लोकसभा चुनाव: अजित सिंह ने बदली जगह, क्या बदलेंगे नतीजे?

मुजफ्फरनगर:पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट लैंड के नेता चौधरी अजित सिंह अपने राजनीतिक करियर में सूबे के प्रमुख क्षेत्रीय दलों से लेकर दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों के साथ मिलकर चुनावी राजनीति में हाथ आजमा चुके हैं और सत्ता का स्वाद चख चुके हैं|

 

2019 के आगामी लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को चुनौती दे रहे हैं और हाल में देवबंद की गठबंधन रैली से उन्होंने बीजेपी को ऐसी ठोकर मारने का दंभ भरा है कि वो सीधे नागपुर जाकर गिरे|

ये वही बीजेपी है, जिसके साथ 2009 का लोकसभा चुनाव लड़कर अजित सिंह की राष्ट्रीय लोकदल ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी, लेकिन बाद में वो केंद्र की यूपीए सरकार में शामिल हो गए थे| अब वो गठबंधन में अपनी पार्टी के सिंबल पर मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सामने दूसरे जाट नेता संजीव बाल्यान बीजेपी के टिकट से मैदान में हैं|

यहां पहले चरण के तहत 11 अप्रैल को मतदान की तारीख तय की गई है| यानी जिन जाटों और किसानों की राजनीति करते-करते उनके पिता चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल को खड़ा किया था, आज उसी जाट समाज के लोग चौधरी अजित के लिए चुनौती बन गए हैं|

2014 में हारने के बाद अजित सिंह ने 2019 लोकसभा चुनाव में बागपत लोकसभा सीट से चुनाव में ना उतरने का फैसला किया है| ये पहला मौका है जब अजित सिंह बागपत के अलावा किसी दूसरी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं|

इस लोकसभा सीट के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता भारी संख्या में हैं| लगभग 17 लाख मतदाताओं के बीच मुसलमानों की संख्या 26 प्रतिशत है, जिसके बाद 15 प्रतिशत जाटव और लगभग आठ प्रतिशत जाट हैं| 2014 में बाल्यान ने बसपा के कादिर राणा को 40 हजार वोटों से हराया था, जिसके बाद उन्हें नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री पद दिया गया था|

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पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के इकलौते बेटे चौधरी अजित सिंह को राजनीति विरासत में मिली है| चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के प्रधानमंत्री रहे हैं| लेकिन चौधरी चरण सिंह जब बीमार हुए तो उन्होंने अपने बेटे को लोक दल की जिम्मेदारी सौंप दी|

इस तरह 15 साल से ज्यादा वक्त तक विदेश में नौकरी करने वाले अजित सिंह भारत लौट आए और राजनीति के दंगल में उतर गए| हालांकि, वो राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखते थे, लेकिन पहली बार जब वो पहले अमेरिका से लौटे तो हरे रंग की जिप्सी में उनका शाही स्वागत किया गया| तब से अजित सिंह ने मुड़कर नहीं देखा और फिलहाल, अजित सिंह राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के अध्यक्ष हैं और उन्होंने जाटों के मसीहा के रूप में अपनी पहचान बनाई है|

एक दिलचस्प बात ये है कि इस सीट अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह यहां से चुनाव हारे थे| उन्होंने साल 1971 में इस सीट से चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था|

अब 48 साल बाद चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर सीट से चुनावी रण में उतरे हैं और उनके सामने एक दूसरे जाट नेता के रूप में उभरे संजीव बाल्यान हैं, जो मोदी सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और मुजफ्फरनगर दंगों के चलते वो काफी चर्चा में भी रहे हैं| ऐसे में 11 अप्रैल को हो रही इस सीट पर वोटिंग में यह देखना दिलचस्प रहेगा कि जाट मतदाता इन दोनों जाट दिग्गजों में किस पर ज्यादा भरोसा जताते हैं|

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