अगर आपके विचार भी नहीं छिपते तो ये कहानी आप ही के लिए है

महाभारत के समय की बात है। पांडव स्वयंवर में दी गई शर्त को जीत चुके थे। शर्त के अनुसार द्रौपदी स्वयंवर अर्जुन के साथ हो गया। इसके बाद पांडव द्रौपदी को साथ लेकर अपनी कुटिया में आ गए।

विचार

पांडव उस समय अज्ञातवास में थे। एक ब्रह्माण द्वारा स्वयंवर में विजयी होने पर राजा द्रुपद को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह अपनी पुत्री का विवाह अर्जुन जैसे वीर युवक के साथ करना चाहते थे। अतः राजा अपनी पुत्री का विवाह की वास्तविकता पता लगाने के लिए राजमहल में भोज का कार्यक्रम रखा और उसमें पांडवों को बुलाया।

राजमहल को कई तरह से सजाया गया। वहां युद्ध काम में आने वाले अस्त्र शस्त्र भी रखवाए गए। भोजन करने के लिए कई लोग आए लेकिन द्रुपद पांडवों का इंतजार करते रहे। वहां स्वयंवर में जीतने वाले ब्रह्मण भी आए, लेकिन वो सभी सर्वप्रथम अस्त्र-शस्त्र वाले कक्ष की ओर गए।

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द्रुपद समझ गए उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा, ‘क्या आप ब्रह्मण हैं या क्षत्रिय, युधिष्ठिर कभी झूठ नहीं बोलते थे इसलिए उन्होंने कहा कि हम क्षत्रिए हैं और स्वयंवर में जीतने वाला अर्जुन है। यह जानकर द्रुपद काफी खुश हुए।’

व्यक्ति अपने वेश भले ही बदल ले लेकिन उसके विचार आसानी से नहीं बदलते। हम जीवन में जैसे काम करते हैं, वैसे ही हमारे विचार रहते हैं।

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