राष्ट्रपिता से राष्ट्रपति तक की यात्रा का गवाह चारबाग रेलवे स्टेशन, जानिये इससे जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें

सन् 1914 में अंग्रेजों द्वारा रखी गई उत्तर रेलवे के चारबाग रेलवे स्टेशन की नींव आज तक सुनहरी यादों से जुड़ी हुई है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से लेकर देश के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद तक इन यादों का हिस्सा रह चुके हैं। आज का दिन यानी 28 जून, 2021 राजधानी लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के लिए इतिहास में दर्ज हो गया है। दरअसल, सोमवार को प्रेसिडेंशियल ट्रेन से देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद लखनऊ पहुंचें। रेलवे रिकॉर्ड के मुताबिक पहली बार कोई राष्ट्रपति ट्रेन से लखनऊ आए हैं।

गांधी-नेहरू की पहली मुलाकात का गवाह रह चूका है ये स्टेशन:

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, करीब 115 साल पहले स्वतंत्रता आंदोलन के लिए महात्मा गांधी 26 दिसम्बर 1916 को पहली बार लखनऊ आए थे। मौका था कांग्रेस के अधिवेशन का, जिस दौरान वह पांच दिनों तक शहर में रहे। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बापू से पहली मुलाकात लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन में हुई थी। तकरीबन 20 मिनट की मुलाकात में पंडित जी बापू के विचारों से काफी प्रभावित हुए। जवाहर लाल नेहरू अपने पिता मोती लाल नेहरू के साथ आए थे। इस मुलाकात का जिक्र नेहरू जी ने अपनी आत्मकथा में भी किया है। जिस जगह पर गांधी नेहरू की मुलाकात हुई वहां आजकल स्टेशन की पार्किंग है। इस मिलन की निशानी के तौर पर उस जगह पर एक पत्थर भी लगा हुआ है।

देश के सबसे खूबसूरत स्टेशनों में एक:

देश के सबसे खूबसूरत रेलवे स्टेशनों में शुमार चारबाग को ऊपर से देखने पर ये शतरंज की बिसात जैसा लगता है। दूसरे शहर से आने वाले शख्स के कदम जैसे ही चारबाग रेलवे स्टेशन पर पड़ते हैं यहां की खूबसूरती और भव्यता उसे दीवाना बना देती है।

चहार बाग के नाम से था प्रसिद्ध:

नवाब आसफुद्दौला के पसंदीदा बाग ऐशबाग की तरह चारबाग भी शहर के खूबसूरत बाग में से एक था। लखनऊ के इतिहासकार स्वर्गीय योगेश प्रवीन ने अपने कई लेखों और किताबों में चारबाग रेलवे स्टेशन का जिक्र किया है। उनके मुताबिक, “किसी चौपड़ की तरह चार नहरें बिछाकर चार कोनों पर चार बाग बनवाएं गए थे। इस तरह के बागों को फारसी जबान में चहार बाग कहा जाता है। यहीं चहार बाग बाद में चारबाग के नाम से जाना जाने लगा।”

अंग्रेजों ने रखी थी पहली ईंट:

लखनऊ के इतिहासकारों की मानें तो, लखनऊ के मुनव्वर बाग के उत्तर में चारबाग की बुनियाद पड़ी थी। जब नवाबी दौर खत्म हुआ तो इस बाग की रौनक भी फीकी पड़ गई। उसी दौरान अंग्रेज सरकार ने बड़ी लाइन के एक शानदार स्टेशन की योजना बनाई। अंग्रेज अधिकारियों को मोहम्मद बाग और आलमबाग के बीच का ये इलाका बहुत पसंद आया। ये वो दौर था जब ऐशबाग में लखनऊ का रेलवे स्टेशन था। चारबाग और चार महल के नवाबों को मुआवजे में मौलवीगंज और पुरानी इमली का इलाका देकर यहां ट्रैक बिछा दिए गए। 21 मार्च 1914 को बिशप जॉर्ज हरबर्ट ने इस की बुनियाद रखी।

70 लाख आई थी लागात:

उस दौर के प्रसिद्ध वास्तुकार जैकब ने इस इमारत का नक्शा तैयार किया। चारबाग स्टेशन के बनने में उस वक्त 70 लाख रुपये खर्च हुए। राजपूत शैली में बने इस भवन में निर्माण कला के दो कौशल दिखाई देते हैं। पहले ऊपर से देखने पर इस इमारत के छोटे-बड़े छतरीनुमा गुंबद मिलकर शतरंज की बिछी बिसात का नमूना पेश करते हैं।

बाहर नहीं जाती ट्रेन की आवाज:

अपनी जिन खूबियों की वजह से चारबाग स्टेशन का शुमार मुल्क के खास स्टेशनों में होता है उन्हीं में से एक है यहां ट्रेन की आवाज बाहर न आना है। योगेश बताते हैं कि चाहे जितने शोरशराबे के साथ ट्रेन प्लेटफार्म पर आए उसकी आवाज स्टेशन के बाहर नहीं आती।

विश्वस्तरीय बनेगा चारबाग रेलवे स्टेशन:

चारबाग रेलवे स्टेशन को 556.8 करोड़ रुपये की कुल लागत से डिजाइन-बिल्ड-ऑपरेट-फाइनेंस-ट्रांसफर (डीबीएफओटी) मॉडल पर दो चरणों में पुनर्विकसित किया जाएगा। एयर-कॉनकोर्स, फुट-ओवर ब्रिज, लिफ्ट और एस्केलेटर व दिव्यांग यात्रियों के अनुकूल सुविधाएं आदि शामिल हैं। पहले चरण का पुनर्विकास तीन वर्षों में होगा जिसपर 442.5 करोड़ रुपये की लागत आएगी। जबकि दूसरे चरण में दो वर्षों में 114.3 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

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