मैसूर के इस महल में छिपे हैं कई राज़

मैसूर का महल मैसूर का महल अपने में गजब की खूबसूरती समेटे हुए है। रात के समय इस महल की सजावट और टिमटिमाती रंग बिरंगी लाइटें इसकी खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं। यह ऐसा दिखता है जैसा हम किस्‍से कहानियों में महलों के बारे में सुनते और उन्‍हें अपने मन में गुनते आये हैं। अगर आप मैसूर जाने का प्‍लान कर रहे हैं तो आपकी यात्रा इस महल को देखे बिना पूरी नहीं हो सकती। यह महल अपने में कई कहानियां और कई ऐसे तथ्‍य संजोए हुए है जो जान आप अवाक रह जाएंगे। आइये जाने वैसी ही कुछ खास बातें…

मैसूर का महल इन खास बातों से है प्रसिद्ध

लकड़ी का महल: 14वीं सदी में जब वाड़ियारों का राज हुआ करता था तब उन्होंने पुराने किले के अंदर लकड़ी का यह किला बनवाया। इस किले का कई बार नवीकरण कराया गया है।

जला हुआ महल: कहा जाता है की राजकुमारी जयालक्ष्मीमणी के विवाह के समय यह महल जल गया था। यह 1897 को हुआ था जब नये महल को बनाने की योजना बनाई गयी।

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15 सालों का कठिन परिश्रम: इस एग्ज़ोटिक महल को बनाने की योजना का आयोग, महाराजा कृष्णराज़ेंद्र चौथे वाड़ियार द्वारा ब्रिटिश आर्किटेक्ट हेन्री इरविंग को सौंपा गया। इसे बनाने में 15 सालों का लंबा समय लगा। अंततः यह सन् 1912 में बनकर तैयार हुआ।

पर्यटकों का मुख्य केंद्र: मैसूर के इस महल में हर साल लगभग छह मिलियन से ज़्यादा यात्री भ्रमण को आते हैं। यह भारत में पर्यटकों द्वारा सबसे ज़्यादा यात्रा किए जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है।

शैलियों की पोपुरि: मैसूर महल आर्किटेक्चरल शैलियों का एक अद्भुत मिश्रण है, इसलिए इसे अद्वितीय कहा जाता है। इस मुख्य भारतीय-अरबी आर्किटेक्चर की शैली में हिंदू, मुगल, राजपूत और गॉथिक शैलियों का मिश्रण है।

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दसारा का महापर्व: पूर्व वर्षों में परंपरागत तरीके से मनाए जाने वाले दसारा के पर्व का आज भी महायोजन यहाँ किया जाता है। मैसूर का दसारा पर्व इतना प्रसिद्ध है की इसमें समिल्लित होने को सिर्फ़ अपने देश के ही नहीं दुनिया भर के दर्शक कर्नाटका के इस त्योहार का मज़ा लेने आते हैं।

महल का सन्ग्रहालय: भारत के आज़ादी के बाद यहाँ का राजसी परिवार दूसरे स्थान को शिफ्ट हो गया है। तब से यह महल एक सन्ग्रहालय के रूप में भी तब्दील हो गया है, जहाँ वाड़ियारों की कलाकृत्यों, तस्वीरों, और उनके बचे कुछ राजसी वस्त्रों को दर्शाया गया है।

14 मंदिरों का महल: पहले के ज़माने में राजा लोग किले या महल के अंदर ही मंदिर बनाया करते थे। इसी तरह मैसूर महल में भी 14 मंदिर निर्मित हैं जिन्हे आप अपनी महल की यात्रा में देखना ना भूलें।

सोने की अंबारी (हाथी हौदा): पहले ज़माने में महाराजगण सोने की अंबारी (पालकी) में विराजमान होते थे जिन्हे हाथियों द्वारा दसारा के जुलूस में भी शामिल किया जाता था। अब इस अंबारी में दसारा के पर्व में मां दुर्गा की मूर्ति को विराजा जाता है।

अगर आपने अब तक मैसूर का महल नहीं देखा तो यह आपके लिए मैसूर के बेहतरीन आर्किटेक्चर को देखने का सबसे उच्च समय है। शानदार आर्किटेक्चर, 5 मंज़िलों के किले से घिरे विशाल आंगन और बाग अद्भुत नज़ारे का एक सटीक उदाहरण है। किले के अंदर की अंदरूनी अलंकृत चित्रकला महल को और भी शानदार बनाती है।

 

मैसूर कैसे जाएं ?

  • रोज़ कुछ बसें बेंगलूरु से मैसूर तक जाती हैं।
  • मैसूर रेलवे स्टेशन भी कई प्रमुख शहरों के स्टेशन से जुड़ा हुआ है।
  • बेंगलूरु अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मैसूर का नज़दीकी हवाई अड्डा है।
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