मुद्रा योजना बनी मुसीबत! असफलता के बाद एनपीए की कगार पर मोदी की फ्लैगशिप…

नई दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने मुद्रा साल 2015 में माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनरी एजेंसी (MUDRA) योजना को सबसे खास परियोजना में बताकर लॉन्च किया था। इसका उद्देश्य बेरोजगार और स्वयं का उद्यम स्थापित करने का सपना देख रहे लोगों को छोटी रकम का ऋण मुहैया कराना है।

इस परियोजना को शुरु हुए लगभग चार वर्ष पूरा होने को है, लेकिन इससे लाभ पाने वाले लाभार्थियों के संख्या काफी कम है। दरअसल, मुद्रा योजना के लिए निर्धारित किए गए फंड का 40 फीसदी पैसा जस का तस बना हुआ है, क्योंकि देश में कोई इस कर्ज को लेने के लिए आगे नहीं आया।

मुद्रा योजना की वार्षिक रिपोर्ट 2016-17 और 2017-18 के मुताबिक, वर्ष के लिए मौजूद कुल फंड का 60 फीसदी और 61 फीसदी क्रमश: दिया गया और दोनों ही साल लगभग 40 फीसदी फंड ऐसे ही पड़ा रह गया। इसके अलावा केन्द्रीय रिजर्व बैंक के कर्ज आंकड़ों को देखें तो सूक्ष्म, लघु और मध्यम इकाइयों (एमएसएमई) को दिया गया। कर्ज दोनों गैर-खाद्य और प्राथमिक सेक्टर्स को दिए गए कर्ज की तुलना में बहुत कम है।

मालूम हो कि गैर-खाद्य क्षेत्र में कृषि और संबंधित इकाइयों, इंडस्ट्री, सर्विस और निजी क्षेत्र में शामिल हैं, जबकि प्राथमिक क्षेत्र में कृषि और संबंधित इकाइयां, एमएसएमई, हाउसिंग, माइक्रो-क्रेडिट, शिक्षा और पिछड़े वर्ग के लिए अन्य सुविधाएं शामिल हैं।

वहीं इस क्षेत्र को दिए गए ऋण की अपेक्षा मुद्रा योजना लागू होने से एक महीने पहले मार्च 2015 और मार्च 2018 से करते हैं तो आंकड़ों के मुताबिक, गैर-खाद्य और प्राथमिक क्षेत्र में क्रमश: 28 और 27 प्रतिशत ऋण दिया गया। वहीं एमएसएमई (दोनों उत्पादन और सर्विस) को महज 24 फीसदी कर्ज दिया गया दिया गया।

जबकि, नवंबर 2014 से नवंबर 2018 के दौरान रिज़र्व बैंक के आंकड़ों पर नज़र डालें तो गैर-खाद्य और प्राथमिक क्षेत्र को दिए गये कर्ज में क्रमशः 41 फीसदी और 36 फीसदी की उछाल दर्ज की गई है। वहीं इस दौरान एमएसएमई (दोनों उत्पादन और सर्विस सेक्टर) को दिए गए कर्ज में महज 33 फीसदी का ग्रोथ है।

सिर्फ मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में एमएसएमई को दिए गए कर्ज के आंकड़ों के मुताबिक, मार्च 2014 से मार्च 2018 के बीच कर्ज में -2 फीसदी का नकारात्मक उछाल देखने को मिला है। वहीं इसी दौरान महज 1 फीसदी की कर्ज में ग्रोथ दर्ज की गई है।

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गौरतलब हो कि मोदी सरकार द्वारा मेक इन इंडिया को बढ़ावा और स्वराजगार पैदा करने की दृष्टि से लागू किए गये मुद्रा योजना की मौजूदा स्थिति खस्ता है। बिना किसी गारंटी के दिए गये मुद्रा ऋण भी एनपीए बनने की कगार पर है। इस बावत रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने चिंता जाहिर की थी। उन्होंने सितंबर 2018 को मुद्रा योजना को हानिकारक करार देते हुए कहा था कि इस योजना से बैंकिंग क्षेत्र में बड़ा संकट आ सकता है।

राजन ने यह बात लोकसभा सी प्राक्कलन समिति के सामने कही थी। इसी खतरे का संकेत अहम सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और पंजाब नैशनल बैंक के प्रमुख भी संसद की वित्त समिति के सामने दे चुके हैं। हाल ही में जनवरी 2019 में आरबीआई एक बार फिर सरकार को मुद्रा कर्ज के एनपीए बनने के खतरे के लिए अगाह कर चुकी है। आरबीआई के मुताबिक मुद्रा कर्ज 11,000 करोड़ रुपये के पार है।

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ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वरोजगार पैदा करने वाली यह परियोजना विफल हो गई है। वर्तमान में मुद्रा योजना एमएसएमई सेक्टर को कर्ज मुहैया कराने की दिशा में पूरी तरह नाका सोबित हुई है। इसी के चलते मुद्रा फंड का बड़ा हिस्सा अभी भी बैंकों के पास पड़ा है।

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