मेघनाद के ब्रम्हास्त्र से पीएम मोदी के सारे दुश्मन हो गए ढेर, कोई नहीं कहेगा कि लिया था…
नई दिल्ली। विपक्षी नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नोटबंदी के फैसले की लाख आलोचना कर लें, लेकिन उनके द्वारा लिया गया ये फैसला कितना प्रभावशाली है इस बात को सिद्ध करने के लिए देश के किसी न किसी कोने से कोई बुद्धिजीवी आ ही जाता है। कुछ ऐसा ही नजारा वर्तमान में देखने को मिला है। जब आज के युग में भी मोदी के बचाव के लिए मेघनाद मैदान में कूद गए हैं।
दरअसल देश के प्रख्यात लेखक और स्तंभकार लॉर्ड मेघनाद देसाई ने कहा है कि इस देश में कुछ भी सही काम होता है तो उसका विरोध करने वाले लाखों लोग पहले ही मैदान में कूद जाते हैं। ठीक यही हाल प्रधानमंत्री मोदी का भी है वे चाहे लाख अच्छे काम कर लें लेकिन उनके हर एक काम को गलत और फासीवादी बताया जाता है।
मेघनाद ने मोदी द्वारा लिए गए नोटबंदी के फैसले की प्रशंसा करते हुए कहा है कि उनका यह कदम काला धन रखने वालों के खिलाफ एक कठोर और साहसिक कदम था। भले ही इससे काला धन ना आया हो लेकिन काला धन छिपाकर रखने वालों को यह जरूर समझ आ गया है कि देश में अब ऐसी सरकार आ चुकी है जो उनके काले धन को जब चाहे बेकार कर सकती है।
देसाई ने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार उनके एक दोस्त ने उनसे पूछा था कि क्या मैं फासीवादी नोटबंदी का समर्थन करता हूं? मेघनाद ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि समझ नहीं आता कि नोटबंदी का निर्णय आखिर फासीवादी कैसे हो सकता है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि आजकल मोदी के हर फैसले को तानाशाही और फासीवादी ही बताया जा रहा है।
नोटबंदी के दौरान सभी पुराने नोटों के बैंकों में वापस आ जाने को ही देसाई मोदी की सफलता मानते हैं। साथ ही साथ उन्होंने मोदी सरकार की कमी भी बताते हुए कहा कि नए नोटों को लोगों तक पहुंचाने के लिए जो मैनेजमेंट किया गया उसमें कई खामियां थीं। उन्होने आगे कहा कि लोग तो ऐसे बेरोजगारी के दिनों में भी परेशान रहते हैं लेकिन नोटबंदी की परेशानी को कुछ ज्यादा ही बढ़ाचढ़ा कर दिखाया गया। देसाई ने लिखा है कि दरअसल नोटबंदी का रोना रोने वाले चुनिंदा पत्रकारों और नेताओं को लोगों की परेशानी का अंदाजा ही नहीं है। इसलिए वे बार-बार यही दिखाते हैं कि गरीब आदमी लाइन में खड़ा है और उसे कुछ भी नहीं मिल रहा।
देसाई ने अपने लेख में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का भी जिक्र करते हुए कहा है कि सिंह ने कहा था कि इस बार सकल घरेलू उत्पाद में दो प्रतिशत की गिरावट दर्ज की जाएगी। लेकिन अपनी इस बात को सही ठहराने के लिए संसद में उन्होंने कोई सबूत नहीं पेश किया, जो कि उनका दुर्बल पक्ष था। वह इसलिए क्योंकि मनमोहन सिंह ने यह बात किसी अर्थशास्त्री के रूप में नहीं बल्कि एक राजनेता की तरह कही थी।