अखिलेश राज में बेमौत मारे गए 350 पुलिसकर्मी

यूपी पुलिसलखनऊ। पुलिस महकमे की नौकरी यूँ तो खतरे आम हैं लेकिन जब अपनों की लापरवाही, गद्दारी आदि के कारण पुलिस अधिकारी-कर्मचारी मारे जाएँ तो गुस्सा लाजिमी है। हाल ही में मथुरा में अवैध कब्‍जा हटवाने में हुई हिंसा में दो जांबाज अधिकारी एसपी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष यादव के शहीद हो जाने की घटना ने एक बार फिर से पुराने हादसों को ताजा कर दिया। बीते तीन सालों में अकेले यूपी पुलिस के 350 से अधिक अफसर और जवान शहीद हो चुके हैं।

इनमें से ज्‍यादातर पुलिसकर्मी अपराधियों से लोहा लेते हुए अपनी जान गवां बैठे तो कुछ ऑन ड्यूटी सड़क हादसों और अन्‍य हादसों का शिकार हो गये।

यूपी पुलिस के जांबाज जिन्‍होंंने कर्तव्‍य के लिए दे दी जान

पिछले दिनों विधानसभा में पुलिसकर्मियों से सम्‍बंधित पूछे गये सवाल का जवाब देते हुए राज्‍य सरकार ने 2010 से अब तक पुलिसकर्मियों पर हमलों और शहीद पुलिसकर्मियों का जो आंकड़ा पेश किया वह रौंगटे खड़े कर देने वाला था।

आंकड़ों के अनुसार एक सितंबर 2012 से 31 अगस्त 2013 के दौरान कुल 117 पुलिसकर्मियों ने  कर्तव्य के दौरान शहादत दी। जबकि 2013-2014 में 126 और वर्ष 2014-2015 में 108 पुलिसकर्मियों की शहादत हो चुकी है।

वहीं एक सितंबर 2015 से अब तक सौ से अधिक पुलिसकर्मियों की जान जा चुकी है।

हमलों का शिकार हुए पुलिसकर्मी :-

2010 – 2011 के दौरान पुलिस पर हमलों की कुल 124 घटनाएं
2011 – 2012 के दौरान पुलिस पर हमलों की कुल 144 घटनाएं
2012 – 2013 के दौरान पुलिस पर हमलों की कुल 202 घटनाएं
2013 – 2014 के दौरान पुलिस पर हमलों की कुल 265 घटनाएं
2014 – 2015 के दौरान पुलिस पर हमलो की कुल 300 घटनाएं
2015 से अब तक पुलिस पर हमले की कुल 278 घटनाएं

ड्यूटी करते हुए शहीद हुए पुलिसकर्मी :-

एक सितंबर 2012 से 31 अगस्त 2013 के दौरान 117 जवान शहीद
इनमें एक अपर पुलिस अधीक्षक, दो डीएसपी, 11 सब इंस्पेक्टर, चार एएसआई, एक एसआईएम, तीन एएसआई एम, 13 हेड कांस्टेबिल, 79 सिपाही, एक लीडिंग फायरमैन, एक मुहिला काटसटेबिल और एक हेड आपरेटर शामिल हैं।

एक सितंबर 2013 से 31 अगस्त 2014 के दौरान 126 की मौत
इनमें तीन इंस्पेक्टर, एक कंपनी कमांडर, दो एसआई (एम लिपिक), एक एसआईएम, सात सब इंस्पेक्टर, एक एसआई रेडियो, तीन एएसआईएम, चार एएसआई, 13 हेड कांस्टेबिल, 85 सिपाही, चार सिपाही चालक, एक फायरमैन और एक महिला सिपाही शामिल थे।

एक सितंबर 2014 से 31 अगस्त 2015 तक 108 की हुई मौत
इनमें एक डीएसपी, एक इंस्पेक्टर, चार एसआई, चार एसआईएम, एक एसआईएम (लिपिक), २६ हेड कांस्टेबिल, ६७ सिपाही, एक लीडिंग फायरमैन और एक फायरमैन।

मथुरा हिंसा से पहले भी प्रदेश ने कुछ ऐसे जांबाज पुलिस अफसरों को खोया है, जिनकी शहादत हमेशा याद की जाएगी। ये सभी जांबाज अखिलेश सरकार में शहीद हुए हैं।

कुंडा में डीएसपी जिया-उल-हक की हत्‍या 

2 मार्च को 2013 प्रतापगढ़ जिले के कुंडा के बलीपुर गांव बलीपुर के ग्राम प्रधान नन्हें यादव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद हुई गोलीबारी में प्रधान के भाई सुरेश की भी मौत हो गई। दो हत्या और गांव में हंगामे की खबर पाकर यूपी पुलिस के सीओ कुंडा जिया-उल-हक भी मौके पर पहुंचे। उनकी भी गुस्साई भीड़ ने हत्या कर दी।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के बलीपुर गांव में शाम का वक्त था, जब गांव के प्रधान नन्हें यादव को चार लोगों ने गोलियां मार दी। यह इलाका राजा भैया का कहा जाता है। इसी क्षेत्र से राजा भैया लगातार पांच बार विधायक बने हैं। कहा जा रहा था कि जिन चार लोगों ने प्रधान को गोली मारी। वे राजा भैया के लोग थे। इस हत्या की खबर सुनने के बाद डीएसपी जिया-उल-हक ने मौके पर तीन पुलिसवालों के साथ पहुंचे। घायल प्रधान को लेकर अस्पताल पहुंचे जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

