बैठे बिठाए राज ठाकरे बन गए मुसीबत, मोदी-शाह के लिए बन सकते हैं चुनौती

महाराष्ट्र में लोकसभा चुनावों में भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के बीच सीधे मुकाबले में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे भी एक जबर्दस्त धुरी बन गए हैं। बिना चुनाव मैदान में उतरे ही राज ठाकरे ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के सामने एक नई चुनौती खड़ी कर दी है। राज खुलकर भाजपा-शिवसेना गठजोड़ के खिलाफ कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के पक्ष में मोर्चा संभाल रहे हैं और न सिर्फ मुंबई बल्कि सतारा, नांदेड़, शोलापुर, कोल्हापुर, महाड़, पुणे, रायगढ़, पनवेल, नासिक बल्कि महाराष्ट्र के तमाम दूसरे हिस्सों में जनसभाएं कर रहे हैं।

राज ठाकरे

मुंबई की दक्षिण मुंबई और उत्तर पूर्व मुंबई लोकसभा सीटों पर भी राज ठाकरे की सभाएं बेहद सफल रही हैं। राज की सभाओं में उमड़ रही भीड़ ने भाजपा के साथ-साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की भी नींद उड़ा दी है। क्योंकि राज के निशाने पर अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं, तो इरादा उद्धव ठाकरे से शिवसेना और बाला साहेब की विरासत छीनने और अपनी खोई जमीन वापस पाने का है। राज ठाकरे की यह भूमिका राज्य के सियासी समीकरणों में बड़ा उलट फेर कर सकती है।

मुंबई हो या पुणे या नासिक हर जगह राज ठाकरे की इस नई भूमिका की चर्चा है। जिन मुद्दों को उठाने में विपक्ष के दिग्गज नेता भी बगले झांकते हैं, उन्हें राज ठाकरे अपनी जनसभाओं में बेहद जोरदार तरीके से उठा रहे हैं। पुलवामा आतंकवादी हमले को लेकर सीधे प्रधानमंत्री के भरोसेमंद अधिकारियों को निशाने पर लेना हो या नोटबंदी पर कपिल सिब्बल द्वारा किए गए कथित घोटाले के खुलासे का मामला हो या बालाकोट हवाई हमले को लेकर विपक्ष के सवाल हों या जीएसटी को लेकर कारोबारियों की तबाही की शिकायत हो, राज ठाकरे सीधे सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सवालों के घेरे में खड़ा करते हैं।

बैठे बिठाए राज ठाकरे बन गए मुसीबत, मोदी-शाह के लिए बन सकते हैं चुनौती

अपने ठेठ मराठी अंदाज में राज ठाकरे अपनी सभाओं में इन मुद्दों को जिस तरह उठाते हैं तो लोगों को दिवंगत बाल ठाकरे की याद ताजा हो जाती है। ये वही मुद्दें हैं जिन्हें लेकर भाजपा के साथ चुनावी समझौते से पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने मुखपत्र सामना में संपादकीय के जरिए उठाते थे या फिर अपनी सभाओं में बोलते थे। तब शिवसेना के जो कार्यकर्ता जोश से भर उठते थे, वो भाजपा शिवसेना समझौते के बाद उद्धव के तेवर नरम पड़ जाने की वजह से अब राज की तरफ खिंचे आ रहे हैं। राज की जनसभाओं में आने वाली भीड़ में ज्यादातर शिवसेना के समर्थक और कार्यकर्ता होते हैं जो मोदी सरकार के प्रति शिवसेना की नरमी को लेकर शिवसेना प्रमुख से खुश नहीं हैं।

