वास्तुशास्त्र में क्यों महत्वपूर्ण माना जाता हैं घर की दीवारों को खास,जानें…

घर में किसी भी प्रकार के दोष होतों उस घर की सुख-शान्ति प्रभावित होने की संभावना और अघिक बढ़ जाती हैं। जिसके साथ ही इसका असर मानसिक  स्वास्थ्य के साथ शारीरिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता हैं। घर की दीवारें यदि ठीक ना हो तो उन्हें तुरंत सही करा लें।नहीं तो आपको अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं।घर की दीवारों

कौनसी दिशा में कैसी हो दीवार

वास्तु की दृष्टि में किसी भी प्लॉट या भवन की चारदीवारी बहुत महत्वपूर्ण होती है। चारदीवारी न केवल किसी स्थान की सीमाएं निर्धारित करती है, बल्कि ऊर्जा के अतिरिक्त प्रवाह पर घर के अंदर और बाहर अंकुश भी लगाती है। घर की बाहरी चारदीवारी की उपयुक्त ऊंचाई मुख्य प्रवेशद्वार की ऊंचाई से तीन चौथाई अधिक होनी चाहिए। पश्चिम और दक्षिण दिशाओं की दीवारों की ऊंचाई उत्तर और पूर्व दिशाओं की दीवारों की तुलना में 30 सेमी.अधिक होनी चाहिए। यही नहीं, पश्चिम और दक्षिण दिशाओं की दीवारें उत्तर और पूर्व दिशाओं की चारदीवारों से अधिक मोटी भी होनी चाहिए इससे सकारात्मक ऊर्जा चारदीवारी के अंदर के भूभाग में सुरक्षित रहेगी और दक्षिण-पश्चिम से आने वाली नकारात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाएगी।

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ऐसे लगाएं फेंस-यदि प्लॉट के चारों तरफ फेंस लगाना हो तो उसे लकड़ी, लोहे का बनवा सकते है। पर ध्यान रहे लकड़ी के फट्टे अथवा लोहे की पट्टियां हमेशा आड़ी ही लगवानी चाहिए क्यों कि इनको खड़ी लगवाने से बना हुआ फेंस सकारात्मक ऊर्जा को दुष्प्रभावित करता है। सिर्फ उत्तर-पूर्व के भाग में लकड़ी अथवा लोहे का वर्टिकल फेंस खड़ा किया जाए तो इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह भवन में अच्छा होगा। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व कोण के भाग में यदि ईटों की चारदीवारी खड़ी करनी हो तो शुभ फलों में वृद्धि के लिए यहाँ की दीवारों में झरोके रखें। यदि ईंट की चारदीवारी के उत्तरी या पूर्वी भाग की सीध में कोई वीथि शूल (सामने से आती हुई सड़क)है  तो ऐसी स्थिति में वहां दीवार में जाली-झरोका बिल्कुल नहीं बनवाना चाहिए। यदि जमीन प्राकृतिक तौर पर दक्षिण से उत्तर और पश्चिम से पूर्व की ओर ढलवां है तो ऐसे भूखंड के उत्तर-पूर्व कोण की चारदीवारी में भी झरोका बनवाने की जरुरत नहीं है।
सही सलामत हों दीवारें-भवन में दीवारों में कहीं भी दरार न हो और न ही रंग-रोगन उखड़ा हुआ हो।यदि ऐसा है,तो वहां रहने वाले सदस्यों के जोड़ों में दर्द, गठियाँ, साइटिका, कमर दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। भवन के अंदर की दीवारों पर रंग और पेंट भी सोच-समझ कर कराना चाहिए। गहरा नीला या काला रंग वायु रोग,हाथ पैरों में दर्द,नारंगी या गहरा पीला रंग ब्लड प्रेशर,गहरा चटक लाल रंग रक्त विकार एवं दुर्घटना तथा गहरा हरा रंग सांस,अस्थमा एवं मानसिक रोगों का कारण बन सकता है। बेहतर स्वास्थ्य एवं घर में सौहार्दपूर्ण वातावरण के लिए दिशानुसार नम्र,हल्के व सात्विक रंगों का प्रयोग शुभ परिणामों में वृद्धि करेगा।

साफ-सुथरी हो दीवारें

समय-समय पर दीवारों को साफ़ करवाते रहना चाहिए अन्यथा धूल-मिट्टी भरी हुई गंदी दीवारें नकारात्मक ऊर्जा देती हैं। ध्यान रहे कोनों में मकड़ी के जाले नहीं लगें,ये तनावपूर्ण और निराशाजनक माहौल को जन्म देते हैं । दीवारों पर पीक थूकना या किसी भी तरह से दाग-धब्बे लगाना दरिद्रता के सूचक हैं,ऐसा बिलकुल न करें। घर

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