विस्मय से जागरूकता आती है

विस्मय

विस्मय आध्यात्मिक उद्घाटन का आधार है। ये कितना अद्भुत है कि सृष्टि सर्वत्र आश्चर्यजनक वस्तुओं से भरी पड़ी है। लेकिन हम इन्हें अनदेखा कर देते हैं। तभी हम में जड़ता का उदय होने लगता है और साथ में सुस्ती आती है। तमस का कार्य शुरू हो जाता है, निष्क्रियता आने लगती है और अज्ञानता घर कर लेती है।

जब कि विस्मय का बोध हम में जागरूकता लाता है। चमत्कार तुम्हें चोंका देता है। और ये झटका जागरूकता है। और जब हम जागरूक होते हैं तब हम देखते हैं कि सारी सृष्टि चमत्कारों से भरी पड़ी है। ये समग्र सृष्टि विस्मित होने के लिए, आश्चर्यचकित होने के लिए है, क्यूँ कि ये सब एक ही चेतना का आविर्भाव है।

वह एक ही चेतना है जो दीये के रूप में, प्रकाश के रूप में जलती है और जो प्राण वायु लेती है। प्रकाश और जीवन में क्या अंतर है? प्रकाश को दीये के रूप में जलने के लिए प्राण वायु चाहिए, ठीक वैसे ही जीवन को भी। अगर तुम्हें एक कांच के कटघरे में रख दिया जाए तो तुम्हारे भीतर जो जीवन है, वो बुझ जायेगा, उसी प्रकार, अगर तुम दीये को ग्लास से ढँक दो, जब तक उस में प्राण वायु है, वह चलता रहेगा, उसके बाद वह भी बुझ जाएगा।

एक पशु के दृष्टिकोण से, तुम्हारी भाषा उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। उसके लिए ये गर्जना है। अगर एक कुत्ता या बिल्ली तुम्हारी ओर देखें और अगर तुम ने उन्हें लंबे समय से प्रशिक्षित नहीं किया है तो समझेंगे कि तुम उन पर भोंक रहे हो, किसी अलग आवाज़ से, जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता। हमारी भाषा, हमारी बुद्धि, हमारा मन कितना सीमित है, इसका दृष्टिकोण सीमित है।

हमारा ये छोटा-सा मन एक भाषा, दो भाषाओँ या कुछ और भाषाओँ के लिए योजनाबद्ध किया गया है। हमें लगता है कि इस छोटे – से मस्तिष्क में हम सारी समझ, सारा ज्ञान ग्रहण कर सकते हैं। हमें लगता है कि हम सोच-विचार करके परिणाम निकाल सकते हैं, तर्क लगा सकते हैं, और उन सभी वस्तुओं को समझ सकते हैं जिनका यहाँ अस्तित्व है, लेकिन यह एहसास कि “मुझे सब पता है” हमें सुस्ती के कवच में रखे रहता है। “मुझे पता नहीं है” से जागरूकता उत्पन्न होती है, क्यूँ कि पता करने के लिए तुम्हें पता लगाना पड़ता है। तुम्हें जागरूक होना पड़ता है| ये क्या है? “मुझे पता नहीं है”।  “मुझे पता नहीं है” ज्ञान की उन्नति की चाबी है।

प्रकृति बार-बार तुम्हें मौका देती है, ये तुम्हारे थोड़े-बहुत रहस्यों को प्रकट करती है, और कुछ अपने। जिससे तुम्हें फिर से, जीवन क्या है, चेतना क्या है, ये ब्रह्माण्ड क्या है, मैं कौन हूँ, और ये सब क्या है, इन पर आश्चर्यचकित होने का, विस्मित होने का, मौका मिले। और तुम इतने भाग्यशाली हो कि तुम इस स्तर पर हो। ये योग की आध्यात्मिक यात्रा – दैवत्व के साथ संघटन की शुरुआत है।

आओ, हम इस संघटन से विस्मित हों, ये उस संघटन की प्रस्तावना होगी। और जब तुम दैवत्व से जुड़ गए हो, तो तुम सभी चीज़ों से विस्मित होओगे। तुम घूम-घाम रहे हो, एक फूल को देखते हो, और आश्चर्यचकित होते हो, वाह! ये फूल इतना बुद्धिमान कैसे है? हरेक पंखुड़ी में, हरेक पत्ते में, हर वो छोटा या बड़ा आदमी जो तुम्हारे आस-पास घूमता है, उन में इस बुद्धिमता को पहचानो। हरेक छोटे-से मनुष्य को देखो, उनका अपना एक मन है, जो आँखों से देखता है, वह चेतना उनके मूंह के ज़रिये से बोलती है, तुम्हें प्रत्युत्तर देती है, या कभी नहीं भी देती।

ये प्राण, ये जीवन – उर्जा हरेक पत्थर, हरेक पदार्थ में उपस्थित है। इस ग्रह पर कुछ भी निर्जीव नहीं है। हम सब जीवन के महासागर में बह रहे हैं। हम में से हरेक एक ढांचा है, जीवन के महासागर में सूक्ष्म से ले कर महामनस्क पदार्थ। ये एक ऐसा अद्भुत तथ्य है। सारा वर्तमान, भूतकाल, भविष्य, इनका समय-मान इस चेतना के दायरे में है। चेतना समय और स्थान से परे है, सब केवल स्पंदन की तरंगें हैं।

तो, अगर तुम आश्चर्यचकित, विस्मित, अचंभित हो, तो बस एक मुस्कान के साथ ऑंखें बंद कर लो, और सोचो

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