मुसलमानों के बारे में भारत से अलग सोच क्यों रखता है चीन

चीन के पश्चिमी इलाके में खास शिविर चल रहे हैं जिनमें रखे गए लोगों को अपने धार्मिक विचार त्यागकर चीनी नीति और तौर तरीकों का पाठ पढाया जा रहा है. यहां लोगों को न सिर्फ खुद की और अपने परिजनों की आलोचना करनी होती है बल्कि चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का शुक्रिया भी अदा करना होता है.

ऐसे ही एक शिविर में जब एक कजाख मुसलमान ओमिर बेकाली ने यह सब करने से इनकार कर दिया तो उन्हें लगातार एक दीवार पर पांच घंटे खड़े रहने की सजा दी गई. इसके एक हफ्ते बाद उन्हें एक कालकोठरी में भेज दिया गया और 24 घंटे तक खाना नहीं दिया गया. 20 दिन बाद बेकाली आत्महत्या करना चाहते थे.

अब कजाखस्तान के अल्माटी में रहने वाले 42 वर्षीय बेकाली अपना अनुभव बताते हुए रो पड़ते हैं. वह कहते हैं, “बहुत ज्यादा मनोवैज्ञानिक दबाव डाला जाता है जहां आपको अपनी खुद की आलोचना करनी है, अपने विचारों को त्यागना है, अपने समुदाय को छोड़ना है.” वह कहते हैं कि अब भी हर रात वह शिविर के अनुभव के बारे में सोचते रहते हैं.

2017 के मध्य से चीन के शिनचियांग प्रांत में अधिकारी हजारों और संभवतः लाखों मुस्लिम चीनियों का ब्रेनवॉश करने की कोशिश में लगे हैं. कई बार इनमें विदेशी नागरिक भी शामिल होते हैं. एक अमेरिकी आयोग ने इसे आज की दुनिया में “अल्पसंख्यक लोगों का सबसे बड़ा कैदखाना” बताया.

इन शिविरों का मकसद वहां रखे गए लोगों की राजनीतिक सोच को तब्दील करना, उनके धार्मिक विचारों को मिटाना और उनकी पहचान को नए सिरे से आकार देना है.

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चीनी अधिकारी इस बारे में आम तौर पर कोई भी टिप्पणी करने से बचते हैं लेकिन कुछ अधिकारियों ने सरकारी मीडिया में कहा है कि अलगाववाद और इस्लामी चरमपंथ से निपटने के लिए “वैचारिक परिवर्तन बहुत जरूरी” है. चीन में हाल के सालों में उइगुर चरमपंथियों के हमलों में सैकड़ों लोग मारे गए हैं.

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