भाजपा में हर किसी का हलक सुखा दिया शाह ने!

शाह के सामने सूखी हलकभोपाल। मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं और विशिष्टजनों को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से इतने करीब से और ज्यादा समय तक मिलने का शायद पहला मौका मिला होगा। शाह के दौरे के दौरान जो भी उनसे मिला, कम से कम बाद में खुश तो नहीं दिखा, जब उनके सामने रहा तो उसका हलक तक सूख गया।

शाह के सामने सूखी हलक

पार्टी अध्यक्ष इन दिनों देशव्यापी दौरे पर हैं, उसी क्रम में 18 से 20 अगस्त तक वह भोपाल में रहे। इन तीन दिनों में उन्होंने सत्ता, संगठन से जुड़े लोगों के साथ कई स्तरों पर बैठकें भी की, इन बैठकों में कुछ लोगों ने साहस जुटाकर बोलने की कोशिश भी की, मगर आलम यह रहा कि वे कुछ कहते, उससे पहले ही शाह का रुख देखकर उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वरिष्ठ नेता व पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और गौरीशंकर शेजवार जैसे नेताओं को तो बोलने से पहले ही बिठा दिया गया।

अमित शाह की पहली बैठक के बाद निकले नेताओं और मंत्रियों के बयान बहुत कुछ बयां करने वाले थे। बाबूलाल गौर ने मीडिया के सवालों पर तो यहां तक कह दिया कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं दे रहा है, वहीं गौरीशंकर शेजवार और विश्वास सारंग ने तो साफ कहा कि बैठक की बात बाहर न बताने को कहा गया है, बोलें कैसे।

बाद में शाह ने भी संवाददाताओं से चर्चा के दौरान स्वीकारा कि उन्होंने ही निर्देश दिए थे कि बैठक की बात बाहर नहीं जानी चाहिए। उनका तर्क था कि पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र है, बैठक में आप अपनी बात कहिए, मगर बाहर मीडिया से बैठक की बात करना ‘अनुशासनहीनता’ है।

शाह के इस तीन दिनी दौरे के दौरान प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ‘बॉडी लैंग्वेज’ हर किसी का ध्यान खींचने वाली रही। दोनों की स्थिति ठीक वैसी ही थी, जैसे किसी कड़क हेडमास्टर के सामने विद्यार्थी की होती है।

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया का कहना है, “भाजपा में एकाधिकारवाद हावी हो गया है और अनुशासन का डर दिखाया जाता है, सभी जानते हैं कि अब उनकी सुनवाई किसी अन्य फोरम पर नहीं होने वाली, लिहाजा शाह के दौरे के दौरान नेता-कार्यकर्ता डरे, सहमे, हताश व निराश नजर आए।”

वह आगे कहते हैं कि शाह और मोदी का प्रभाव पार्टी पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से भी ज्यादा हो गया है, यह बात नेता भी स्वीकार रहे हैं, पहले पार्टी संगठन किसी नेता का टिकट काट देता था, तो वह अपनी बात दूसरे फोरम पर रख देता था और उसकी बात सुनी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। बात साफ है, जिसे राजनीति करना होगी, उसे पार्टी हाईकमान के निर्देश मानने होंगे। यही आंतरिक लोकतंत्र है!

ज्ञात हो कि राज्य में दो वरिष्ठ मंत्रियों बाबू लाल गौर व सरताज सिंह से 75 वर्ष की आयु पार कर जाने पर पद से इस्तीफा ले लिया गया था। तब उन्हें यह बताया गया था कि पार्टी हाईकमान का यह निर्देश है। मगर शाह ने मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री की मौजूदगी में इस तरह का कोई फॉर्मूला न होने की बात कहकर मुख्यमंत्री व प्रदेशाध्यक्ष की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। शाह के जवाब के वक्त मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के चेहरे पर हवाइयां उड़ गई थीं।

शाह एक तरफ जहां अपने दल के लोगों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते नजर आए, तो दूसरी ओर पत्रकारों की भी क्लास लेने में हिचक नहीं दिखाई। पार्टी प्रमुख तो यहां तक कह गए, “आपको हमारे नेताओं ने मूर्ख बनाया और आपने उनके हिसाब से बैठक की खबरें तक छाप दीं। बैठक में जो हुआ नहीं, वह छपा है। अखबारों में छपी सभी खबरें सही नहीं होतीं।”

कभी स्टॉक ब्रोकर रहे शाह ने कई पत्रकारों को पढ़ने और स्तरीय सवाल पूछने तक की सलाह दे डाली। कुछ पत्रकारों को तो डपट तक दिया।

मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं को पहली बार शाह के आक्रामक तेवरों को देखने को मिला, और उनका अंदाज सभी को सजग व सतर्क रहने का संदेश भी दे गया। अब देखना है कि शाह के दौरे से लगे झटके से नेताओं को उबरने में कितना वक्त लगता है।

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