरह वर्ष 2018 में छात्रों की संख्या और घट गई और कुल 2,70,755 छात्रों ने आवेदन किया! इस दौरान 2,20,804 छात्र परीक्षा देने बैठे!  वर्ष 2019 में 1,63,365 छात्रों ने पंजीकरण कराया था! वर्ष 2020 के सत्र का आवेदन शुरू हो चुका है और फ़िलहाल बच्चों का आना जारी है! सीधे तौर पर देंखें तो 2016 से 2019 तक 3,32,271 छात्र घट गए!

इसके पीछे का एक कारण यह भी है कि मदरसे की शिक्षा से नौकरी पाना बेहद कठिन हो जाता है! शायद ही किसी सरकारी नौकरी में ये योग्यता काम आती हो! सभी जगह इनकी डिग्री भी मान्य नहीं हैं, ऐसे में समय के साथ चलना ज़रूरी हो गया हैं! मुस्लिम परिवार चाहता हैं कि उसके बच्चे आधुनिक शिक्षा लें जो रोजगारपरक हो और वे अपनी जिंदगी में कुछ ज्यादा कर सके! आम मुसलमान धार्मिक शिक्षा के खिलाफ नहीं हैं लेकिन उसकी प्राथमिकता अब बदल गई है! उसे समझ आ गया है कि नौकरी आधुनिक शिक्षा से ही मिलेगी!

राजधानी लखनऊ के चौक में स्थित मदरसा जामिया अरबिया मखजनुल उलूम के प्रबंधक इम्तियाज अहमद कहते हैं कि सरकार मदरसों में बिना हस्ताक्षेप किए हुए अगर मॉडर्न एजुकेशन से जोड़ती है तो बेहतर कदम है! आधुनिक शिक्षा की बेहद जरूरी है और हर मदरसों को हाईटेक किए जाने की जरूरत है! केंद्र और राज्य सरकार अगर एक बजट निर्धारित कर मदरसों में पढ़ाने वाले शिक्षकों को हाईटेक और आधुनिक शिक्षा की ट्रेनिंग देती तो यह स्वागत योग्य कदम है! मदरसों का जो इस्लामी मकसद में उसमें तो वह कामयाब है! इस्लामी शिक्षा से जिंदगी जीने का सलीका मिलता है, लेकिन जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए तरक्की भी करनी है! इस दिशा में मदरसे पीछे हैं, ऐसे में अगर सरकार मदरसों और उसके शिक्षकों को आधुनिक बनाने का कदम बढ़ाती है तो सराहनीय कदम हैं!

स्लामिक स्कालर और मदरसे के प्रधानचार्य मोतीउर्ररहमान ने आधुनिक शिक्षा को लेकर बेहतर कदम बताया! उन्होंने कहा कि आज के समय को देखते हुए आधुनिक शिक्षा की बेहद आवशयकता है! इससे बच्चों को अपना बेहतर भविष्य बनाने में आसानी होगी! हालाँकि हमारे मदरसे में पहले से ही हिंदी, अंगेजी की शिक्षा दी जाती है! जिसका लाभ यहां के आने वाले  बच्चे ले रहे हैं!

स्लामिक स्कालर और बच्चों को पढ़ने वाले अध्यापक जावेद सिद्दीकी का मानना है कि आधुनिक शिक्षा से धार्मिक शिक्षा पर कोई असर नहीं पड़ रहा है! इससे बच्चों को लाभ मिल रहा है! प्रदेश के सभी मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ा जाये तो यह और बेहतर हो सकता है! क्योंकि आज के युग में धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक और तकनीकी शिक्षा का समायोजन हो जाये तो मदरसों की स्थिति और बेहतर हो सकती है! इससे मुस्लिम अभिभावकों का विश्वास बढ़ेगा और मदरसों में बच्चों की संख्या भी बढ़ेगी!

हम लोगों को कुरान शरीफ के साथ आधुनिक विषयों की शिक्षा दी गयी है! धार्मिक जानकारी के साथ हिंदी, गणित और अंग्रेजी विषय से देश दुनिया के बारे में जानकारी मिली! दोनों प्रकार की शिक्षाओं का अपना महत्त्व है! धार्मिक शिक्षा जहां हमें अपने दीन से परिचित कराती है तो वहीं आधुनिक और तकनीकी शिक्षा से रोजगार और सामाजिक स्तर में अलग पहचान मिलती है! आज के समय में बिना आधुनिक शिक्षा के कल्पना ही नहीं की जा सकती!

केंद्र और प्रदेश सरकार मदरसों को लेकर बेहद गंभीर है! यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के छह हज़ार से अधिक मदरसों में तमाम तरह के बदलाव हुए हैं! कई मदरसों में धार्मिक शिक्षा के साथ ही हिंदी, विज्ञान, गणित जैसी आधुनिक विषयों की शिक्षा दी जा रही है! कई मदरसों में स्मार्ट क्लास भी शुरू हो चुकी हैं! पूरे मामले पर अल्पसंख्यक कल्याण, उत्तर प्रदेश के संयुक्त निदेशक एसएन पांडेय ने बताया कि सरकार का प्रयास है कि मदरसों के छात्रों को दीनी शिक्षा के साथ ही आधुनिक शिक्षा भी दी जाये! जिससे वह समाज के लोगों के साथ कंधे-से कन्धा मिलाकर चल सकें! प्रदेश के मदरसों में एनसीआरटी की पुस्तकें लागू की जा चुकी हैं! कम्प्यूटर क्लास से लेकर तमाम तरह की आधुनिक शिक्षा को पढ़ाने के लिए अध्यापकों की नियुक्ति की जा चुकी है! उन्होंने बताया कि हमारे पास आधुनिक विषयों के अध्यापको की कमी नहीं हैं यदि कोई भी मदरसा अध्यापकों की मांग करता है तो उसे अविलम्ब दूर करने का प्रयास किया जाता है!

 

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