इन शिवसेना समर्थकों में राज ठाकरे में एक नई उम्मीद और तेवर दिखाई दे रहा है। राज भी उसे बखूबी समझ रहे हैं और वह चुन-चुन कर उन इलाकों में जा रहे हैं जहां भाजपा से ज्यादा शिवसेना का जनाधार है। दशकों से महाराष्ट्र की राजनीति को देख रहे मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार अनुराग चतुर्वेदी के मुताबिक राज ठाकरे जिस तरह बिना एक भी उम्मीदवार खड़ा किए राजनीति में प्रासंगिक हो गए हैं, वह भारतीय राजनीति के मोदी-शाह युग में एक नया प्रयोग है, जिसे महाराष्ट्र के दिग्गज नेता शरद पवार का भी आशीर्वाद प्राप्त है। इस प्रयोग के जरिए कांग्रेस एनसीपी ने प्रकाश अंबेडकर और असद्दुदीन ओवैसी के दलित मुस्लिम गठजोड़ की चुनौती को भी कमजोर कर दिया है।

चतुर्वेदी बताते हैं कि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की असफलता के बाद महाराष्ट्र और मुंबई की राजनीति में राज ठाकरे अप्रासंगिक होते जा रहे थे। पिछले करीब एक साल से शिवसेना जिस आक्रामक अंदाज में भाजपा और मोदी सरकार का विरोध कर रही थी, उससे सरकार में साझीदार रहते हुए भी उसने विपक्ष की भूमिका अपना ली थी। जमीन पर भी किसान असंतोष, नोटबंदी और जीएसटी से नाराजगी, बेरोजगारी, पेट्रोल डीजल की महंगाई आदि से उपजे गुस्से और नेतृत्व की भूमिका ने शिवसेना के कार्यकर्ताओं और समथर्कों को भी भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ कर दिया।

अचानक भाजपा से समझौते के बाद शिवसेना नेताओं के यूटर्न ने उसके समर्थकों और कार्यकर्तांओं में निराशा भर दी। शिवसेना के पुराने कार्यकर्ता उन दिनों को याद करते हैं जब अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज भाजपा नेता मातोश्री जाकर बाला साहब ठाकरे से मिलते थे। लेकिन जिस तरह उद्धव ने अपने तेवर नरम करके उस भाजपा से समझौता किया जिसे समझौते से एक सप्ताह पहले तक वह कोसते नहीं थकते थे, उससे शिवसेना के जनाधार के मराठी स्वाभिमान को भी धक्का लगा है। अनुराग चतुर्वेदी की इस बात का समर्थन पत्रकार अभिलाष अवस्थी भी करते हैं।

अवस्थी के मुताबिक शिवसेना की राजनीति ही मुंबई में गुजराती और दक्षिण भारतीयों के वर्चस्व के खिलाफ शुरू हुई थी। संयोग से वर्तमान भाजपा के दोनों शिखर नेता गुजराती हैं। राज ठाकरे हालांकि सीधे गुजरातियों के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहे हैं लेकिन मोदी और शाह पर निशाना साधकर वह शिवसेना के जनाधार की इस दबी भावना को भी उभारने की कोशिश कर रहे हैं। राज ठाकरे इसे अपने लिए एक नया अवसर मान रहे हैं और उन्होंने बिना कोई उम्मीदवार खड़ा किए जिस तरह मोदी सरकार और भाजपा पर हमला बोलना शुरु किया है, उससे शिवसेना के जनाधार में उनका आकर्षण बढ़ने लगा है।

राज सीधे-सीधे कह रहे हैं कि 2014 में नरेंद्र मोदी ने साठ महीने यानी पांच साल मांगे थे और देश ने उन्हें दिए। अगर पांच साल जैसे नरेंद्र मोदी को देश ने देखा और परखा उसी तरह का मौका अब राहुल गांधी को क्यों नहीं मिलना चाहिए। राज ठाकरे ने इधर अपने मुस्लिम विरोधी और उत्तर भारतीय विरोधी तेवरों को भी नरम किया है। राज ठाकरे की यह नई और बदली भूमिका महाराष्ट्र के लोकसभा चुनावों में कितना असर डालेगी इसका सही पता 23 मई को चुनाव नतीजे आने के बाद ही चलेगा।

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