मिलावटी दूध से सेहत को अनेक नुकसान, कानूनी तौर पर हैं सजा के प्रावधान

जौनपुर : जिले में मिलावट हर जगह है। ऐसे में कहीं आप मिलावटी दूध तो नहीं पी रहे है। खाद्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी इसकी पड़ताल भी नहीं करते और धनवसूली करते है। आमतौर पर लोग गाढ़े दूध को ही सही मान लेते हैं जबकि इसके पीछे बहुत बड़ा राज छिपा हुआ होता है। मिलावट वाले दूध के सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं।

मिलावट के मामले में कानूनी तौर पर सजा के प्रावधान हैं।  इसके बावजूद भी यह धंधा इसलिए थमने का नाम नहीं ले रहा है कि इस मामले में किसी को छोटी सजा मिलने की खबर भी सामान्य तौर पर नहीं मिलती। जिले में दूध उत्पादन करने वाले लोगों की कमी भी नहीं है लेकिन मिलावट का काम दूध उत्पादन करने वाले लोग नहीं करते। यह काम वे लोग करते हैं जो रोजाना  विभिन्न गांवों से दूध एकत्रित कर घर-घर, बाजारों में या डेयरी पर सप्लाई देते हैं।

गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जांच तंत्र काफी कमजोर

ऐसा करने वालों की बड़ी संख्या हैं, इनमें कुछ तो सीधे दुकानदारों को दूध की सप्लाई देते हैं। वहीं कुछ विभिन्न डेयरी को भी दूध देते हैं। दूध खरीदना सबकी मजबूरी है, लेकिन इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए जांच तंत्र काफी कमजोर हाल में है। जिसके कारण दूध में कई तरह से मिलावट की शिकायतें हमेशा मिलते रहती हैं। इसमें अधिकांश लोग केवल दूध में पानी के मिलावट की शिकायतें करते हैं। लोगों को गाढ़ा दूध मिलता है तो वह आश्वस्त हो जाते हैं कि उन्हें उन्हें सही दूध मिल रहा है।

लेकिन सच्चाई इसके विपरीत होती है। जानकारी के अभाव में वो सिथेटिक या मिलावटी दूध और सही दूध के बीच पहचान नहीं कर पाते हैं। जबकि कुछ घरेलू तरीकों से भी सही और मिलावट वाले दूध की पहचान की जा सकती है।  दूध में पानी की मिलावट की जांच करने के लिए किसी चिकनी लकड़ी या पत्थर की सतह पर दूध की एक या दो बूंद टपकाकर देखने पर अगर दूध बहता हुआ नीचे की तरफ गिरे और सफेद धार सा निशान बन जाए तो वह दूध शुद्ध है।

डिटर्जेंट और सोडा की वजह से कड़वा हो जाता है स्वाद

डिटर्जेंट की मिलावट पहचानने के लिए दस मिलीग्राम दूध मात्रा किसी कांच की शीशी में लेकर जोर-जोर से हिलाने पर यदि झाग बने और देर तक बना रहे तो इसमें डिटर्जेंट मिले होने का प्रमाण मिलता है। दूध में यूरिया भी हो तो ये हल्के पीले रंग का होता है, जबकि सिथेटिक दूध में यूरिया मिलाया जाए तो ये गाढ़े पीले रंग का दिखने लगता है। सिथेटिक दूध सूंघने पर यदि साबुन जैसी गंध आती है तो इसका मतलब है कि दूध सिथेटिक है जबकि असली दूध में कुछ खास गंध नहीं आती है। असली दूध का स्वाद हल्का मीठा होता है, जबकि नकली दूध का स्वाद डिटर्जेंट और सोडा मिला होने की वजह से कड़वा हो जाता है।

असली दूध स्टोर करने पर अपना रंग नहीं बदलता, जबकि नकली दूध कुछ वक्त के बाद पीला पड़ने लगता है। अगर हम असली दूध को उबालें तो इसका रंग नहीं बदलता, वहीं नकली दूध उबालने पर पीले रंग का हो जाता है। असली दूध को हाथों के बीच रगड़ने पर कोई चिकनाहट महसूस नहीं होती। जबकि नकली दूध को अगर आप अपने हाथों के बीच रगड़ेंगे तो आपको डिटर्जेंट जैसी चिकनाहट महसूस होती है।

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