मथुरा के ‘बुज़दिलों’ को सबक दे गया लखीमपुर का साहसी कुत्ता

वफादार कुत्ता लखीमपुर खीरी। आप कितने भी वफादार हों, लेकिन क्या मालिक के लिए जान दे सकते हैं? रोटियों के कुछ टुकड़े मिलने के एवज में मालिक के लिए किसी से भी भिड़ सकते हैं?

लाजिमी तौर पर इन सवालों का जवाब नहीं में होगा। लेकिन यूपी के लखीमपुर खीरी में ऐसा नहीं है। यहां एक किसान की जान बचाने के लिए जंगल के राजा से सीधी जंग लड़ने वाले हैं। किसान को मालिक मानकर उनके लिए जान देने वाले हैं।

यह अलग बात है कि यह बहादुर कोई इनसान नहीं, वफादार कुत्ता है। ताजा वाकया इसीलिए चर्चा में है। दुधवा नेशनल पार्क के पास बर्बतपुर गांव में रहने वाले गुरदेव सिंह इसके गवाह हैं।

वफादार कुत्ता और बाघ की जंग

गुरदेव बताते हैं, ‘बात शुक्रवार रात की है। मैं सो रहा था। पास में मेरा पालतू जैकी भी था। अचानक झाडि़यों के पास उसे कुछ हलचल महसूस हुई। उसने मुझे जगाने की कोशिश की, लेकिन मैं सोया रहा। इसके बाद जैकी सीधे उन झाडि़यों की तरफ बढ़ गया।’

साहसी जैकी समझ गया था कि खतरा उसके मालिक के करीब है। सामने झाडि़यों में बाघ था। जैकी उसके सामने आया लेकिन डरा नहीं। साहस के साथ वह बाघ से भिड़ गया। तेज आवाजें आने पर गांववाले जाग गए।

गुरेदव की भी नींद टूटी। उन्होंने देखा तो जैकी पास में नहीं था। गुरदेव समझ गए कि उसने अपनी वफादारी दिखा दी है। वह झाडि़  यों से होते हुए जंगल की तरफ भागे। बाघ की आवाज सुनते हुए गांववाले भी तेज आवाज करते हुए जंगल की ओर दौड़ पड़े।

बाघ के पंजों के निशान मिले और जैकी की साहसिक जंग के सबूत भी। जैकी मर चुका था। उसने मालिक की जान पर बनती देख बाघ से टक्कर ले ली। साफ था कि जीतेगा कौन, लेकिन वफादारी साबित करके जैकी हारा नहीं।

रविवार की भोर उसका शव जंगलों में मिल गया। गांववालों ने रीति-रिवाज के साथ उसका अंतिम संस्कार किया। गुरदेव बताते हैं, ‘मैं झाडि़यों के पास सोया था। जैकी को बाघ के आने की भनक लग गई थी। अगर वह डर कर भाग जाता तो आज मैं जिंदा नहीं होता।’

गुरदेव किसान हैं। वह अपने पास से जितना बचता था, जैकी को खिलाते थे। लेकिन अब उसकी वफादारी देखकर महसूस करते हैं कि उन्होंने परिवार के किसी करीबी को खो दिया है।

क्या हुआ था मथुरा में

मथुरा के जवाहरबाग में हुए बवाल के पीछे एक वजह कुछ पुलिसवालाें की ‘बुजदिली’ भी है। एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी कब्जेधारियों से लोहा लेने पहुंच गए थे। उनके सिपाहियों के पास एके 47 जैसे असलहे थे। इसी बीच पत्थरबाजी में एसपी को कुछ चोटें आईं। सामने कब्जेदारों को देख सिपाही भाग निकले। एसपी अकेले पड़ गए। निहत्थे अफसर पर कब्जेदारों ने हमला कर दिया और उनकी मौत हो गई। इसकी पुष्टि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी हुई थी। अगर सिपाही वहांं डट जाते तो एसपी की जान बच सकती थी।

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