अब भारत के ये दाेे दोस्त मिलकर तोड़ेंगे चीन की ‘दीवार’
यूरोप और एशिया की दो बड़ी ताकतें अब मिलकर चीन को धूल चटाएंगी। दरअसल, जापान ने रूस के साथ अपने आर्थिक संबंध बेहतर करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। माना जा रहा है कि चीन का सामना करने के लिए उसने ऐसा कदम उठाया है।
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जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने व्लादिवोस्तोक के एक व्यापार सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की। इस दौरान ऊर्जा और प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में घनिष्ठ आर्थिक सहयोग पर चर्चा की गयी।
एक रूसी अधिकारी ने कहा, शुक्रवार को रूसी बंदरगाह शहर पर हुए इस दो दिवसीय सम्मेलन के बाद दिसंबर में पहली बार ब्लादिमिर पुतिन जापान की यात्रा करेंगे। हालांकि अबे रूस की यात्रा कई बार कर चुके हैं।
माना जा रहा है कि अगर जापान और रूस के बीच मतभेद खत्म हुए और रिश्तों की नई इबारत लिखी गई तो इससे चीन को झटका तो लगेगा ही, भारत को भी बड़ी राहत मिलेगी।
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एशिया में चीन की बढ़ती ताकत भारत के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती है। ऐसे में भारत के दो पुराने और भरोसेमंद दोस्तों की एकता देश के लिए बड़ी जीत साबित हो सकती है।
चीन की बढ़ती ताकत को देखते हुए जापान अपने रूसी संबधों को मजबूत बनाने में लगा हुआ है। इसके साथ ही उसकी नजर रूस के प्राकृतिक संसाधनों पर भी है। टोक्यो में मुख्य सरकारी प्रवक्ता ने कहा कि रूस के आर्थिक संबंधों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जापान ने अपने व्यापार मंत्री हिराशिगे सेको को यह जिम्मेदारी सौंपी है।
इससे पहले 2014 में पुतिन के जापान दौरे को निरस्त कर दिया गया था। माना जा रहा था कि यूक्रेन के क्रीमिया क्षेत्र को संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में शामिल करने के लिए टोक्यो ने बहुत जोर दिया था। इससे पुतिन नाराज थे।
पूर्व विधायक मुनियो सुजुकी ने कहा कि हमें अपने आंतरिक क्षेत्रीय विवादों को दूर रखते हुए भविष्य की परिकल्पना करनी चाहिए। रूस के ऊर्जा संसाधनों और जापान की तकनीकी विशेषज्ञता का मेल एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेगा।
राष्ट्रपति पुतिन का पक्ष देखें तो उन्हें जापान की तकनीक चाहिए, जिससे वह पूर्वी रूस के विकास में इस्तेमाल कर सके। वहीं जापान रूस के उर्जा संसाधनों को इस्तेमाल में लाना चाहता है।
जापान के अनुसार वह खनिज और तेल का आयात मध्य पूर्व से करता है, जो की कुछ 10,000 किमी की दूरी पर है। सुजुकी का कहना है कि यदि संबंध बेहतर बने तो जापान व्लादिवोस्तोक में अपनी तकनीकी का इस्तेमाल कर खनिजों को निकालेगा।
आलोचकों का कहना है कि आर्थिक सहयोग होने के बाद भी संभावना है कि पुतिन क्षेत्र विवाद पर कड़ा रुख अपनाएं क्योंकि रूस की आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद क्रीमिया विलय से वह खुश नहीं थे।