Rio Olympic : सिर्फ आठ एथलीट के साथ उतरे इस देश ने भारत को पछाड़ा

भारतनई दिल्ली| मेजबान ब्राजील और भारत दोनों देश इस बार ओलम्पिक खेलों में अपने सबसे बड़े दल के साथ उतरे हैं। मेजबान देश जहां एक स्वर्ण और एक रजत पदक हासिल करने में सफल हो गया है, वहीं भारत को अपने पहले पदक का अब भी इंतजार है।

भारत की उम्मीदों पर एक से एक धुरंधर असफल साबित हुए हैं और पदक की उम्मीदें दिन-ब-दिन क्षीण होती जा रही हैं। लेकिन एक ऐसा देश है जिससे भारतीय खेल जगत प्रेरणा ले सकता है और वह है पहली बार ओलम्पिक अभियान का हिस्सा बना कोसोवो।

सिर्फ 8 प्रतिभागियों के साथ रियो ओलम्पिक में उतरा कोसोवो एक स्वर्ण पदक हासिल कर चुका है और यह जानकर आश्चर्य होगा कि कोसोवो को आजादी मिले सिर्फ आठ वर्ष ही हुए हैं।

कोसोवो के लिए रियो में यह स्वर्ण पदक महिलाओं की जूडो स्पर्धा के 52 किलोग्राम भारवर्ग में माजलिंडा क्लेमेंडी ने दिलाया।

17 फरवरी, 2008 को सर्बिया से आजाद हुआ कोसोवो बीजिंग ओलम्पिक-2008 और लंदन ओलम्पिक-2012 में सिर्फ इसलिए हिस्सा नहीं ले सका था, क्योंकि कोसोवो ओलम्पिक समिति (ओसीके) को अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति (आईओसी) से मान्यता नहीं मिली थी।

आईओसी ने 22 अक्टूबर, 2014 को ओसीके अस्थायी सदस्यता दी और नौ दिसंबर, 2014 को ओसीके, आईओसी का पूर्ण सदस्य बन गया।

सर्बिया ने कोसोवो को अलग देश मानने से इनकार कर दिया है और संयुक्त राष्ट्र के ऑब्जर्वर राष्ट्रों में भी कोसोवो शामिल नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से 108 देशों ने इसे एक संप्रभु राष्ट्र मान लिया है।

कोसोवो की धरती विश्वस्तरीय एथलीटों से कभी खाली नहीं रही। कोसोवो के खिलाड़ी 1920 से 1992 तक युगोस्लाविया की ओर से खेलते रहे। रोम ओलम्पिक-1960 में स्वर्ण पदक जीतने वाली युगोस्लाविया की फुटबाल टीम में कोसोवो के तीन खिलाड़ी शामिल थे। लॉस एंजेलिस ओलम्पिक-1984 में युगोस्लाविया की ओर से खेल रहे मुक्केबाज अजीज सालिहू व्यक्तिगत स्पर्धा का पहला स्वर्ण हासिल करने वाले कोसोवो के पहले नागरिक बने।

युगोस्लाविया से अलग होने के बाद कोसोवो के खिलाड़ी ओलम्पिक खेलों में सर्बिया की ओर से खेलते रहे।

रियो में कोसोवो को स्वर्ण पदक दिलाने वाली क्लेमेंडी जूनियर विश्व चैम्पियनशिप विजेता रह चुकी हैं और उन्होंने लंदन ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई भी कर लिया था। लेकिन ओसीके के आईओसी से मान्यता न मिले होने के कारण तब लंदन ओलम्पिक में उन्हें कोसोवो के झंडे तले शामिल होने से मना कर दिया गया था। यहां तक कि क्लेमेंडी ने आईओसी से स्वतंत्र एथलीट के तौर पर लंदन ओलम्पिक में शामिल करने का अनुरोध किया था, लेकिन उनके इस अनुरोध को भी ठुकरा दिया गया।

क्लेमेंडी ने लेकिन हार नहीं मानी और अंतत: अपने देश को ओलम्पिक की स्वर्णिम सूची में जगह दिलाकर ही दम लिया। क्लेमेंडी रियो में कोसोवो की ध्वजवाहक भी हैं।

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