वाहनों और फैक्ट्रियों की वजह से नहीं बल्कि स्मार्टफोन पर इंटरनेट चलाने से गर्म हो रही है धरती…

जब भी ग्लोबल वार्मिंग की बात होती है, तो वाहनों और फैक्ट्रियों को दोषी ठहराया जाता है। कई बार एयर कंडीशनर (एसी) के बढ़ते इस्तेमाल को भी धरती के बढ़ते तापमान के लिए जिम्मेदार माना जाता है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस स्मार्टफोन के बिना आप एक पल भी नहीं रह सकते, वही स्मार्टफोन ग्लोबल वार्मिंग के लिए भी जिम्मेदार है।

 

बतादें की इंटरनेट से चलने वाली डिवाइसेज जैसे लैपटॉप, मोबाइल और टैबलेट जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। वहीं क्लाइमेट होम न्यूज के साल 2016 में किए गए सर्वे के मुताबिक पूरी दुनिया में पिछले 10 सालों में रोज इस्तेमाल हो रही अरबों डिवाइसेज के कारण धरती के तापमान में 3.5 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो कि साल 2040 तक 14 फीसदी तक पहुंच जाएगी।

बुरी नजर नहीं छू पाएगी कभी अगर कर लिए ये उपाए

जहां साल 2025 तक पूरी दुनिया में इस्तेमाल होने वाली बिजली का 20 फीसदी हिस्सा इंटरनेट और मोबाइल डिवाइसेज में खर्च होगा और इसका सीधा प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर पड़ेगा। अब बड़ा सवाल यह है कि इतनी बिजली खर्च कहां होगी। तो आपको बता दें कि इंटरनेट का इस्तेमाल जितना अधिक होगा, उतने ही डाटा सेंटर खुलेंगे और इन डाटा सेंटर को चालू रखने के लिए बिजली की खपत होगी।

खबरों के मुताबिक स्मार्टफोन के कारण उर्जा का उत्सर्जन 2020 तक 11 फीसदी तक बढ़ जाएगा, जो 2010 तक चार फीसदी था और यह सभी निजी कंप्यूटर, मोबाइल और टैबलेट के चलते हो रहा है। स्मार्टफोन के कारण 2020 तक कार्बन डाइऑक्साइड में 125 मेगाटन तक की बढ़ोतरी होगी।इस मसले पर काम कर रहे स्वीडिश शोधकर्ता एंडर्स एंड्रे का मानना है कि पूरी दुनिया में इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या के साथ ही बिजल की खपत भी काफी तेजी से बढ़ेगी।

एंडर्स एंड्रे के अनुमान के मुताबिक 2025 तक इस क्षेत्र में बिजली की खपत प्रति वर्ष 200-300 टेरा वाट प्रति घंटे (TWh) से बढ़कर 3,000 टेरा वाट प्रति घंटा तक पहुंच जाएगी। एंडर्स ने इसे डाटा सुनामी कहा है और साथ ही यह भी कहा है कि साल 2025 तक हालात और भी भयावह होने वाले हैं।

दरअसल 5G नेटवर्क का इस्तेमाल जल्द ही कई देशों में शुरू होने वाला है। इसके अलावा अब इंटरनेट से कनेक्टेड कारें भी आ रही हैं। साथ ही रोबोट भी इंटरनेट के जरिए काम कर रहे हैं। जिसके चलते अधिक संख्या में डाटा सेंटर भी खुलेंगे, क्योंकि इन सभी डिवाइसेज से मिलने वाले डाटा को स्टोर करने की जरूरी पड़ेगी।

जहां ग्लोबल वार्मिंग के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल नहीं, बल्कि इनका प्रोडक्शन जिम्मेदार है और इसमें इनका योगदान 85 से 95 फीसदी तक है, क्योंकि फोन के उत्पादन में ऊर्जा की खपत के अलावा इन डिवाइसेज में सोने के साथ अन्य दुर्लभ धातुओं जैसे येट्रियम, लैंथेनियम की माइनिंग भी हो रही है। ये तत्व केवल चीन में ही उपलब्ध हैं।

वहीं ये स्मार्टफोन के भारी प्रोडक्शन के लिए कंपनियां भी जिम्मेदार हैं, क्योंकि हर कुछ महीनों के अंतराल पर मोबाइल कंपनियां नए फीचर्स के साथ नया स्मार्टफोन पेश कर रही हैं। ऐसे में लोग पुराना स्मार्टफोन बेचकर नया खरीद रहे हैं।

 

LIVE TV