वो गाँव जहां शादी लड़की और लड़की के बीच होती है ! वजह बेहद चौंकाने वाली…

दूल्हे को मंगल के प्रकोप से बचाने के लिए दुल्हन की पेड़ से शादी. अच्छी बारिश के लिए लड़की की मेंढक से शादी. और परिवार को बुरी नजर से बचाने के लिए लड़की की कुत्ते से शादी. ये ऐसी कुछ परंपराएं हैं जो गलत हैं.

लेकिन सदियों से हमारे देश के अलग-अलग हिस्सों में फॉलो की जाती हैं. ऐसी ही एक परंपरा गुजरात के एक आदिवासी समुदाय में भी फॉलो की जाती है जिसमें दूल्हे और उसके परिवार को ईश्वर के प्रकोप से बचाने के लिए दुल्हन की शादी पहले दूल्हे की बहन से कराई जाती है.

-अमूमन शादी लड़के और लड़की के ही बीच देखी होगी, पर सुरखेड़ा गांव में शादी लड़की और लड़की के बीच होती है. ये गांव गुजरात के छोटा उदेपुर क्षेत्र में आता है. इस गांव में एक आदिवासी समुदाय है, राठवा. शादी को लेकर इस समुदाय की अलग ही परंपरा है. यहां पर दुल्हन की शादी उस लड़की से होती है, जो दूल्हे की बहन होती है.

– राठवा जाति के लोगों का मानना है कि उनके देव यानी उनके भगवान ने शादी नहीं की थी. तो अगर कोई लड़का शादी करने के लिए बारात लेकर जाएगा, तो उसके साथ अनहोनी हो सकती है. और ऐसा करने पर उनके भगवान श्राप दे देंगे या फिर नाराज़ हो जाएंगे. इसलिए उसकी जगह पर उसकी बहन बारात लेकर जाती है.

– लड़के की अगर कोई सगी बहन नहीं है, तो उसके रिश्ते में दूर-पास जो कोई भी बहन लगती हो, उसे भेजा जाता है. उस लड़की की उम्र 20 से 22 साल होनी चाहिए और वो कुंवारी होनी चाहिए.

-लड़की को दुल्हन की तरह ही सज-धज कर बारात निकालनी होती है. इस बारात में सभी शामिल होते हैं, जैसे कि मम्मी-पापा, रिश्तेदार और बैंड बाजा.

-शादी पूरी रस्मों और रिवाजों के साथ होती है. वैसे ही जैसे किसी लड़के की लड़की से होती है.

 

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-जब लड़के की बहन बारात लेकर जाती है तो उसे एक डलिया यानी टोकरी लेकर जाना होता है. वो टोकरी उसे सिर पर ही रखनी होती है, जिसमें दुल्हन के कपड़े और चावल होता है. अगर लंबा सफर तय करना होता है तो दुल्हन के घर के पास पहुंचने के बाद टोकरी सिर पर उठाने की रस्म निभाई जाती है. सिंदूर लगाना, मंगलसूत्र पहनाने जैसी रस्म भी दूल्हे की बहन ही निभाती है.

– दूल्हे की बहन और दुल्हन को शादी के दौरान चावल के 7 लड्डू बनाने होते हैं, जो उनके भगवान के लिए होते हैं.

-इन सभी के बीच दूल्हा घर पर अकेला होता है. वह बारात के वापस आने का इंतजार करता है. जब बारात दुल्हन को लेकर लौटती है तब तब दोबारा शादी होती है. ये शादी अब दूल्हा और दुल्हन के बीच होती है.

दो और गांव हैं, जिनका नाम अंबाला और सनाडा है, जहां इस तरह की परंपरा को फॉलो किया जाता है. मतलब आज के समय में भी पुरानी परंपराओं को, चाहे वो सही हो या गलत, लोग बिना किसी आपत्ति के फॉलो कर रहे हैं. कहीं आज भी वर्जिनिटी टेस्ट के लिए सुहागरात में सफेद चादर बिछाई जाती है तो कहीं बहुएं आज भी ससुराल वालों के सामने कुर्सी या पीढ़े पर नहीं बैठ पाती.

 

 

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