इसके बाद जिला-उल-हक प्रधान के शव के लेकर वापस गांव लौटे। इस समय तक उनके पास करीब आठ पुलिस वाले आ गए थे, लेकिन जब तक वह लौटे तब तक गांव में करीब 300 लोगों की क्रोधित भीड़ जमा हो चुकी थी। इस भीड़ में कुछ लोग हथियार से लैस थे। भीड़ को बेकाबू होते देख डीएसपी जिया-उल-हक से साथ मौजूद पुलिसवाले धीमे-धीमे छिपने वाली जगह पर पहुंच गए।

पुलिसकर्मियों का कहना था कि डीएसपी को लोगों ने अलग कर लिया। उन्हें प्रधान के घर के पीछे लेकर चले गए। इसके बाद तीन गोलियों की आवाज सुनाई दी। तीन में से दो गोलियां प्रधान के भाई सुरेश यादव को मारी गईं। वहीं से पांच मीटर की दूरी पर डीएसपी जिला-उल-हक को बुरी तरह से पीटा गया और फिर पीछे से गोली मार दी गई। डीएसपी के मृत शरीर को फिर घसीटकर कुंए के पास ले जाया गया। डीएसपी की हत्या के मामले में राजा भैया ने यूपी सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था फिलहाल मामला सीबीआई कोर्ट में चल रहा है।

बरेली में हत्‍यारों को पकड़ने गये दरोगा मनोज की हत्‍या

लखीमपुर निवासी यूपी पुलिस के 1998 बैच के दरोगा मनोज मिश्रा बरेली के फरीदपुर थानाक्षेत्र में तैनात थे। बीते 9 सितंबर 2015 की रात थाने में थे। इस दौरान उन्हें इलाके में गौकशी की सूचना मिली। इसके बाद वे घटनास्थल पर दबिश देने पहुंचे। इसी दौरान उनको एक बदमाश ने गोली मार दी थी। इससे उनकी मौत हो गई थी। बाद में पुलिस ने हत्यारों सहित 10 लोगो को गिरफ्तार किया था। मनोज के घरवाले पिछले कई दिनों से धरने पर बैठे हैं और मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं।
वाराणसी में जिला कारागार उपाधीक्षक की हत्या

वाराणसी में 23 नवंबर 2013 की सुबह अज्ञात हमलावरों ने यूपी पुलिस के जिला कारागार के उपाधीक्षक अनिल त्यागी की कैंट इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई। अनिल त्यागी रोज की तरह शनिवार सुबह अपनी कार से जिम पहुंचे ही थे। इस दौरान पहले से घात लगाकर बैठे बाइक सवार हमलावरों ने कार से निकलने से पहले ही उनको गोलियों से छलनी कर दिया और मौके से फरार हो गए।
जब तक लोग मामला समझ पाते अनिल मौके पर ही दम तोड़ चुके थे। दिनदहाड़े पुलिस अधिकारी की हत्या से इलाके में दहशत का माहौल बन गया है। कुछ दिनों पहले जेल में उनकी कुछ कैदियों से झड़प हुई थी। पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमें हत्या की गुत्थी सुलझाने में लगा दी गई। जिम में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज हासिल कर जांच हत्या की गुत्थी सुलझाने की कोशिश की गई। जांच में सामने आया कि तीन पल्सर बाइक पर सवार आधा दर्जन बदमाशों ने घटना को अंजाम दिया है।

देश में सबसे ज्‍यादा यूपी में जान गंवाते हैं पुलिसकर्मी

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार हर साल देश में सौ पुलिस कर्मी ड्यूटी के दौरान शहीद हो जाते हैं। 2013 में से 2014 में शहीद होने वाले पुलिस कर्मियों की संख्या में 11.76 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्ष 2015 के आंकड़े अभी सामने नहीं आये हैं लेकिन माना जा रहा है कि इस संख्या में भी बढ़ोत्तरी आ सकती है। देशभर में शहीद होने वाले पुलिसकर्मियों में अकेले यूपी में 13.32 फीसदी यूपी पुलिस कर्मियों की मृत्यु हर साल होती है। वर्ष 2010 में देश में कुल 862 पुलिसकर्मियों ने ड्यूटी के समय अपनी जान गंवायी थी। पिछले पांच सालो में इस आंकड़े में कमी आयी है और यह आंकड़ा 17.28 फीसदी कमी के साथ 713 पहुंच गया है। यूपी पुलिस के आंकड़ों पर नजर डालें तो 2010 में कुल 105 लोगों की मृत्यु हुई थी जबकि 2013 में 85 पुलिसकर्मियों का निधन हुआ था। इस दौरान 9.52 फीसदी की कमी दर्ज की गयी। लेकिन 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 95 हो गया।

 

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